
नई दिल्ली/- आर्टिफिशियल रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) यानी कृत्रिम प्रजनन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई तरक्की पर विचार-विमर्श करने और इसकी कामयाबी को उजागर करने के मकसद से गुंजन आईवीएफ वर्ल्ड ने दिल्ली के जनकपुरी में एक सत्र आयोजित किया. ये सत्र यहां गाइनी क्लब आईएमए के सहयोग से किया गया। जहां उन लेटेस्ट तकनीकों के बारे में बताया गया, जिनकी मदद से उम्मीद खो चुके कपल्स के घर में भी बच्चे पैदा हो रहे हैं।

गुंजन आईवीएफ वर्ल्ड फ र्टिलिटी के क्षेत्र में एक अहम स्थान रखता है। बांझपन प्रबंधन की बारीकियां विषय पर आयोजित इस सत्र में दिल्ली और आसपास के डॉक्टरों ने हिस्सा लिया. इनके अलावा बड़ी संख्या में स्त्री रोग विशेषज्ञ भी यहां मौजूद रहीं, जिन्हें एआरटी प्रक्रियाओं में सुधार करने के बारे में जानकारी दी गई. इस सेशन को गुंजन आईवीएफ वर्ल्ड की फाउंडर व निदेशक डॉ.गुंजन गुप्ता गोविल ने संबोधित किया. साथ ही यहां गुंजन आईवीएफ वर्ल्ड में कंसल्टेंट डॉ. गरिमा शर्मा ने भी अपने विचार साझा किए. इनके अलावा कई अन्य गणमान्य लोग भी मौजूद रहे।
डॉ. गुंजन ने इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन (आईयूआई) से बेहतर रिजल्ट पाने की टिप्स और ट्रिक्स के बारे में विस्तार से जानकारी दी. कैसे तकनीकी विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी में प्रगति से मुश्किल मामलों में भी सफलता सुनिश्चित हो रही है. बांझपन को मैनेज करने और इसके इलाज करने से मरीज को शारीरिक तौर पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही इमोशनल और मेंटल लेवल पर भी इसका प्रभाव होता है. ऐसे में नई तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से एआरटी प्रक्रिया काफी मददगार साबित हो रही हैं. आईवीएफ , आईयूआई, आईसीएसआई जैसे ट्रीटमेंट बहुत ही सफल साबित हो रहे हैं और ये बेहद सुरक्षित व भरोसेमंद हैं. लेजर की मदद से की जाने वाली हैचिंग, आईसीएसआई में नैनोबोट्स और रोबोटिक्स प्रक्रिया का उपयोग व आईयूआई जैसे ट्रीटमेंट मेथड्स ने इलाज को बहुत ही सक्सेसफुल बना दिया है. बेबी के मामले में इस तरह की प्रक्रिया के सक्सेस रेट अच्छे हैं. इन्क्यूबेटरों की तुलना में, ऑक्सीजन कंट्रोल के साथ लेटेस्ट ट्राई गैस इन्क्यूबेटर्स भी भ्रूण के प्रोडक्शन में काफी मददगार रहता है, जिससे स्वस्थ बच्चे पैदा होते हैं. हमारी कोशिश है कि भारत में उपलब्ध इस तरह की तकनीक, विशेषज्ञता और स्किल से सभी डॉक्टरों को शिक्षित किया जाए।’’
डॉ. गरिमा शर्मा ने अपने संबोधन में उन नई तकनीक के बारे में बताया जिनसे किसी कपल के अंदर बांझपन का पता लगाया जाता है. उन्होंने ये भी कहा कि आमतौर पर पुरुष पार्टनर के बांझपन को इग्नोर कर दिया जाता है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर स्पर्म के सही जगह पहुंचने में जो बाधा होती है उसके बारे में पता नहीं चल पाता है, और न ही इसके कोई लक्षण होते हैं. मरीज को शारीरिक संबंध बनाते समय या इजैक्युलेशन के दौरान भी कोई समस्या नहीं आती. यहां तक कि जो वीर्य निकलता है, वो भी आंखों से देखने पर सही नजर नहीं आता है. हालांकि, स्पर्म की क्वालिटी का पता मेडिकल टेस्ट से ही चल पाता है और उससे ही बांझपन के संभावित कारण का पता चल पाता है.’’ ओवेरियन रिजुवेनेशन एक नई थेरेपी है जिससे महिलाओं के अंडाशय में नए अंडे विकसित होते हैं. ये उन महिलाओं के लिए लाभकारी होता है जो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. ये प्रक्रिया क्लिनिकल ट्रायल के रूप में रजिस्टर्ड है।
ज्यादा उम्र भी गर्भधारण में बाधा बनती है और ऐसी परिस्थितियों में ओवेरियन रिजुवेनेशन बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस प्रक्रिया में, पेशंट के सीरम से ग्रोथ वाली चीजें निकालकर ओवरी में इंजेक्ट की जाती हैं. ये ठीक उसी तरह किया जाता है जैसे आईवीएफ में अंडे निकाले जाते हैं. जब ये लगता है कि कोई महिला अपने अंडों की मदद से प्रेग्नेंट नहीं हो सकती है तो ऐसी स्थिति में भी ओवेरियन रिजुवेनेशन प्रक्रिया के सहयोग से कुछ महिलाएं अपने अंडों के जरिए ही गर्भधारण कर पाती हैं।’’
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