एक मजदूर ने सिखाया मुझकों,
हुनर को तराशना।
एक मजदूर ने सिखाया मुझकों,
गरीबी में पलना।
हां वह मजदूर है जिसके हाथों,
की लकीरों में दिखती है,
माथे की शिकन।
एक मजदूर ने सिखाया है,
कर्म ही पूजा है।
एक मजदूर की कीमत,
उसे खरीदने वाले ने न जानी।
धन दौलत और शान ओ शौकत में,
बैठे हुए क्या जाने
मजदूर के पांव की चुभन,
उनके कांटों भरे डगर ही,
उनके लिए होते हैं सुहाने सफर।
मजदूर के बिना यह जग है सूना।
जाने अनजाने में,
उनका हक है छिना।
एक मई समर्पित है मजदूर दिवस को,
पर हर एक दिन,
समर्पित है उनके श्रम को।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
(मंजू लता मेरसा)
बिलासपुर, (छत्तीसगढ़)
1 मई श्रमिक दिवस पर विशेष
मैं मजदूर हूं
मैं मजदूर हूं,
सुन लो मेरी भी पुकार।
श्रमदान के बदले ना देना,
मुझको अपमान।
गरीबी की चादर ओढ़
अपने सपनों को, ना पंख लगा
पाऊं कभी।
ऊंची ऊंची इमारत को गढ़ना है,
काम मेरा।
सर्दी हो या गर्मी
पहाड़ से लेकर नदियों तक,
कभी चट्टानों को तोड़,
कभी धरती को खोद,
दो वक्त की रोटी पाने को,
करें साहब के आदेशों को पालन।
सुकून की नींदें, तारों से भरी रातें,
शीतल पवन, मन में ना कोई जलन,
पहने तन में सहनशीलता,
का आभूषण।
अपने मालिक को समझे हम भगवान।
वक्त की मार और लाचारी की भाल,
जब पड़ती है इस पेट पर तो,
बड़े-बड़े पर्वतों के बीच बन जाते हैं
रास्ते
कई कई मालों की इमारतें,
अपने हाथों से गढ़ते।
हां हम मजदूर हैं,
सुन लो हमारी भी पुकार।
दे दो जग में मुझे एक पहचान।
संघर्ष और श्रम है मेरा मान,
रखना इसे आप सब जतन।
हां मैं मजदूर हूं,
सुन लो मेरी पुकार।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
बिलासपुर,(छत्तीसगढ़)
मजदूर दिवस मनाएं
आओ चलें सब 1 मई को,
मिलजुल कर मजदूर दिवस मनाएं।
सलाम है उनके हौसलों को जो,
दो वक्त की रोटी पाने को,
मेहनत कर परिवार चलाएं।
शारीरिक श्रम को वह अपना के
अपने सपनों का महल बनाएं।
श्रमिकों के कठोर हाथों से,
जकड़े हुए हथौड़े,
तपती धूप में भी चलते पैरों को,
ना आराम दिलाए।
ऊंची ऊंची इमारतें बनाकर
जग में बेनाम हो जाए।
मालिक के सपनों के महल को,
वह सही अंजाम दिलाए।
मेहनतकश मजदूरों के संघर्षों की
कहानी सुनाई जाती है
इतिहासकारों की जुबानियां।
कहां रहती है, सबकी जुबां पर
इन सब लोगों के लिए सहानुभूतियां
किसी भी मौसम के प्रकोप से,
ना डरते वह सब।
दिन भर श्रम करके रात को लेते
सुकून की नींद।
ना कोई उनके ख्वाब बड़े,
ना कोई महल ऊंचे।
मकान के नीव के शुरुआत से
लेकर, उसको सुंदर महल का रूप
देकर अपने हुनर, अपने श्रम,
अपने मंजिल, को पूरा करके,
फिर से नए मकान और ऊंची इमारत
के सपनों को करने लगते
साकार, धन्य है उपकार
इस धरा पर तुम्हारा।
अपने सुंदर हाथों की कला से
संसार गढ़े सारा।
आओ चले सब मिलजुल कर
मजदूर दिवस मनाएं।
सलाम है उनके हौसलों को,
उनके संघर्षों को।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
बिलासपुर, (छत्तीसगढ़)
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