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    यूरोपिय संघ ने राजकीय सब्सिडी के मुद्दे पर चीन से निवेश में दिखाया नरम रूख

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/ब्रुसेल्स/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- यूरोपीय संघ (ईयू) ने राजकीय सब्सिडी के मुद्दे पर अपना रुख नरम करते हुए चीन से निवश समझौता किया है। ये खुलासा वेबसाइट पोलिटिको.ईयू ने अपने एक विश्लेषण में किया है। इस विश्लेषण के आधार पर वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस मामले में चीन की तुलना में ब्रिटेन के प्रति ईयू ने कहीं अधिक सख्त रुख अपनाया। विश्लेषक सराह एनी आरुप, थिबौल्ट लार्जर और जैकब हेनके वेला ने कहा है कि जो समझौता हुआ है, उसके तहत चीन बिना पारदर्शिता बरते कंपनियों को ब्रिटेन की तुलना में कहीं अधिक सब्सिडी दे सकेगा।               विश्लेषकों ने कहा कि उन्होने ईयू-चीन निवेश करार के दस्तावेज का अध्ययन किया है। इसके मुताबिक चीन में कंपनियों को 4,50,000 स्पेशल ड्राविंग राइट्स (एसडीआर) यानी 5,33,000 यूरो तक की सहायता को सब्सिडी नहीं माना जाएगा। इसके विपरीत ईयू-ब्रिटेन डील में कहा गया है कि अगर 3,25,000 एसडीआर से अधिक की सहायता दी गई, तो इसे सब्सिडी माना जाएगा। गौरतलब है कि एसडीआर लेखा गणना की यूनिट है, जिसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) करता है।                विश्लेषकों ने इसे भी चीन की जीत माना है कि उसके साथ हुए निवेश समझौते में सब्सिडी से होने वाले नुकसानों का जिक्र नहीं किया गया है। जबकि इसके आधार पर ही को प्रभावित पक्ष विवाद समाधान संस्था के पास अपनी शिकायत दर्ज कराता है। समझौते में यह कहा गया है कि विवाद समाधान उपाय का इस्तेमाल यह सवाल उठाने के लिए किया जा सकता है कि क्या किसी पक्ष ने सब्सिडी की घोषणा करने में पारदर्शिता बरती है। लेकिन इस माध्यम से सब्सिडी के असल में भुगतान का मामला नहीं उठाया जा सकेगा। ईयू- चीन के करार पर दिसंबर में सहमति बनी। लेकिन अभी इसका यूरोपीय संसद से अनुमोदन होना बाकी है। संसद में समझौते में मानव अधिकारों की रक्षा के कमजोर प्रावधानों का मामला उठ सकता है। कई जानकारों का कहना है कि इस मसले पर हो सकता है कि यूरोपीय संसद अपना अनुमोदन रोक ले।                    ईयू का कहना है कि सब्सिडी के मामले में उसने 4,50,000 एसडीआर की सीमा इसलिए मानी क्योंकि ऐसा व्यापार समझौतों के मामले में आम चलन है। ऐसा ही उसके जापान और मेक्सिको से हुए समझौते में माना गया है। ईयू का कहना है कि वह चीन के सब्सिडी की समस्या का मुकाबला निवेश डील से बाहर जाकर दूसरे उपायों के जरिए करेगा। ईयू की सोच यह है कि निवेश समझौते के तहत बेहतर पारदर्शिता के लक्ष्य को हासिल किया जाए। इसके चीन की सब्सिडी को विवाद समाधान तंत्र में खींचने का माध्यम ना बनाया जाए। समझौते में प्रावधान है कि दोनों पक्ष खास सेवाओं को दी गई सब्सिडी को सार्वजनिक करेंगे। हर साल चीन और ईयू को वह रकम बतानी होगी, जो उन्होंने वित्तीय सेवाओं और समुद्री परिवहन को दिया होगा। समझौते में सब्सिडी के मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच राय-मशविरे का प्रावधान है। जो भी पक्ष इस बारे में मशविरा चाहेगा, वह अतिरिक्त जानकारी की मांग कर सकेगा। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यह मशविरा सद्भावना के रूप में है, ना कि विवाद समाधान के प्रावधान के रूप में।

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