60 की बजाये अब 43 फीसदी जनसंख्या पर हर्ड इम्यूनिटी संभव

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

October 2024
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031  
October 25, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

60 की बजाये अब 43 फीसदी जनसंख्या पर हर्ड इम्यूनिटी संभव

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना वायरस के तोड़ के लिए वैज्ञानिक सभी समीकरणों व तरीकों को आजमा रहे हैं। कुछ इसका तोड़ वैक्सीन व दवाईयों में ढू़ढ रहे है तो कुछ इसे खत्म करने को लेकर गणित का भी इस्तेमाल कर रहे है। ब्रिटेन में अभी हाल ही में हुए एक शोध में दावा किया गया है कि हर्ड इम्यूनिटी के इस्तेमाल से कोरोना को खत्म किया जा सकता है जिसके लिए अब 60 नही बल्कि 43 फीसदी जनसंख्या से ही काम चल सकता है। लेकिन भारत को लेकर जानकारों का मानना है कि भारत जैसे देश में इसका इस्तेमाल करने से मानवता और स्वास्थ्य महकमे पर और बोझ बढ़ सकता है।
                            इस अध्ययन को जर्नल साइंस में छापा गया है और इसे नॉटिंघम यूनिवर्सिटी और स्टॉकहोल्म यूनिवर्सिटी के गणतिज्ञों ने तैयार किया है। इस अध्ययन में लोगों को उम्र और सामाजिक गतिविधियों के आधार पर अलग-अलग श्रेणी में बांटा था। ये मॉडल बताता है कि संक्रमण को तोड़ने के लिए जितने लोगों को संक्रमित करने की जरूरत है उनकी संख्या कुल जनसंख्या का 43 फीसदी है जबकि पहले ये 60 फीसदी था।
                            स्टॉकहोल्म यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और शोध के अध्यक्ष टॉम ब्रिटोन का कहना है कि ये एक सकारात्मक परिणाम है कि हर्ड इम्यूनिटी के बारे में पहले चल गया लेकिन इसके लिए इम्यूनिटी पर जोर देना ज्यादा जरूरी है। इस शोध पर वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा कि 43 फीसदी संख्या को पूर्ण रूप से नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि शोध का ओर गहराई से समझने की जरूरत है कि जनसंख्या कैसे हर्ड इम्यूनिटी को प्रभावित कर सकती है। नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और शोधकर्ता फ्रेंक बॉल का कहना है कि मौजूदा कोविड-19 महामारी के लिए हमारे शोध में कई परिणामों की संभावना है और किसी मॉडल के जरिए योजना बनाने में किसी व्यक्तिगत गतिविधि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
                             शोध में उम्र को छह और गतिविधियों को तीन श्रेणी जैसे उच्च, मध्यम और निम्न में बांटा गया है और ऐसा अनुमान लगाया गया है कि हर उम्र वाली श्रेणी में 50 फीसदी लोग सामान्य गतिविधि कर रहे हैं, 25 फीसदी उच्च और 25 फीसदी निम्न स्तर की गतिविधियां कर रहे हैं। शोध में पाया गया कि बेसिक रिप्रोडक्शन नंबर यानि कि एक इंसान से कितने इंसान कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं, वो 2.5 है।
                             यहां वैज्ञानिकों ने दो महत्वपूर्ण बातें सामने रखी हैं। पहली कि उम्र से ज्यादा सामाजिक गतिविधियां महत्व रखती हैं क्योंकि कोरोना वायरस गतिविधियों के माध्यम से ज्यादा तेजी से फैल सकता है और दूसरी बात यह कि हर्ड इम्यूनिटी को दो तरीके हासिल किया जा सकता है, एक तो पर्याप्त मरीजों को वैक्सीन देना या फिर पर्याप्त मरीजों की इम्यूनिटी को मजबूत करना। हर्ड इम्यूनिटी का स्तर तब कम हो जाता है जब रोग प्रतिरोधक क्षमता वैक्सीन से आती है। हर्ड इम्यूनिटी पर बहस पिछले छह महीनों से चली आ रही है, यूनाइटेड किंगडम ने तब हर्ड इम्यूनिटी की योजना से हाथ जोड़ लिए जब एक स्टडी में कहा गया कि ऐसा करने से लाखों की संख्या में लोगों की मौत हो सकती है। जानकारों का कहना है कि कोरोना से ठीक हुए मरीजों की एंटीबॉडी को लेकर किए गए शोध में पता चलता है कि संक्रमण के दो से तीन महीने बाद एंटीबॉडी में गिरावट देखी गई है।  
                             हैदराबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर वी रमन धारा का कहना है कि अगर हर्ड इम्यूनिटी सफल भी हो जाती है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि मरीज में एंटीबॉडी की स्तर एक समान हो। उन्होंने कहा कि इम्यूनिटी की निर्भरता सुरक्षा करने वाली एंटीबॉडी के बनने पर है। अगर हर्ड इम्यूनिटी सुरक्षा करने वाली एंटीबॉडी बना पाती है तो ही 43 फीसदी का आंकड़ा छुआ जा सकता है।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox