मानसी शर्मा /- दिल्ली के कुछ गांवों में वर्षों से हो रहे जलभराव का असर खेती पर पड़ा है। परेशान किसानों ने अब खेती छोड़कर दूसरे काम शुरू कर दिए हैं। इन गांवों में निकासी नहीं होने की वजह से खेतों का जलस्तर अधिक हो गया है और जमे हुआ पानी खारा हो गया है। इसके कारण बीज नहीं पनप नहीं पाते। सब्जियों व दलहन के पौधों को जरूरत से अधिक नमी मिलने के कारण फसलें नहीं उग नहीं पातीं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बीज को उगने के लिए भी आक्सीजन चाहिए, लेकिन अधिक पानी की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी जल जमाव की स्थिति में मिट्टी में नमक की मात्रा आ जाती है, क्योंकि जमा हुआ पानी और वर्षा का पानी जमीन के भीतर नहीं जा पा रहा है। इसे ‘ऊसर’ नमकीलापन कहते हैं, जिसके कारण बीज पनपने में दिक्कत आती है।
पैदावार न होने से किसानों ने शुरू किए वैकल्पिक कामः खेती मुश्किल से हो रही है और नमक की वजह से 25 प्रतिशत पैदावार ही मिल रही है। इसके अलावा लागत भी दोगुनी से ज्यादा हो गई है। पहले सब्जी उगाने वाले किसान एक एकड़ से दो-ढाई लाख कमा रहे थे और धान वाले किसान की 50 हजार से एक लाख की आमदनी थी। अब किसान घाटे में हैं, क्योंकि बीज-खाद व उपकरणों की लागत खेती से नहीं निकल रही है। जमीन है तो बुआई करनी पड़ती है, लेकिन आमदनी नहीं होती। वैकल्पिक काम के तहत अब किसान प्रापर्टी डीलर, बिल्डिंग मेटेरियल सप्लाई का काम, मिट्टी डालने का काम, नर्सरी का काम, इसके अलावा दुकान भी खोल ली है। अधिकांश किसान भैंस-गाय रखकर डेरी का काम कर रहे हैं।
गांवों की स्थितिः मदनपुर, रानीखेड़ा, रसूलपुर गांव की 50 प्रतिशत जमीन में पानी भरा है। 50 प्रतिशत कालोनियों में विकसित हो गईं, लेकिन खेती की 1000 हेक्टेयर करीब ढाई हजार एकड़ (2471.05) में से 500 एकड़ की जमीन में पानी भरा है। वहीं मुबारकपुर गांव की 10 प्रतिशत जमीन में पानी भरा हुआ है। घेवरा और मुंडका गांव में भी कुछ जमीन पर स्थायी तौर पर पानी भरा है। मुंडका और रानीखेड़ा के बीच ऐसी जगह हैं, जहां एक ही स्थान पर करीब दो सौ पेड़ सूख गए हैं।


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