
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में मई महीने से सीमा पर जारी तनाव के सुलझने की उम्मीद जग गई है। इसके दिवाली से पहले खत्म होने के आसार नजर आ रहे हैं। दोनों देशों की सेना लद्दाख सीमा पर फिंगर इलाके में सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमत हुई हैं। सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से पूरी की जाएगी।
सीमा पर तनाव घटाने के लिए छह नवंबर को चुशुल में आयोजित दोनों देशों के बीच कॉर्प्स कमांडर स्तर की वार्ता में पीछे हटने की इसे योजना पर चर्चा की गई। दोनों देशों की सेनाओं ने पूर्वी लद्दाख सेक्टर के कुछ हिस्सों से पीछे हटने पर सहमति व्यक्त की है, जिसके तहत वे इस साल अप्रैल-मई वाले स्थानों पर वापस लौट जाएंगी। सूत्रों ने बताया कि पीछे हटने की योजना के मुताबिक, दोनों देशों के सेनाएं पैंगोंग त्सो झील वाले इलाके को पहले हफ्ते में खाली करेंगी। साथ ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से एक महत्वपूर्ण दूरी तक टैंक और सैनिकों को पीछे हटाएंगी। दोनों सेनाओं के बीच तीन चरणीय प्लान पर सहमति बनी है।
कॉर्प्स कमांडर स्तर की वार्ता में हुई चर्चा के मुताबिक, युद्धक टैंकों और हथियारबंद वाहनों को एक दिन के भीतर सीमा से पीछे हटाया जाएगा। छह नवंबर को हुई इस वार्ता में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव और सैन्य संचालन महानिदेशालय के ब्रिगेडियर घई ने हिस्सा लिया था। योजना के दूसरे चरण के तहत भारत और चीन की सेनाओं को लगातार तीन दिन तक पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे से अपने 30 फीसदी सैनिकों को पीछे हटाना होगा। इस प्रकार भारतीय सेना पीछे हटते हुए अपनी धान सिंह थापा पोस्ट पर आ जाएगी। वहीं, चीनी सेना फिंगर 8 के पास लौटेगी। तीसरे और आखिरी चरण में दोनों सेनाएं पैंगोंग झील के दक्षिणी क्षेत्र से अपने सैनिकों को पीछे हटाएंगी। इसमें चुशुल और रेजांग ला की पहाड़ियां और क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां भारत और चीन की सेनाओं को पीछे हटना है।
भारत और चीन सीमा पर पीछे हटने की प्रक्रिया में प्रगति को देखने के लिए एक संयुक्त तंत्र पर भी सहमत हुए हैं। इसके तहत दोनों देशों के बीच प्रतिनिधि सभाएं होगीं और मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) का प्रयोग कर पीछे हटने की प्रक्रिया को जांचा जाएगा। पूर्वी लद्दाख की गलवां घाटी में हुई झड़प के बाद से सीमा विवाद को लेकर भारत काफी फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहा है, क्योंकि चीन सरकार पर भारत भरोसा नहीं कर सकता है। गलवां घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। इस झड़प में चीनी पक्ष के भी 43 जवान हताहत हुए थे।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीय सुरक्षा टीम की अगुवाई में भारतीय सेना ने पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर कुछ महत्वपूर्ण पहाड़ियों पर कब्जा किया है। पीएम मोदी की इस टीम में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत, आर्मी चीफ जनरल मनोज मुकुंद नरवणे और एयरफोर्स चीफ आरकेएस भदौरिया शामिल हैं।
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