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    गैर-मुस्लिम के साथ शादी शरीयत के खिलाफ-एआईएमपीएलबी

    -ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम युवक व युवतियों को गैर-मुस्लिम से शादी पर दी चेतावनी

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/लखनऊ/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- इेश में फिलहाल धर्मांतरण को लेकर चल रहे विवाद और लव जेहाद पर तनातनी के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम युवकों की गैर मुस्लिम युवतियों से शादी और तमाम दूसरे मुद्दों को शरीयत के खिलाफ बताया है। इसके साथ ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस रिलीज जारी कर मुसलमान धर्मगुरूओं और युवक व युवतियां से एक अपील जारी की है।  
                        बोर्ड ने कहा है कि इस्लाम ने शादी के मामले में यह जरूरी करार दिया है कि एक मुस्लिम लड़की केवल एक मुस्लिम लड़के से ही शादी कर सकती है। इसी तरह एक मुस्लिम लड़का एक मुशरिक (बहुदेववादी) लड़की से शादी नहीं कर सकता। यदि उसने जाहिरी तौर पर शादी की रस्म अंजाम दी भी हैं तो शरीयत के अनुसार वैध नहीं होगी. लेकिन अफसोस कि शिक्षण संस्थानों और नौकरी के अवसरों में पुरुषों और महिलाओं का साथ-साथ होना और दीनी (धार्मिक) शिक्षा से अपरिचित और माता-पिता की ओर से प्रशिक्षण की कमी के कारण अन्तर-धर्म शादियां हो रही हैं। कई घटनाएं ऐसी भी सामने आयीं कि मुस्लिम लड़कियां गैर-मुस्लिम लड़कों के साथ चली गईं और बाद में बड़ी कठिनाइयों से गुज़रना पड़ा। यहां तक कि उन्हें अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ा। हालांकि दूसरे धर्म की युवतियों के साथ मुस्लिम युवकों के शादी करने पर उन लड़कियों को क्या परेशानी झेलनी पड़ती है इसका उन्होने कोई खुलासा नही किया। जबकि सच्चाई यही है कि लव जेहाद के नाम पर दूसरे धर्म की लड़कियों को फंसाकर शादी की जाती है और फिर उन्हे यातनाऐं दी जाती है। जबकि बोर्ड ने एकतरफा बात की।

    इस पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में अनुरोध किया जाता है कि
    1- उलेमा-ए-किराम जलसों में बार-बार इस विषय पर खि़ताब (सम्बोधन) करें और लोगों को इसके दुनियावी व आखि़रत के नुक़सान से जागरूक करें.
    2- अधिक से अधिक महिलाओं के इज्तेमा हों और उनमें इस पहलू पर अन्य सुधारात्मक विषयों के साथ चर्चा करें।
    3- मस्जिदों के इमाम जुमा के खि़ताब, क़ुरआन और हदीस के दर्स में इस विषय पर चर्चा करें और लोगों को बताएं कि उन्हें अपनी बेटियों को कैसे प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं न हों?
    4- माता-पिता अपने बच्चों की दीनी (धार्मिक) शिक्षा की व्यवस्था करें, लड़के और लड़कियों के मोबाइल फ़ोन इत्यादि पर कड़ी नज़र रखें, जितना हो सके लड़कियों के स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का प्रयास करें. सुनिश्चित करें कि उनका समय स्कूल के बाहर और कहीं भी व्यतीत न हो और उन्हें समझाएं कि एक मुसलमान के लिए एक मुसलमान ही जीवन साथी हो सकता है।
    5- आमतौर पर रजिस्ट्री कार्यालय में शादी करने वाले लड़के या लड़कियों के नामों की सूची पहले ही जारी कर दी जाती है. धार्मिक संगठन, संस्थाएं, मदरसे के शिक्षक आबादी के गणमान्य लोगों के साथ उनके घरों में जाएं और उन्हें समझाएं और बताएं कि इस तथाकथित शादी में उनका पूरा जीवन ह़राम में व्यतीत होगा और अनुभव से पता चलता है कि सामयिक जुनून के तहत की जाने वाली यह शादी दुनिया में भी विफल ही रहेगी।
    6- लड़कों और विशेषकर लड़कियों के अभिभावकों को ध्यान रखना चाहिए कि शादी में देरी न हो, समय पर शादी करें  क्योंकि शादी में देरी भी ऐसी घटनाओं का एक बड़ा कारण है।
    7- निकाह़ सादगी से करें, इसमें बरकत भी है, नस्ल की सुरक्षा भी है और अपनी क़ीमती दौलत को बर्बाद होने से बचाना भी है।

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