मानसी शर्मा /- मदरसों को लेकर एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी है। एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मदरसे बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करने के लिए उचित जगह नहीं है। यहां दी जाने वाली शिक्षा प्रयाप्त नहीं है और यह शिक्षा के अधिकार के खिलाफ है।
एनसीपीसीआर ने कहा कि जो बच्चे स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं करते। वे प्राथमिक शिक्षा के अपने मौलिक अधिकारों जैसे मिड-डे मील, स्कूल यूनीफॉर्म आदि से वंचित हैं। बता दें कि एनसीपीसीआर बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था है।
मदरसा में पढ़ाई दिखावाः एनसीपीसीआर
एनसीपीसीआर ने कहा कि मदरसों द्वारा कुछ एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाना मात्र एक दिखावा है। मदरसा यह सुनिश्चित नहीं करता कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है या नहीं। एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मदरसे में आरटीई अधिनियम की धारा 19, 21,22, 23, 24, 25और 29के तहत मिले अधिकारों का भी अभाव है। इसके अलावा मदरसे शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करते हैं। मदरसा मनमाना तरीके से काम करता है।
इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले पर लगी थी रोक
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते पांच अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी। जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को खत्म कर दिया गया थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मदरसा कानून 2004 को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन बताया था। वहीं हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं थी। जिन पर सुनवाई करते हुए मदरसों का राहत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने करीब 17 लाख मदरसे छात्रों को राहत देते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की मामले की सुनवाई कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किए थे।
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