नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पंजाब के तरनतारन में अक्तूबर में शौर्य चक्र विजेता बलविंदर सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड को अंजाम देने के आरोपी आतंकी सोमवार को दिल्ली के शकरपुर इलाके से पकड़े गए। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के कार्यालय में आतंकियों से पूछताछ की जा रही है। स्पेशल सेल के डीसीपी प्रमोद कुशवाहा ने कहा कि दिल्ली के शकरपुर इलाके में मुठभेड़ के बाद पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें से दो पंजाब के, तीन कश्मीर के हैं। उनके पास से हथियार और दस्तावेज बरामद किए गए हैं। गिरफ्तार आतंकियों को आईएसआई के नारकोटेररिज्म समूह का समर्थन प्राप्त है।
पंजाब में आतंकवाद के दौर में जब थानों के दरवाजे नहीं खुलते थे, तब बलविंदर सिंह आतंकियों के साथ अपने घर में मोर्चा बना कर लोहा लेते थे। आतंकवाद से ग्रस्त तरनतारन के कस्बा भिखीविंड में बलविंदर सिंह ने खालिस्तान कमांडो फोर्स के आतंकी परमजीत सिंह पंजवड़ को कड़ी चुनौती दी थी। बलविंदर सिंह ने 1980 से लेकर 1993 तक आतंकवादियों से इतनी ताकत से लड़ाई लड़ी थी कि तत्कालीन राज्यपाल जेएफ रिबेरो भी उनके प्रशंसक बन गए थे।
इसी वर्ष 16 अक्तूबर में बलविंदर सिंह की उनके घर मे ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पंजवड़ और उसके गुर्गों ने बलविंदर के घर में 1980 से लेकर 1993 तक कई बार हमले किए। 1990 से लेकर 93 के बीच ही उनके घर पर 11 बार हमले हुए थे।
सितंबर 1990 में पंजवड़ ने 200 आतंकवादियों के साथ बलविंदर सिंह के घर में हमला किया था। इसमें रॉकेट लांचर का भी इस्तेमाल किया गया था। बलविंदर के घर में पक्के बंकर बने थे। आतंकवादियों ने बलविंदर के घर को चारों तरफ से घेर लिया था, उनके घर की तरफ जाने वाले सभी रास्ते भी बंद कर दिए गए थे ताकि पुलिस व अर्धसैनिक बल मदद को न पहुंच सके।
पांच घंटे की इस मुठभेड़ में पंजवड़ भाग खड़ा हुआ था और उसके कई गुर्गे मारे गए थे। परिवार के सभी सदस्यों ने स्टेनगन आदि हथियारों से आतंकवादियों का बहादुरी से मुकाबला किया था। इसके बाद बलविंदर सिंह का नाम राष्ट्रीय पटल पर आ गया था। इसके बाद 1993 में गृह मंत्रालय की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने बलविंदर सिंह, उनके बड़े भाई रंजीत सिंह और उनकी पत्नियों को शौर्य चक्र से सम्मानित किया था।
बलविंदर सिंह को एडीजीपी के आदेश पर सुरक्षा मिली हुई थी। उनके परिवार पर डेढ़ वर्ष पहले भी हमला हुआ था। तब अज्ञात लोगों ने उनके घर पर गोलियां बरसाई थीं। उस समय भी परिवार के पास सुरक्षा नहीं थी। आरएमपीआई के सचिव मंगत राम पासला ने बताया कि उन्होंने उस समय डीजीपी से मिलकर परिवार की सुरक्षा बहाल करवाई थी लेकिन बाद में एक-एक कर गनमैन वापस ले लिए गए और हमले की एफआईआर ठंडे बस्ते में चली गई। इसी वर्ष मार्च माह के आखिर में बलविंदर सिंह का इकलौता गनमैन उस वक्त चला गया जब कोरोना वायरस फैलना शुरू हुआ था।
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