
पटना/अनीशा चौहान/- बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में SIR (विशेष गहन संशोधन) प्रक्रिया को लेकर सियासी हलचल और विरोध लगातार तेज़ हो रहा है। इस मुद्दे को लेकर आज विधानसभा परिसर में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के विधायकों ने काले कपड़े पहनकर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया।
पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी के सभी विधायक विधानसभा पहुंचे और SIR के खिलाफ प्रदर्शन किया। तेजस्वी ने इस मुद्दे को “लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश” बताते हुए कहा कि बिहार जो लोकतंत्र की जननी है, वहीं से अब चुनाव आयोग भाजपा के इशारे पर लोकतंत्र की हत्या कर रहा है।
“चुनाव आयोग बना भाजपा का प्रकोष्ठ” – तेजस्वी यादव
तेजस्वी यादव ने विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा,
“हम चाहते हैं कि SIR जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सदन में चर्चा हो, लेकिन सरकार चर्चा से भाग रही है। आखिर डर किस बात का है?” उन्होंने सवाल उठाया कि कौन इस देश का नागरिक है और कौन नहीं, इसका फैसला तो गृह मंत्रालय करता है, चुनाव आयोग का कार्य निष्पक्ष चुनाव कराना है, न कि किसी पार्टी का एजेंडा चलाना।
तेजस्वी ने SIR को “छुपा हुआ NRC” बताते हुए कहा कि इससे गरीब, दलित और अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से बाहर किया जा रहा है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस मुद्दे पर सरकार की चुप्पी संदेह पैदा करती है और विपक्ष इसे “सदन से सड़क तक” ले जाने को तैयार है।
“बिहार भगवान भरोसे चल रहा है” – तेजस्वी यादव
तेजस्वी यादव ने राज्य सरकार की कार्यशैली पर भी तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा,
“बिहार आज भगवान भरोसे चल रहा है। अपराध लगातार बढ़ रहे हैं, प्रशासन पल्ला झाड़ रहा है और जनता डरी हुई है।”
उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आड़े हाथों लेते हुए कहा,
“मुख्यमंत्री अचेत अवस्था में हैं, प्रधानमंत्री कुछ नहीं कहते, न ही मुख्यमंत्री कोई जवाब देते हैं। राज्य में जवाबदेही नाम की कोई चीज़ नहीं बची। सरकार का एकमात्र मकसद अब सिर्फ बिहार के खजाने को लूटना रह गया है।”
विपक्ष का संघर्ष जारी रहेगा
आरजेडी नेताओं ने साफ कर दिया है कि जब तक SIR जैसे मुद्दे पर सरकार स्पष्टीकरण नहीं देती और खुली चर्चा नहीं कराती, तब तक विरोध जारी रहेगा। उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाए और इसे लोकतंत्र के लिए “खतरनाक संकेत” बताया।
अब देखना यह होगा कि सरकार विपक्ष की इस मांग पर क्या रुख अपनाती है और क्या SIR जैसे संवेदनशील विषय पर कोई स्पष्ट नीति या जवाब सदन के पटल पर आता है या नहीं।
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