
आज संपूर्ण विश्व की स्थिति अत्यंत नाजुक प्रतीत होती है। चारों ओर आतंकवाद और युद्धों के घने बादल मडरा रहे हैं। लोगों की आपसी मनमुटाव की बात तो गई गुजरी हो गई अब तो देशों के बीच मनमुटाव और वैरभाव के कारण आतंकवाद जैसी समस्या ने जन्म ले लिया है। आज की स्थिति में देशों के बीच मतभेद होने पर उस समस्या को शांतिपूर्वक सुलझाना छोड़ कर आतंकवाद का जाल फैला दिया जाता है।
हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी तो वर्षों से यही करता चला आ रहा है। पिछले दिनों पहलगाम में पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवादियों ने निर्दोष मासूम भारतीयों की नृशंस हत्या की उससे तो भारत जैसा शांतिप्रिय, अमन प्रिय और भाईचारे वाला देश भी आक्रोश से उबल पड़ा। परिणामतः भारत को सबक सिखाने के लिए और न्याय के लिए ऑपरेशन सिंदूर चलाना पड़ा। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान की चूलें हिला कर रख दी, लेकिन आगे भविष्य में पाकिस्तान इस कार्यवाही से सबक ले ले तो उसका भी भला और दुनिया का भी भला होता, भगवान करे उसे इस बार अकल आ जाए। वैसे देखें तो भारत में आतंकवादी की जड़े वहीं से फैली हुई हैं। पंजाब, काश्मीर सहित पूरा देश इस जाल में फैला हुआ है। दूसरे के घर में उपद्रव पाकिस्तान भले ही फैला रहा है, पर इस प्रक्रिया में उसका अपना घर कितना कंगाल हो गया है। व्यापार वनिज उद्योग धंधे उत्पादन सभी कुछ सत्यानाश कर बैठा पाकिस्तान ने अपने ही हाथों। शायद उसे अब तक इसका होश नहीं आया है। वर्ना वह अपनी शैतानियत से कब का बाज आ चुका होता। अब स्थिति यह है कि ठीक पाकिस्तान के नक्शे कदम पर भारत के अहसानों को धता बताते हुए बांग्लादेश भी उसी राह पर चल निकला है। पडोस के ही एक अन्य देश श्रीलंका की स्थिति भी “लिट्टे” जैसी आतंकवादी संस्था से निपटते-निपटते काफी गंभीर हो चली। फिर उसके बाद कमजोर आर्थिक स्थिति ने उसे भी कंगाल कर दिया, वह तो भारत था जिसने उसे नाजुक स्थिति से उबारा। चूंकि भारत भी श्रीलंका की आंतरिक खराब स्थिति के दुष्प्रभाव से अछूता नहीं रह पाया। भारत के अत्यंत लोकप्रिय प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी की हत्या लिट्टे (आंतकवादी संस्था) ने कर दी। उनका कुसूर नाम इतना था कि उन्होंने अपने पड़ोसियों के प्रति सहदयता दिखाई थी।
आतंकवाद अब सामान्य जीवन के लिये अंतराष्ट्रीय चुनौती के रुप में उपस्थित है। विश्व क्षितिज पर आंतकवाद की काली छाया परमाणु युद्ध से भी ज्यादा भयानक है। जिसका शिकार भारत ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व भी बना हुआ है। आज आवश्यकता है कि प्रत्येक मनुष्य अपने व्यस्त जीवन के कुछ क्षण निकाल कर यह विचार करे कि आंतकवाद की जड़ें पनपने न पाएं, इसको पनपने से न जाने कितने बेगुनाह व्यक्तियों को असमय जान काल का ग्रास बन जाना पड़ रहा है। कितने मासूमों के ऊपर से मां बाप का ही साया उठ गया।
ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना मनुष्य है। मनुष्य को बुद्धि प्रदान कर संवेदन शील प्राणी बनाकर शायद ईश्वर ने यही सोचा होगा कि वह धरती पर सुखसमृद्धि, मानवता का प्रसार करेगा। प्रेम और सद्भाव से धरती को स्वर्ग का रूप प्रदान करेगा। पर यह बात विचारणीय है कि क्या आज मानव ईश्वर की अपेक्षाओं के अनुरुप चल रहा है….? इसका उत्तर नकारात्मक है।
आज मानव आंतकवाद के साये से डरा हुआ है, सहमा हुआ है। समाज में आर्थिक असमानता भी आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। लोग अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अनुचित साधनों का प्रयोग अनुचित ढंग से करते हैं इनकी अंधी दौड़ मानवता को विछिप्त बना रही है। धर्मान्धता और भाषा की विविधता भी इस समस्या को बढ़ाने में सहायक हो रही है। हमारे ही देश के उन्नर दक्षिण राज्यों में मात्र भाषा के नाम पर कई हिंसात्मक आंदोलन हुये हैं। विश्व के देशों में समन्वय की कमी दिन पे दिन बढ़ रही है। राष्ट्रसंघ जैसी संस्थाएं भले ही तीसरे विश्व युद्ध को रोके हुये हैं, पर ये संस्थाएं मानव की भावनाएं नहीं बदल पा रही है, जिससे पर आतंकवाद के साये में सासें लेने को मजबूर हो रहा है। जातिवाद, रंगभेद की नीति की आड़ में भी आतंकवाद को प्रश्नय मिल रहा है ।
उदाहराणार्थ अफगानिस्तान,सीरिया, फिलीस्तीन,बंगलादेश, इजराइल सहित अन्य कई देशों की भयावह स्थिति आज मुंह बाये खड़ी है जिसका कोई समाधान हाल फिलहाल तो नहीं दिखाई दे रहा है। हालांकि आंतकवाद के निदान के लिये अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर कई कार्य किये गये हैं जैसे (1) राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक संगठनों का निर्माण (2) सामाजिक संस्थाओं का विकास (3) विभिन्न विषयांतर्गत सम्मेलनों का आयोजन (4) गुट निरपेक्ष आंदोलन (5) विभिन्न राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार (6) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग व संधि वार्तायें (7) शांति सभायें।
पर इतना सब कुछ किये जाने के बावजूद कही कोई कमी रह गई है, जो इस भयावह दानव से मानव को मुक्त नहीं करा पा रही है। इजरायल ने अपने देश में हो रहे आतंकवादी कार्रवाइयों के खिलाफ ताकत और युद्ध से काम लिया है जरूर, लेकिन यह भी कहीं ना कहीं उचित और सही इलाज नहीं जान पड़ रहा है । क्योंकि ताकत और युद्ध भले ही आतंकवाद के विरुद्ध किया जा रहा हो लेकिन इसमें सैकड़ो हजारों की संख्या में निर्दोषों की जान भी जा रही है जो अमानवीय है।
कुल मिलाकर इसके लिए सभी देशों को खास करके शक्तिशाली और प्रभावशाली देशों को आतंकवाद के विरुद्ध एकमत और एकजुट होना अनिवार्य है। इन सभी देशों को आतंकवाद की परिभाषा तेरे लिए अलग और मेरे लिए अलग रखना सर्वथा अनुचित है जो की आज यही हो रहा है। ऐसी स्वार्थ पूर्ण सोच से भी बाहर निकलना अत्यंत आवश्यक है। सर्वव्याप्त आंतकवाद का सामना हम सभी को पूरे साहस तथा मनोयोग से करना होगा, तभी तो हम आप हंसते खिलखिलाते चेहरों, नृत्य करने मोरों, तथा सोना उगलती धरती का दर्शन पा सकते हैं अन्यथा नहीं।
-सुरेश सिंह बैस ” शाश्वत”
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