
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- भारत में निजता अधिकार को लेकर जारी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट में भी इससे जुड़े मामले की सुनवाई की जा रही है। ताजा घटनाक्रम में शीर्ष अदालत ने वॉट्सएप और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
भारत में निजता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वॉट्सएप और केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए वॉट्सएप से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। सुनवाई के दौरान वॉट्सएप ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि यूरोप में निजता को लेकर विशेष कानून है। अगर भारत में भी ऐसा ही कानून होगा, तो उसका पालन करेंगे। इस पर शीर्ष अदालत ने वॉट्सएप से कहा कि लोग कंपनी से ज्यादा अपनी निजता को अहमियत देते हैं। अदालत ने कहा कि लोगों को गंभीर आशंका है कि वे अपनी निजता खो देंगे, ऐसे में उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह स्पष्ट कह दिया है कि लोगों की निजता की सुरक्षा करना अदालत का कर्तव्य है। दरअसल, याचिकाकर्ता कर्मण्य सिंह सरीन का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने इस बात पर अपनी मांग रखी कि भारत में नई प्राइवेसी पॉलिसी को लागू करने से व्हाट्सएप को रोका जाए और इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी यह बात कही।
दीवान ने तर्क देते हुए कहा, ये एक अलग तरह की प्राइवेसी पॉलिसी लेकर आए हैं, जिसमें यूरोपियंस के लिए कुछ अलग तरह के नियम हैं और भारतीयों के लिए कुछ अलग तरह के नियम लागू किए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि जब तक भारत में डेटा संरक्षण पर नए कानून को लागू नहीं कर दिया जाता, तब तक व्हाट्सअप को नई प्राइवेसी पॉलिसी नहीं लानी चाहिए।
चीफ जस्टिस ने इसके जवाब में कहा कि हम इस मामले में नोटिस जारी करेंगे. न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और वी. रामसुब्रमण्यम के साथ मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने व्हाट्सअप काउंसल को बताया, प्राइवेसी न रहने की बात को लेकर लोगों में काफी डर बना हुआ है। आप 2,000 से 3,000 अरब डॉलर की कंपनी हो सकते हैं, लेकिन लोगों की निजता की कीमत आपके पैसों से अधिक है। हमें उनकी निजता की रक्षा करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस नई प्राइवेसी पॉलिसी के खिलाफ दाखिल याचिका को लेकर व्हाट्सअप और फेसबुक को नोटिस जारी किया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि निजता का अधिकार लोगों के मूल अधिकारों में से है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता।
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