नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पाकिस्तान का बलूचिस्तान पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे के खिलाफ लगातार बलूच आवाज उठाते रहे हैं। लेकिन बलूचों की आवाज को वर्षों से पाकिस्तान की सरकार और सेना के संयुक्त अभियान के तहत दबाती आ रही है। बलूचिस्तान के लोग वर्षों से इसका विरोध करते आए हैं। कुछ वर्षों से यहां पर चल रहे आजाद बलूचिस्तान कैंपेन को पाकिस्तान समेत दूसरे देशों में रहे बलूचों का भी समर्थन मिलने लगा है। जिसे देखते हुए बलूचों के खिलाफ पाकिस्तान का दमनचक्र और तेज हो गया है।
आपको बता दें कि बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधन बहुल इलाका है। इसके बाद भी यहां के लोग गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से ग्रस्त है। ऐसा भी नहीं है कि इन संसाधनों का उपयोग नहीं किया जा रहा है। लेकिन सच्चाई ये है कि इन संसाधनों का उपयोग राजनेता अपने-अपने स्तर पर और चीन अपने मनमाफिक करता रहा है। यही वजह है कि बलूचिस्तान के लोग लगातार इस अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज को उठाते रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ बलूचिस्तान के लोगों की आवाज को पाकिस्तान की सरकार सेना की मदद से बड़ी ही बेरहमी से कुचलती आई है। यहां पर आवाज उठाने वालों को बेहद खामोश तरीके से अगवा करवा लिया जाता है और उन्हें जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। उनके ऊपर बेहद गंभीर आरोपों के तहत मुकदमा चलाया जाता है और फिर उनकी जिंदगी हमेशा के लिए जेल में कैद होकर रह जाती है। ऐसे लोगों की खबर उनके परिजनों तक भी नहीं पहुंचती है। इसके अलावा कई लोग ऐसे जिनकी गुपचुप तरीके से हत्या करवा दी जाती है। ये सभी कुछ यहां पर वर्षों से चल रहा है।
इसकी जीती जागती मिसाल दो दिन पहले बंदूक के दम पर अगवा किए प्रोफेसर लियाकत सानी बनगुलजाई भी हैं। उनका अपहरण उस वक्त कर लिया गया जब वो अपने देा साथियों के साथ एग्जाम सेंटर जा रहे थे। जिस कार से उनको अगवा किया गया वो बाद में पारिंगाबाद इलाके में मिली है। उनके इस तरह से अगवा किए जाने और पुलिस के अब तक नाकाम रहने से गुस्साए बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी एकेडमिक स्टाफ एसोसिएशन ने आंदोलन करने की चेतावनी भी दी है। बलूचिस्तान के बिगड़ते हालात पर यहां की पूरी राजनीति के जानकार सुशांत सरीन मानते हैं कि ये सिलसिला बलूचिस्तान में काफी पुराना है। उनके मुताबिक बलूचिस्तान और बलूचिस्तान के लोगों की एक नहीं बल्कि कई सारी समस्याएं हैं। बलूचिस्तान के लोग भी काफी कुछ बंटे हुए हैं। दक्षिण और केंद्र में जहां बीएलए का दबदबा है वहीं उत्तर में पश्तून बहुल है। ईरान भी बलूचों के खिलाफ खड़ा दिखाई देता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचों की मांग की बात करें तो इसको लगभग नजरअंदाज कर दिया जाता है। इंटरनेशनल मीडिया हो या बलूचिस्तान की स्थानीय मीडिया, यहां की खबरों पर कई तरह की बंदिशें हैं। पाकिस्तान की सरकार यहां की खबरों को बाहर नहीं आने देती है। सुशांत का कहना है कि हाल के कुछ समय में पाकिस्तान की सरकार और सेना ने यहां पर दमनचक्र काफी बढ़ा दिया है। इसके तहत लोगों को अगवा करना, उन्हें मार देना या उन्हें जेल में ठूंसना लगातार जारी है। प्रोफेसर सानी का भी अपहरण इसकी एक कड़ी है। उनका ये भी कहना है कि बलूचों को शांत करने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने कई आतंकियों संगठनों को यहां पर जमाया है। इनका काम सरकार विरोधी आवाज को हमेशा के लिए खामोश करना है। भारत द्वारा बलूचों की मांग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न उठाने के पीछे की वजह के बाबत जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान का जिक्र करते हुए कई सारी बाधाएं हैं। ऐसे में पाकिस्तान को भारत पर आरोप लगाने का मौका मिल जाएगा। यही वजह है कि भारत इससे बचता आया है।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि यहां के निवासी 1944 से ही अपनी आजादी की मुहीम चला रहे हैं। इनका कहना है कि इस क्षेत्र पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। पाकिस्तान की सरकार और सेना के क्रूर दमनचक्र का ही नतीजा था कि 70 के दशक में यहां पर बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी सामने आई। वर्ष 2006 में इस संगठन को पाकिस्तान की सरकार ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन करार दिया था। वर्ष 2006 में यहां के सबसे बड़े नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या के बाद पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ यहां के लोग हजारों की संख्या में सड़कों पर उतर आए थे। इस हत्या को कथिततौर पर तत्कालीन सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ के इशारे पर अंजाम दिया गया था। इस हत्या के खिलाफ बीएलए भी मैदान में उतर आई थी।
2017 में यूरोपीय देशों में फ्री बलूचिस्तान की कैंपेन चलाते हुए अपनी आवाज को बुलंद करने का नायाब तरीका तलाशा था। 13 नवंबर को कई देशों में बलूचों ने सड़कों पर उतरकर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए और बलूच शहीद दिवस मनाया। इस तरह का प्रदर्शन नार्वे, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों में भी हुआ था। इस मौके पर टैक्सियों और बसों पर फ्री बलूच के बैनर लगाए गए। इस तरह के प्रदर्शनों से पाकिस्तान बुरी तरह से बौखला गया था और उसने इसको लेकर अपनी नाराजगी भी जताई थी। इसके जवाब में विश्व बलूच संगठन के नेता नूरदीन मेंगल ने कहा था कि पाकिस्तान वर्षों से बलूचों के साथ अत्याचार करता आ रहा है।
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