
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कोरोना के इलाज में जिस प्लाज्मा थेरेपी का बढ़चढ़ कर बखान किया था और प्लाज्मा थेरेपी को इसके इलाज में काफी कारगर बताया जा रहा था। लेकिन आज वही थ्योरी कोरोना के मामले में बेकार साबित हो गई है। आईसीएमआर ने अपने एक रिसर्च में दावा किया है कि कोरोना मरीजों पर प्लाज्मा चढ़ाने से अलग से कोई असर नही होता है और प्लाज्मा थेरेपी उनकी जान बचाने में भी कोई अतिरिक्त मदद नहीं करती है। हालांकि कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अभी तक कोई कारगर दवा बाजार में नहीं आ सकी है, लेकिन रिसर्च का यह परिणाम उन लोगों के लिए बड़ा झटका है, जो इसे कोरोना से बचाव में बड़ी उम्मीद मानकर चल रहे थे। इस नए परिणाम से प्लाज्मा चढ़वाने की होड़ में भी कमी आ सकती है।
प्लाज्मा थेरेपी के पीछे न भागने की सलाह
रिसर्च टीम के एक सदस्य ने अमर उजाला को बताया कि अभी तक प्लाज्मा को संक्रामक रोगों के इलाज में प्रयोग किया जाता रहा है। लेकिन इसकी सटीकता कभी भी निर्विवाद नहीं रही है। कोरोना के मामले में भी यह सटीक इलाज पद्धति साबित नहीं हुुई है। रिसर्च के दौरान टीम ने पाया है कि जिन कोरोना मरीजों को प्लाज्मा दिया गया था, उनमें भी मौत का आंकड़ा लगभग उसी स्तर पर पाया गया जिन्हें प्लाज्मा नहीं चढ़ाया गया था। प्लाज्मा के बारे में सबसे ज्यादा यही मत बना था कि मरीज को प्लाज्मा देने के बाद उसमें कोरोना गंभीर रूप धारण नहीं करता। लेकिन इस रिसर्च में यह बात भी गलत साबित हुई है। कोरोना पॉजिटिव जिन मरीजों को प्लाज्मा चढ़ाया गया था, उनकी बीमारी की हालत में भी कमोबेश उतनी ही गिरावट दर्ज की गई जितना कि अन्य मरीजों में देखी गई है। रिसर्च के परिणामों को देखते हुए विशेषज्ञों ने कोरोना पीड़ितों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी के पीछे न भागने की सलाह दी है।
कैसे हुआ रिसर्च
कोरोना पीड़ितों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी कितनी कारगर साबित होती है, इसे जांचने के लिए आईसीएमआर ने 39 सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को चुना। कोरोना से स्वस्थ हुए 15 से 65 साल के मरीजों से लिए गए प्लाज्मा को रिसर्च में शामिल सभी 464 मरीजों को 200 मिली प्लाज्मा दिया गया। रिसर्च में शामिल सभी मरीज मध्यम स्तर के पीड़ित थे। सांस लेने और रक्त में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य था। 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच हुई इस रिसर्च के परिणामों का अध्ययन करने के बाद रिसर्च टीम ने पाया कि जिन मरीजों को प्लाज्मा दिया गया था, और जिन्हें प्लाज्मा नहीं दिया गया था, दोनों ही प्रकार के मरीजों में बीमारी का स्तर और मृत्यु दर लगभग एक जैसी थी। रिसर्च के परिणामों को क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया के पास भी रजिस्टर्ड कराया गया है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
केजीएमयू में ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग की हेड डॉ. तूलिका चंद्रा ने अमर उजाला को बताया कि उनकेे यहां अब तक 90 से अधिक कोरोना पीड़ितों को प्लाज्मा चढ़ाया जा चुका है। इनमें से 70 फीसदी मरीजों को इससे लाभ हुआ है और वे स्वस्थ होकर अपने घर गए हैं, जबकि शेष 30 फीसदी मरीजों को इससे ज्यादा लाभ नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि यह पहले ही ज्ञात है कि प्लाज्मा केवल मध्यम स्तर के गंभीर मरीजों के लिए ही कारगर होता है। इन परिस्थितियों में जब तक कोरोना के लिए वैक्सीन नहीं आ जाती है, तब तक मध्यम स्तर के मरीजों के लिए इसे अपनाया जाना चाहिए। हालांकि, यह सही है कि ज्यादा गंभीर रोगियों के लिए यह कारगर साबित नहीं होता है।
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