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    नरक के दरवाजे को बंद करेगा तुर्कमेनिस्तान, राष्ट्रपति ने दिया आदेश

    -1971 से इसमें धधक रही है आग, पूरी दुनिया से पर्यटक आते है देखने

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश-दुनिया/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान के उत्तर की तरफ गेट क्रेटर नाम का बड़ा-सा गड्ढा है.जिसमें 1971 से आग धधक रही है। इसी गड्ढे को नरक के दरवाजे का नाम दिया गया है। जिसे देखने के लिए पूरी दुनिया से पर्यटक यहां आते है। लेकिन अब अचानक तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दीमुहामेदोव ने दुनियाभर में नरक के दरवाजे के रूप में मशहूर इस गड्ढे को बुझाने का आदेश दिया है। उन्होने कहा कि हमे अपने संसाधनों का उपयोग अपने लोगों की भलाई के लिए करना चाहिए।

    यहां बता दें कि तुर्कमेनिस्तान के 70 फीसदी हिस्से में काराकुम रेगिस्तान है। 3.5 लाख वर्ग किलोमीटर के इस विशाल रेगिस्तान के उत्तर की तरफ गेट क्रेटर नाम का बड़ा-सा गड्ढा है। 69 मीटर चौड़े और 30 मीटर गहरे इस गड्ढे में बीते कई दशकों से आग धधक रही है, लेकिन इसका कारण कोई ’शैतान’ नहीं बल्कि इससे निकलने वाली प्राकृतिक गैस (मीथेन) है। अब राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्डीमुखामेदोव चाहते हैं कि इसे पर्यावरण और स्वास्थ्य कारणों के साथ-साथ गैस निर्यात बढ़ाने के प्रयासों के रूप देखा जाए। जिसके लिए टेलीविज़न पर प्रसारित एक संदेश में राष्ट्रपति गुरबांगुली ने कहा, “हम महत्वपूर्ण प्रकृतिक संसाधन खोते जा रहे हैं जिनसे हमें बड़ा लाभ हो सकता था. हम इसका इस्तेमाल अपने लोगों के जीवन को बेहतर करने के लिए कर सकते थे। उन्होंने अधिकारियों का आदेश दिया है कि वो “इस आग को बुझाने का कोई तरीका खोजें।“हालांकि ये पहली बार नहीं है जब तुर्कमेनिस्तान ’गेटवे टू हेल’ में लगी इस आग को बुझाने की कोशिश कर रहा है। इससे पहले 2010 में भी राष्ट्रपति ने विशेषज्ञों को इस आग को बुझाने के तरीके खोजने के लिए कहा था।

    कब बना ये गड्ढा

    बहुत से लोगों का मानना है कि साल 1971 में सोवियत संघ के भू-वैज्ञानिक काराकुम के रेगिस्तान में कच्चे तेल के भंडार की खोज कर रहे थे। यहां एक जगह पर उन्हें प्राकृतिक गैस के भंडार मिले, लेकिन खोज के दौरान वहां की ज़मीन धंस गई और वहां तीन बड़े-बड़े गड्ढे बन गए। इन गड्ढों से मीथेन के रिसने का ख़तरा था जो वायुमंडल में घुल सकता था। एक थ्योरी के अनुसार इसे रोकने के लिए भू-वैज्ञानिकों ने उनमें से एक गड्ढे में आग लगा दी. उनका मानना था कि कुछ सप्ताह में मीथेन ख़त्म हो जाएगी और आग अपने आप बुझ जाएगी। लेकिन कनाडाई एक्सप्लोरर जॉर्ज कोरोनिस कहते हैं कि इस कहानी को सच माना जा सके, इसके पक्ष में उन्हें कोई दस्तावेज़ नहीं मिले। साल 2013 में नेशनल जियोग्राफ़िक चैनल के लिए बनाए जा रहे एक कार्यक्रम के दौरान एक खोजी दल तुर्कमेनिस्तान के इस इलाक़े में पहुंचा था। जॉर्ज कोरोनिस इसी दल के सदस्य थे। वो ये जानने की कोशिश कर रहे थे कि इस गड्ढे में ’लगातार जलने वाली’ आग वास्तव में शुरू कब से हुई। लेकिन उनकी जाँच ने उनके सवालों के पूरे जवाब देने की बजाय और सवाल खड़े कर दिए। तुर्कमेनिस्तान के भू-वैज्ञानिकों के अनुसार ये विशाल गड्ढा वास्तव में 1960 के दशक में बना था लेकिन 1980 के दशक में ही इसमें आग लगी। पेशे से डेंटिस्ट रह चुके राष्ट्रपति ने अपने मंत्रियों को दुनियाभर के उन विशेषज्ञों को खोजने का आदेश दिया है, जो आधी सदी से आग से धधक रहे इस विशाल गड्ढे को बंद कर सकते हैं।. ये गड्ढा यहां पहले से नहीं था, बल्कि साल 1971 से है। इसके पीछे का कारण सोवियत संघ को माना जा रहा है यानी आग को धधकते हुए 51 साल का वक्त हो गया है।

    दूसरे विश्व युद्ध के बाद उसके आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। तब सोवियत संघ के भूवैज्ञानिक काराकुम के रेगिस्तान में कच्चे तेल के भंडार की तलाश करने के लिए आए थे। वो इसमें सफल भी हुए और यहां उन्हें जगह-जगह प्राकृतिक गैस के भंडार मिले। तभी इस खोज के दौरान जमीन धंस और तीन बड़े गड्ढे हो गए। इनसे मिथेन गैस के रिसने का खतरा था जो वायुमंडल में घुल सकती थी। इसे रोकने के लिए एक गड्ढे में आग लगा दी गई। सोचा कि गैस खत्म होने पर ये आग अपने आप बुझ जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. हालांकि ये कहानी कितनी सच है, इससे जुडे़ कोई सबूत नहीं हैं। इस डरावने 230 फीट चौड़े गड्ढे में आज भी आग धधक रही है, जिसे मीलों दूर से देखा जा सकता है। इसे ’गेट्स ऑफ हेल’ के अलावा ’माउथ ऑफ हेल’ यानी नरक का मुंह भी कहा जाता है और यह देश की राजधानी अश्गाबात से लगभग 160 मील उत्तर में स्थित है। मानवाधिकारों के हनन और विरोधियों को कुचलने के आरोप झेल रहे बर्दीमुहामेदोव ने अधिकारियों को लगातार आग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को रोकने का आदेश दिया है। उन्होंने चेतावनी दी कि दशकों से जल रही आग से स्थानीय लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।हालांकि नरक का ये दरवाजा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा है। दुनियाभर से लोग इसे देखने आते हैं. हालांकि इसे बंद करने में सफलता मिल पाती है या नहीं, ये बात वक्त पर ही पता चलेगी।

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