
सिंगापुर/शिव कुमार यादव/- भारतीय नौसेना ने चीन को जैसे का तैसा जवाब देने के लिए सिंगापुर में चीन की नाक के नीचे अपने पूर्वी बेड़े के तैनात कर दिया है। हिंद महासागर में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए भारतीय नौसेना ने अपने युद्धपोतों को दक्षिण चीन सागर में तैनात किया है। हाल में ही इस तैनाती में शामिल तीन युद्धपोत सिंगापुर पहुंचे हैं।
इसका खुलासा हाल में ही भारतीय नौसेना के तीन युद्धपोतों के सिंगापुर पहुंचने पर हुआ है। पूर्वी बेड़े के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग रियर एडमिरल राजेश धनखड़ के नेतृत्व में भारतीय नौसेना के तीन युद्धपोत गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर आईएनएस दिल्ली, दीपक क्लास फ्लीट टैंकर आईएनएस शक्ति और एंटी सबमरीन वॉरफेयर कॉर्वेट आईएनएस किल्टन 6 मई को सिंगापुर पहुंचे। सिंगापुर की नौसेना और भारत के उच्चायुक्त ने नौसेना के तीनों युद्धपोतों का गर्मजोशी से स्वागत किया।

भारतीय नौसेना ने क्या बताया
भारतीय नौसेना ने बताया कि यह यात्रा दक्षिण चीन सागर में भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े की परिचालन तैनाती का हिस्सा है। यह यात्रा कई कार्यक्रमों और गतिविधियों के माध्यम से दोनों समुद्री देशों के बीच दीर्घकालिक मित्रता और सहयोग को और मजबूत करने के लिए तैयार किया गया है। बंदरगाह में जहाजों के प्रवास के दौरान, विभिन्न गतिविधियों को शुरू करने की योजना बनाई गई है, जिसमें भारतीय उच्चायोग के साथ बातचीत, सिंगापुर गणराज्य की नौसेना के साथ पेशेवर बातचीत के साथ-साथ अकादमिक और सामुदायिक आउटरीच सहित अन्य गतिविधियां शामिल हैं, जो दोनों नौसेनाओं के साझा मूल्यों को दर्शाती हैं।
भारत और सिंगापुर के बीच पुराने नौसैनिक संबंध
भारतीय नौसेना और सिंगापुर गणराज्य की नौसेना के बीच तीन दशकों के सहयोग, समन्वय और नियमित यात्राओं, सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान और पारस्परिक प्रशिक्षण व्यवस्थाओं के साथ मजबूत संबंध रहे हैं। वर्तमान तैनाती दोनों नौसेनाओं के बीच मजबूत संबंधों को रेखांकित करती है।
चीन पर कसेगी नकेल
चीन दक्षिण चीन सागर के 80 फीसदी इलाके पर अपना दावा करता है। हालांकि, दक्षिण चीन सागर से सटे बाकी देश इस दावे को नकारते हैं। चीन का भारत के साथ पुराना सीमा विवाद है। ऐसे में दक्षिण चीन सागर में भारतीय युद्धपोतों की मौजूदगी से चीन की टेंशन बढ़ जाएगी। चीनी नौसेना भी हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति का विस्तार कर रही है। ऐसे में भारतीय नौसेना के उसकी नाक के नीचे रहने से चीन को दक्षिण चीन सागर पर भी अपना ध्यान लगाना पड़ेगा।
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