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    सेना के लिए क्यों मौत का जाल बना पीर पंजाल ?

    -पुंछ-राजौरी में दो साल में 34 जवान शहीद,

    जम्मू-कश्मीर/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/– भारत के सुरक्षा बलों ने भले ही केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में आतंकियों पर लगाम लगा दिया है, मगर पीर पंजाल के राजौरी-पुंछ इलाके अभी भी सेना के लिए न केवल मुसीबत बने हुए हैं बल्कि मौत का जाल भी बने हुए हैं। गुरुवार को पुंछ में चार जवान आतंकवादियों के हमले में शहीद हो गए। इस इलाके में पिछले दो साल के दौरान 34 जवान शहीद हो चुके हैं।
               राजौरी-पुंछ इलाके में गुरुवार दोपहर आतंकियों ने सर्च ऑपरेशन पर निकले सुरक्षाबलों के काफिले पर हमला कर दिया। इस हमले में चार जवान शहीद हो गए, जबकि 3 गंभीर रूप से घायल हो गए। बताया जाता है कि डेरा की गली – बफलियाज रूट पर घने जंगलों में छिपे आतंकियों ने अचानक सुरक्षा बलों की जिप्सी और ट्रक पर गोलीबारी शुरू कर दी। हमले के बाद आतंकी फिर से घने जंगलों में चले गए। एक महीने के भीतर सेना के जवानों पर यह दूसरा बड़ा हमला है। ठीक एक महीने पहले 22 नवंबर को राजौरी के बाजीमाल क्षेत्र में सुरक्षा बलों पर हमले हुए थे, जिनमें दो कैप्टन समेत पांच जवान शहीद हो गए थे। 2023 में ही इस इलाकों में आतंकियों ने 6 हमले किए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस साल पूंछ-राजौरी सेक्टर में हुए मुठभेड़ों में सेना के 19 जवान शहीद हो चुके हैं। दो साल में यह आंकड़ा 34 के पार पहुंच गया है। इन हमलों के बाद यह सवाल उठने लगा है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (एलओसी) से सटा जम्मू के राजौरी-पुंछ इलाका सेना के चुनौती क्यों बन गया है?

    घने जंगल बने आतंकियों का पनाहगाह
    2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर में सेना के आक्रमण सर्च ऑपरेशन ने आतंकियों को बैकफुट पर ला दिया। इस साल केंद्रशासित प्रदेश में अब तक 47 आतंकी मारे जा चुके हैं। घाटी से खदेड़े जाने के बाद आतंकियों ने पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में राजौरी और पुंछ जिले के जंगल को अपना ठिकाना बनाया। राजौरी और पुंछ का एक हिस्सा पीओके से भी जुड़ता है। 4,304 वर्ग किलोमीटर में फैले पीओके के इस इलाके में जम्मू में घुसपैठ आसान है। आतंकियों के लिए दोनों जिलों के घने जंगल सेफ शेल्टर बन जाते हैं। राजौरी का डेरा की गली से बफलियाज के बीच 12 किलोमीटर में जंगल इतना घना है कि उसमें वाहनों के साथ घुसना आसान नहीं है। सेना के अभियान के दौरान आतंकी आसानी से पाकिस्तान में शिफ्ट हो जाते हैं। इस इलाके में प्राकृतिक गुफाएं भी हैं, जहां आतंकी छिपकर आसानी से डेरा डाले रहते हैं। 2021 में भाटाधुलियां जंगल में सुरक्षा बलों पर हमले के बाद 21 दिनों तक सर्च ऑपरेशन चला था, मगर आतंकी हाथ नहीं आए थे।

    मुखबिरों की गद्दारी भी सेना पर भारी
    पुंछ और राजौरी के इलाके में ऐसे लोगों की तादाद अधिक है, जिनकी रिश्तेदारियां पाकिस्तान में है। जब आतंकवाद चरम पर था, तब सुरनकोट, भट्टा धुर्रियान, थाना मंडी जैसे इलाके आईएसआई के सेंटर हुआ करते थे। एलओसी से करीब होने के कारण पाकिस्तानी सेना आसानी से आतंकियों को रसद, गोला बारूद और कैश पहुंचा देती है। रिश्तेदारी होने के कारण इस इलाके के गांवों में आतंकियों का ठिकाना बनाना आसान है। बताया जाता है कि कई बार मुखबिरों ने सुरक्षा बलों के साथ धोखेबाजी की है। कई बार लोग खौफ से भी आतंकवादियों का साथ देने को मजबूर हो जाते हैं। पिछले साल दिसंबर में आतंकियों ने दो युवाओं की हत्या कर दी थी। एक जनवरी 2023 को दहशतगर्दों ने सेना के समर्थन करने वाले ढांगरी गांव के सात ग्रामीणों की जान ले ली थी। 21 दिसंबर के हमले में भी मुखबिरों की सही सूचना नहीं देने का मामला सामने आया है। सुरक्षा बलों को आतंकी के छिपे होने की सूचना दी गई, जबकि वह जंगल में घात लगाकर बैठे थे।

    आतंकवादी की पोजिशन से ज्यादा नुकसान
    पिछले 22-23 नवंबर को बाजीमाल में पांच जवानों के शहीद होने के बाद सेना ने लंबा सर्च ऑपरेशन चलाया। उस दौरान आतंकी ऊंचाइयों पर छिपकर हमले करते रहे। जब कभी भी सुरक्षा बलों पर हमला होता है, तब यह पूरी तरह से रेकी के बाद की जाती है। घने जंगल में छिपे आतंकी ऊंचाई पर होते हैं, जबकि सुरक्षा बल नीचे होते हैं। आमने-सामने की लड़ाई के मौके कम ही होते हैं। 5 मई को राजौरी के केसरी हिल इलाके में भी सेना को ऊंचाई का खमियाजा ही भुगतना पड़ा। पाकिस्तानी सेना के रिटायर फौजी भी आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं, जो हमलावरों को लोकेशन बदलने और छिपने के तौर-तरीके बताते हैं । दूसरी ओर इस इलाके में भारतीय सुरक्षा बलों की मौजूदगी कश्मीर घाटी के मुकाबले कम है।

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