नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/न्यूयार्क/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- विश्व में कोरोना वैक्सीन पर कई देश लगातार काम कर रहे है और कुछ इसे बनाने के करीब भी पंहुच चुके है। सोमवार को कोरोना के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन ट्रायल शुरू हो चुका है जिसमें 30 हजार लोगों पर ट्रायल किया जा रहा है। हालांकि अभी तक इसकी कोई गारंटी नहीं है कि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ एंड मॉडर्ना इंक के जरिए बनाई गई ये वैक्सीन सचमुच में कोरोना से बचा लेगी। वॉलंटियरों को ये भी नहीं बताया जाएगा कि उनको वास्तविक वैक्सीन दी गई है या फिर नकली वैक्सीन से टेस्ट किया गया है।
दो खुराक दिए जाने के बाद वैज्ञानिक इस बात का बहुत नजदीक से अध्ययन करेंगे कि अपने रोजमर्रा के काम करने के दौरान कौन सा ग्रुप ज्यादा संक्रमित होता है, खासकर उन इलाकों में जहां अभी इस वायरस पर काबू नहीं पाया जा सका है और वो तेजी से फैल रहा है।
अमेरिका में कोरोना विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फाउची ने हाल ही में कहा था, दुर्भाग्यवश अमेरिका में अभी बहुत सारे संक्रमित लोग हैं, इसका जवाब जानने के लिए। मॉडर्ना का कहना है कि वैक्सीन का टेस्ट जॉर्जिया के सवाना में किया गया था जो कि अमेरिका भर में फैले सात दर्जन से ज्यादा ट्रायल केंद्रों में से एक है। न्यूयॉर्क के बिंगैंमटन में कार्यरत एक नर्स मेलिसा हार्टिंग भी 30 हजार वॉलंटियर्स में से एक हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस काम में मदद करने के लिए इसे अपनी ड्यूटी समझकर किया। हार्टिंग ने कहा, श्मैं बहुत उत्सुक हूं। कोरोना की लड़ाई में सबसे आगे रहने वाले लोग, जिन्हें वायरस संक्रमण का खतरा है, उनके साथ मिलकर इस वायरस को खत्म करना मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
चीन और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जरिए बनाई गई वैक्सीन का इस महीने के शुरू में अंतिम-स्टेज टेस्ट ब्राजील और दूसरे ज्यादा प्रभावित देशों में शुरू हुआ, लेकिन अमेरिका में किसी भी वैक्सीन को इस्तेमाल करने के लिए जरूरी है कि खुद अमेरिका में उसका ट्रायल हुआ हो और अमेरिका में ट्रायल का पैमाना भी ऊंचा है। हर महीने सरकारी फंड से चल रहा कोविड-19 प्रिवेन्शन नेटवर्क वैक्सीन की खोज में आगे चल रहे उम्मीदवार के बारे में एक नया शोध सार्वजनिक करेगा। इतने बड़े पैमाने पर जो शोध किए जा रहे हैं उसका मकसद सिर्फ ये जानना नहीं है कि वैक्सीन काम कर रही है या नहीं, बल्कि हर संभावित वैक्सीन सुरक्षित है या नहीं उसको जांचने की भी जरूरत है और शोध के एक ही पैमाने से वैज्ञानिकों को हर वैक्सीन की तुलना करने में मदद मिलेगी।
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