
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/आॅटो बाजार डेस्क/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- भारतीय गाड़ी बाजार में तेजी से बदलाव आ रहा है। कुछ समय पहले तक ज्यादातर गाड़ियों के शौकीन डीजल की गाड़ियों को प्राथमिकता देते थे वहीं अब ग्राहक डीजन की बजाये पेट्रोल की गाड़ियों को तरजीह दे रहे है। वित्त वर्ष 20-21 की पहली छमाही में बिकने वाली हर पांच एसयूवी में से तीन पेट्रोल इंजन वाली थीं। वहीं मिडसाइज एसयूवी सेगमेंट में पेट्रोल वैरियंट्स की हिस्सेदारी 38 फीसदी तक पहुंच गई है।
भारतीय बाजार में अब डीजल व्हीकल्स की बजाय पेट्रोल गाड़ियां की मांग बढ़ रही है। हालांकि ये भारत ही नहीं ये ट्रेंड पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। हाल ही में किआ मोटर्स ने जब बिक्री के आंकड़े जारी किए थे तो उसने खुलासा किया था कि कॉम्पैक्ट एसयूवी सोनेट के 1.0 लीटर और 1.2 लीटर पेट्रोल इंजन की 60 फीसदी बुकिंग हुई है। जबकि बाकी हिस्सेदारी डीजल वैरियंट्स की है।
ऑटोमोबाइल कंपनियों की संस्था सियाम की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में पेट्रोल एसयूवी की हिस्सेदारी बढ़ी है। मिडसाइज सेगमेंट के एसयूवी खरीदार भी डीजल की बजाय पेट्रोल वैरियंट्स को प्राथमिकता दे रहे हैं। वित्त वर्ष 20-21 की पहली छमाही में बिकने वाली हर पांच एसयूवी में से तीन पेट्रोल इंजन वाली थीं। वहीं मिडसाइज एसयूवी सेगमेंट में पेट्रोल वैरियंट्स की हिस्सेदारी 38 फीसदी तक पहुंच गई है।
आंकड़ों के मुताबिक पेट्रोल से चलने वाले पैसेंजर्स व्हीकल की मांग में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2017 में 60 फीसदी, 2018 में 60 फीसदी, 2019 में 64 फीसदी, 2020 में 71 फीसदी और अप्रैल से अगस्त 2020 तक 81 की बढ़ोतरी हुई। छोटी कारों में अब डीजल का शेयर मात्र एक फीसदी और सेडान कारों में यह मात्र 6 फीसदी तक ही रह गया है, जबकि वित्त वर्ष 2018 में छोटी कारों में यह 13 फीसदी और सेडान कारों के लिए वित्त वर्ष 2018 में यह 49 फीसदी तक था। अक्तूबर में ही छोटी गाड़ियों में डीजल इंजन की हिस्सेदारी घट कर 0.3 फीसदी तक रह गई, जबकि चालू वित्त वर्ष में एंट्री और मिडसाइज एसयूवी में पेट्रोल इंजन की हिस्सेदारी बढ़ कर 57 फीसदी तक पहुंच गई है।
ऑटो सेक्टर के जानकारों का कहना है कि इस अंतर की पहली बड़ी वजह बीएस6 नॉर्म्स को माना जा सकता है। उनका कहना है कि बीएस6 मानकों के चलते डीजल इंजन की निर्माण लागत में बढ़ोतरी हो गई। पेट्रोल इंजन के मुकाबले ये अंतर 2 लाख रुपये तक पहुंच गया। यही वजह थी कि रेनो, मारुति, निसान, स्कोडा और फॉक्सवैगन ने डीजल इंजन के निर्माण से ही तौबा कर ली। हालांकि मारुति ने डीजल इंजन को फिर से बनाने का एलान किया है। जबकि बाकी कंपनियां केवल प्रीमियम कारों में ही डीजल इंजन दे रही हैं, छोटी कारों के लिए बनाना बंद कर दिया है।
वहीं दूसरी बड़ी वजह डीजल और पेट्रोल की कीमत में कम अंतर। दोंनों ईंधन की कीमतों में अंतर लगातार कम हो रहा है, जो ग्राहकों को हतोत्साहित कर रहा है। जानकारों का कहना है कि जब पेट्रोल और डीजल वाहन की रनिंग कॉस्ट लगभग बराबर तक पहुंच जाएगी तो ग्राहक डीजल गाड़ी के लिए अतिरिक्त रकम क्यों चुकाएंगे। कुछ शहरों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अब मात्र 6 से 7 रुपये तक का ही अंतर रह गया है, जबकि 2012 में यह 31 रुपये तक था।
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