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    बाल अपराध के मामले में देश की राजधानी दिल्ली पहले स्थान पर, मुंबई दूसरे पर

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- सूचना प्रोद्योगिकी के युग में जहां सूचनाओं को पाने के लिए इंटरनेट का सहारा लिया जाता है वहीं कुछ लोग इसी प्राद्योगिकी का गलत इस्तेमाल भी करते है। जिससे बाल अपराधों को न केवल बढ़ावा मिलता है बल्कि नाबालिग बच्चे लोगों की इस प्रवृति का सीधे शिकार होते है। देश में बाल अपराध पर पिछले चार साल के आंकड़े पर नजर डाले तो दिल्ली इसमें लगातार चार साल से पहले स्थान पर बना हुआ है और महानगर मुंबई का बाल अपराध के मामले में दूसरा स्थान है।
    जबकि बच्चों से यौन अपराध कानूनी तौर पर जघन्य माना गया है, जिसमें 10 वर्ष के आजीवन कारावास एवं मृत्यु दंड तक का प्रावधान है। इसके बावजूद बाल यौन अपराधों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। एनसीआरबी के 2015-17 के आंकड़े और संस्था पौरुष व राष्ट्रीय पुरुष आयोग समन्वय समिति दिल्ली द्वारा 2018 में किए गए सर्वे के अनुसार देशभर के शीर्ष पांच शहरों में बाल यौन अपराधों की स्थिति बहुत ही खराब है। उनका मानना है कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में लगभग हर हाथ में मोबाइल आ जाने से जहां समाज को कई लाभ हुए हैं, वहीं इसके विपरीत परिणाम भी सामने आ रहे हैं। मुफ्त असीमित इंटरनेट पैकेज के चलते पॉर्न फिल्मों के सहज उपलब्ध होने व चाइल्ड पोर्नोग्राफी, वेबसाइट एवं वेब सीरीज पर सरकार एवं कानूनी नियंत्रण न होने के कारण आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का सीधा शिकार नाबालिग बच्चे हो रहे हैं।

    देश के टॉप पांच शहरों में यौन अपराधों की स्थिति –
    देश के टॉप पांच शहरों में 2018 में दिल्ली, बाल यौन शोषण के 7,665 मामलों के साथ अव्वल रहा, वहीं मुंबई 4,206 मामलों के साथ दूसरे, बंगलूरू 1771 मामलों के साथ तीसरे, पुणे 1508 चैथे और इंदौर 941 मामलों के साथ पांचवें स्थान पर रहा है। इंदौर में बाल यौन अपराधों के प्रतिदिन औसतन 2.6 और हफ्ते में 18 मामले दर्ज होते हैं।
    इसी तरह देश के शीर्ष सात प्रदेशों में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, गुजरात और मध्यप्रदेश क्रमशः पहले, दूसरे, तीसरे, चैथे, पांचवें, छठे और सातवें स्थान पर हैं।

    शहर 2015 2016 2017 2018
    दिल्ली 8035 7392 6844 7665
    मुंबई 3187 3400 3790 4206
    बंगलूरू 1068 1333 1582 1771
    पुणे 1095 1180 1335 1508
    इंदौर 478 631 798 941

    क्या है पॉक्सो कानून-
    यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2002 में बनाया गया था। इसमें संशोधन कर नया विधेयक 2019 में बनाया गया, जो यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बच्चों के संरक्षण जैसे उपबंध करता है।

    18 राज्यों में विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित
    सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष अदालतें गठित करने का आदेश दिया था। इसके तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराध और बलात्कार के मामलों की त्वरित सुनवाई हेतु केंद्र सरकार ने 1,023 विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतें गठित करने की मंजूरी दी थी, जिसमें 18 राज्यों में ऐसी अदालतें गठित की जा चुकी हैं।

    सरकार ने यौन अपराधियों का एक राष्ट्रीय डाटा-बेस बना रखा है, जिसमें 6,20,000 अपराधियों को शामिल किया गया है। संस्था पौरुष इंदौर के अध्यक्ष और राष्ट्रीय पुरुष आयोग समन्वय समिति दिल्ली के राष्ट्रीय प्रवक्ता अशोक दशोरा के मुताबिक पॉर्नसाइट पर बैन लगाना एवं सामाजिक चेतना को जागृत करना बेहद जरूरी है।

    90 फीसदी मामलों को दबा दिया जाता है
    भारतीय समाज और कानून इस सोच से ग्रसित है कि यदि यौन अपराध किसी बालिका के साथ हुआ है तो यह अत्यन्त जघन्य अपराध है, जबकि किसी बालक के साथ यौन दुराचार को परिवार, मीडिया, समाज और कानून सभी काफी हल्के में लेते हैं। सच तो यह कि बालकों के साथ होने वाले 90 फीसदी यौन दुराचार की शिकायत ही नहीं की जाती है।

    कानूनी तौर पर नाबालिग बच्चों के प्रति यौन अपराध के अत्यंत कड़े प्रावधान हैं। बाल यौन अपराधों को जघन्य की श्रेणी में रखा गया है, जिसमें मृत्यु दंड तक की सजा है, लेकिन सिर्फ कठोर कानून बना देने से इन अपराधों पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। सरकार द्वारा सामाजिक चेतना जागृत करते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर बैन लगाकर काफी हद तक ऐसे अपराधों की रोकथाम की जा सकती है।

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