राम मंदिर में बाल स्वरूप और श्याम वर्ण में विराजेंगे रामलला

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December 24, 2024

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राम मंदिर में बाल स्वरूप और श्याम वर्ण में विराजेंगे रामलला

मानसी शर्मा / – 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में रामलला विराजमान होंगे। इसके लिए 7 दिवसीय समारोह का आयोजन किया गया है। जिसके लेकर अभी तैयारियां जोरों पर है। अयोध्या के साथ-साथ पूरे देश में इसके भव्य उद्घाटन का इंतजार किया जा रहा है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के कई दिग्गज नेता, अभिनेता, कलाकार व उद्योगपतियों को न्योता भेजा जा रहा है। कहा जा रहा है कि राम मंदिर में विराजमान होने वाली भगवान राम की नई मूर्ति दुनिया की सबसे अनोखी मूर्ति होगी। ऐसे में चलिए जानते हैं कि रामलला की पुरानी मूर्ति का क्या होगा।

बालस्वरूप में विराजेंगे रामलला

दरअसल राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की 51 इंच लंबी मूर्ति स्थापित की जाएगी। जिसमें रामलला बाल स्वरूप में होंगे। मूर्ति में रामलला को खड़े हुए दिखाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में रामलला कमल के फूल पर विराजमान होंगे। कमल के फूल के साथ उनकी लंबाई करीब 8 फीट होगी। वहीं बात करें रामलला की पुरानी मूर्ति की तो कहा जा रहा है कि नई मूर्ति को अचल मूर्ति कहा जाएगा, जबकि पुरानी मूर्ति उत्सव मूर्ति के तौर पर जानी जाएगी। नई मूर्ति के विराजमान के बाद उत्सवमूर्ति को श्रीराम से जुड़े सभी उत्सवों में विराजमान किया जाएगा। वहीं नई मूर्ति गर्भ गृह में भक्तों के दर्शन के लिए विराजमान रहेगी।

किसने बनी रामलला की मूर्ति

रामलला की श्याम वर्ण की 51 इंच ऊंची मूर्ति के लिए अरुण योगीराज का चयन हुआ है। साथ ही इस कमेटी ने रामलला की मूर्ति में बालपन की झलक, सौन्दर्य आकर्षण की बात कि गई थी। साथ ही कमेटी ने पत्थर की गुणवत्ता को भी परखागया था। ऐसे में यह जाना जरुरी है कि आखिर मंदिर में स्थापित होने वाली मूर्ति किसने बनाई। तो आईए आपको बताते है कि राम मंदिर मे स्थपित होने वाली 51 इंच ऊंची मूर्ति किसने बनाई।

इस मूर्ति के चयन के लिए मैसूर के शिल्पकार अरुण योगिराज को चुना गया है। अरुण योगीराज की ओर से बनाई गई रामलला की श्याम वर्ण मूर्ति 51 इंच ऊंची है। मूर्ति में भगवान 5 साल के बालरूप में नजर आ रहे हैं। मूर्ति कर्नाटक की कृष्ण शिला से बनी है। वही इस मूर्ति को बनाने में अरूण योगीराज को 6 महीने का वक्त भी लगा। अरुण योगिराज का परिवार सालों से मूर्तियां बनाता रहा है। अरुण के मुताबिक, पांच पीढ़ियों से उनका परिवार मूर्ति बनाने के काम में लगा है।

अरुण योगिराज अबतक 1 हजार से ज्यादा मूर्तियां बना चुके हैं। यहा तक किकेदारनाथ में आदिशंकराचार्य की मूर्ति भी अरुण योगिराज ने ही बनाई थी। साथ ही इंडिया गेट पर स्थापित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भी मूर्ति भी उन्होने ही बनाई थी। इनकी कला की पीएम मोदी भी कई बार तारीफ कर चुके हैं।

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