नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना महामारी के चलते देश व्यापी लाॅक डाउन को लेकर घरों मे कैद लोगों का अब दर्द छलकने लगा है। लाॅक डाउन के 40 दिन बाद गरीबों के पास न पैसा बचा है और न ही खाना है तो ऐसे में वह क्या करे कोई जवाब नही सूझ रहा है। वहीं निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के लिए तो यह लाॅक डाउन एक तरह से जेल से बदतर हो गया है। लोगों का कहना है कि गरीब होते तो कम से कम लाईन में लगकर खाना तो ले लेते लेकिन इज्जत के डर के चलते लाईन में भी नही लग पा रहे है। ऊपर से सरकार से भी उन्हे कोई मदद नही मिल पा रही है। अब करे तो क्या करें। काम-धंधे चैपट है और नौकरी भी खत्म हो चुकी है जिसके चलते अब इन परिवारों की भूखे मरने की नौबत आ गई है। ऐसे में सभी सरकार की तरफ उम्मीद लगाये है कि शायद कोई मदद मिल जाये।
जी हां नजफगढ़ की कालोनियों में ऐसे लोगों की संख्या काफी है जिनके पास आज न पैसे है और न ही खाना। यही हाल कम या ज्यादा पूरी दिल्ली की कालोनियों का हो गया है। काम-धंधे की चिंता छोड़ देश को बचाने की खातिर उक्त गरीबों की अब जान पर बन आई है। लोगों का कहना है कि किसी भी घर में एक महीने का ही राशन होता है और कुछ घर तो ऐसे है जिसके सदस्य रोज कमाते है और फिर खाते है। लाॅक डाउन के 40 दिन बीत चुके है। अभी भी काम धंधे बंद है, नौकरियां चली गई है। तो अब ऐसे परिवारों के पास क्या विकल्प बचा है। या तो वे भूखें मरे या फिर लाॅक डाउन की परवाह छोड़ बाहर निकले और कोरोना से मरे। लोगों का कहना है कि सरकार जो राशन दे रही है वह नाकाफी है और ऐसे परिवार भी है जिन्हे यह राशन भी नही मिल पा रहा है। लोग शिकायत भी कर रहे है फिर भी कोई सुनवाई नही हो रही है। वहीं ऐसे मध्यमवर्गीय परिवार भी है जिनके पास अब खाने का सामान नही बचा है। उनका दर्द यह है कि वह सामाजिक संस्थाओं द्वारा बांटे जा रहे भोजन को भी नही ले पा रहे है। क्योंकि भोजन के लिए लाईन में लगने से उनकी समाज में इज्जत जाने का डर है। साथ ही घर में बच्चे व बुजुर्गों को भूखा देखने के अलावा कोई चारा नही है। इस संबंध में जयविहार निवासी देवराज, विजय सिंह व रमेश कुमार का कहना है कि कालोनी में अनेकों ऐसे परिवार है जिनकों खाने के सामान की बहुत सख्त जरूरत है लेकिन सभी कोशिशें करने के बाद भी अभी तक कोई सहायता नही मिल पा रही है। जब अभी यह हालात है तो लाॅक डाउन के बाद क्या होगा। अभी तो कुछ मिल भी जाता है बाद में तो हालत और भी खराब हो जायेंगे। सरकार गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों की गुजर-बसर की एक सुनिश्चित योजना लाये तभी लोग जिंदा रह पायेंगे वरना कोरोना के साथ-साथ लोग भूख से ज्यादा मरेंगे।
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