
अनीशा चौहान/- प्रसिद्ध सनातन धर्म प्रचारक पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने बकरीद से पहले पशु बलि प्रथा पर कड़ा विरोध दर्ज करते हुए एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, “हम किसी को जीवित नहीं कर सकते हैं, तो हमें किसी को मारने का अधिकार भी नहीं है।” उनका यह बयान सोशल मीडिया और धार्मिक गलियारों में तीव्र चर्चा का विषय बन गया है।
“अहिंसा सभी धर्मों का मूल है” – शास्त्री
धीरेंद्र शास्त्री ने यह बातें एक सुंदरकांड सम्मेलन के दौरान मीडिया से बातचीत में कहीं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “अहिंसा सभी धर्मों की आत्मा है और हर जीव को जीने का अधिकार है।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि “सनातन धर्म में भी इतिहास में बलि प्रथा रही है, लेकिन वर्तमान समय में इसे समाप्त करना ज़रूरी है क्योंकि अब हमारे पास प्रार्थना, उपचार और सहायता के अन्य साधन मौजूद हैं।”
बकरीद और बलि प्रथा पर उठे सवाल
शास्त्री के इस बयान के बाद देशभर में बकरीद और बलि प्रथा को लेकर धार्मिक और सामाजिक बहस छिड़ गई है। कुछ लोगों ने इसे आधुनिक समाज की संवेदनशीलता की ओर एक सकारात्मक पहल माना, जबकि कुछ ने इसे धार्मिक परंपराओं में अनुचित हस्तक्षेप करार दिया।
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने भी मुस्लिम समुदाय से “ईको-फ्रेंडली ईद” मनाने की अपील की थी। उनका कहना है कि समाज को अब करुणा और पर्यावरण की रक्षा के नजरिए से भी अपने धार्मिक रीति-रिवाजों पर विचार करना चाहिए।
पूर्व सपा सांसद की कड़ी प्रतिक्रिया
धीरेंद्र शास्त्री के बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आई है। मुरादाबाद से पूर्व सपा सांसद डॉ. एसटी हसन ने तीखा हमला बोलते हुए कहा, “ऐसे लोग मुसलमानों को गाली देकर सुर्खियाँ बटोरने की कोशिश करते हैं। हर कोई योगी आदित्यनाथ नहीं बन सकता।” उन्होंने शास्त्री से सलाह दी कि उन्हें अपने बयानों पर आत्मचिंतन करना चाहिए और धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुँचाएं।
बकरीद 2025 की तारीख
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बकरीद 7 जून 2025 को मनाई जाएगी। यह पर्व मुस्लिम समुदाय के लिए त्याग, समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। हालांकि इस बार यह पर्व केवल धार्मिक भावना का नहीं, बल्कि सामाजिक विमर्श का भी केंद्र बन गया है।
समाज में सहअस्तित्व की नई सोच की जरूरत
धीरेंद्र शास्त्री का बयान केवल किसी एक धर्म को लेकर नहीं है, बल्कि यह समग्र रूप से एक ऐसे समाज की ओर इशारा करता है जो अहिंसा, करुणा और सहअस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित हो। आज जब दुनिया हिंसा, संघर्ष और असहिष्णुता से जूझ रही है, ऐसे में इस तरह की सोच सामाजिक समरसता को नया आयाम दे सकती है।
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