राम और रावण का युद्ध आज भी लड़ा जा रहा है। हर युग में भगवान ने अवतार लेकर पृथ्वी से पाप और पापियों का संहार किया है। त्रेता युग में भी ईश्वर ने राम के रूप में अवतार लेकर उस समय के घोर अत्याचारी लंकापति रावण का नाश किया। बुराई पर अच्छाई की विजय का ही प्रतीक है विजयादशमी। रामरूपी सत्य की रावण रूपी असत्य प्रवृत्तियों पर यह विजय हर युगों में होती रहेगी। बुराई पर अच्छाई की यह विजय आने वाले भविष्य के युगों में भी तब तक होती रहेगी, जब तक थोड़े बहुत लोग धार्मिक-आध्यात्मिक प्रेरणा से भगवान राम के जीवन-आचरण को अपने जीवन में मर्यादित ढंग से लागू करते रहेंगे।
जैसे रावण असुरों का राजा होते हुए भी स्वयं असुर नहीं था, उसकी प्रवृत्तियां दैत्यों जैसी असुर प्रकृति की थीं, तभी उसे असुराधिपति का संबोधन दिया गया। हालांकि रावण ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ था। वह विश्रवा ऋषि का पुत्र था और उसकी माता का नाम कैकसी था। धनपति कुबेर उसका सौतेला भाई था, जो देवताओं की श्रेणी में गिने जाते हैं और धन के देवता माने जाते हैं। रावण अपनी अपरिमित शक्ति के कारण मदान्ध हो गया था। उसने अपने भाई कुबेर से युद्ध करके उसका पुष्पक विमान छीन लिया और कई देवताओं को भी पराजित किया। हालांकि कपिराज बाली के सामने रावण कभी नहीं जीत पाया और उसे देखकर दुम दबाकर भागता था।
रावण ने देवताओं से अमरत्व छीनकर लंका को अपनी राजधानी बनाया। ग्रंथों के अनुसार, रावण की लंका में सभी प्रकार की विलासिता, ऐश्वर्य और सुख-साधनों की कोई कमी नहीं थी। स्वर्ण से निर्मित लंका के राजभवन में रत्न-जड़ित आसन, सुगंधित द्रव्य, और रत्नों के ढेर थे। इतने वैभवशाली जीवन का अधिष्ठाता होने के बावजूद, रावण अपने अहंकार और लोभ के कारण अपने सर्वनाश को आमंत्रित कर बैठा। पांडित्य और विद्वत्ता के बावजूद उसकी मति भ्रष्ट हो गई थी।
दशरथ पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि पुरुष हैं। वे न केवल हिंदुओं के आराध्य हैं, बल्कि सभी धर्मों के लिए आदरणीय हैं। यह प्रमाण इसी से मिलता है कि वाल्मिकी, तुलसीदास के साथ-साथ रहीम सहित कई मुस्लिम कवियों ने भी राम का महिमा गान किया है। राम के वनवास के दौरान चित्रकूट और कामदगिरि की धार्मिक महत्ता है, जहां राम ने 12 वर्षों का समय बिताया।
राम-रावण युद्ध की चर्चा होती है, तो अंजनी पुत्र हनुमान और श्री लक्ष्मण का उल्लेख भी जरूरी है। रावण ने राम की कपि सेना को बहुत हल्के में लिया था, जो उसकी अहंकारिता का परिचायक था। लेकिन अंततः रावण की मृत्यु राम के हाथों हुई।
वाल्मिकी और तुलसी रामायण के अनुसार, रावण का वध आश्विन शुक्ल नवमी के दिन हुआ, जबकि समयादर्श रामायण के अनुसार यह युद्ध 18 दिन चला और चतुर्दशी के दिन रावण का अंत हुआ। राम और रावण का यह युद्ध दो संस्कृतियों, सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म और पाप-पुण्य के बीच का था। राम कथा भारतीय संस्कृति का आधार और मानव जीवन की आत्मा है, जिसका मूल्य शाश्वत है।
आज भी दशहरे पर रावण के पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन क्या रावण की बुराई भी खत्म हो गई है? नहीं। आज भी हमारे समाज में बुराई किसी न किसी रूप में विद्यमान है। अगर हम राम के दिखाए मार्ग का अनुसरण करें, तो हम भी आज के राम और रावण युद्ध में विजेता कहलाएंगे।
अंत में, सभी पाठकों को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं जीवन संग्राम में विजयी होने की शुभकामनाएं!
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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