अपने अंचल के पौराणिक और ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध शिवालय जहां भगवान शिव शंकर का शिवलिंग लक्ष्मण जी और भगवान राम द्वारा स्थापित किया हुआ शिवलिंग स्थापित है । इस शिवलिंग की मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं। अतः आज हमने भरी बरसात के समय गिरते पानी में सोच लिया है कि आज दर्शन करके रहेंगे। चूंकि हम बिलासपुर से निकल चुके हैं और लक्ष्मणेश्वर शिव मंदिर यहाँ से करीब साठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जब हम घर से निकले धीमे-धीमे पानी बरस रहा था। चारों तरफ काले काले बादल छाए हुए थे। लग रहा था आज दिन भर पानी गिरेगा, लेकिन हम निकल पड़े ,और आखिरकार अपने गंतव्य स्थान पहुँच गए। खरौद नगर में स्थित लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में अनूठा है।
मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। माना जाता है कि यहां रामायणकालीन शबरी उद्धार और लंका विजय के निमित्त भ्राता लक्ष्मण की विनती पर भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण के साथ खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात ‘लक्ष्मणेश्वर महादेव’ की स्थापना की थी। मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। इसे लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख लिंग (छिद्र) हैं। इसीलिए ऐसी मान्यता है की इस शिवलिंग में एक लाख चावल दानों की पोटली चढ़ाने से असीम पुण्य फल की प्राप्ति होती है अतः हमने भी एक लाख चावल दानों की पोटली पुजारी जी से निर्धारित शुल्क देकर ली और शिवलिंग में समर्पित किया। ऐसा कहा जाता है की शिवलिंग के एक लाख छिद्रों में से एक छिद्र में पातालपुरी का पथ है। इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में हुआ था। यह नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार के अंदर 110 फुट लम्बा और 87 फुट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर 87 फुट ऊंचा और 30 फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। इसमें आठवीं शताब्दी के इंद्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख है। मंदिर के वाम भाग कचंद्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्य नाम की दो रानियां थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्या से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए। उन्होंने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पाश्र्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तंभ हैं। इनमें से एक स्तंभ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अद्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दूसरे स्तंभ में राम चरित से संबंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से संबंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरुष और दंडधारी पुरुष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्ति है।
मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएं हैं। इसके नीचे प्रत्येक पाश्र्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। मंदिर के शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं इसलिए इसे ‘लक्षलिंग’ कहा जाता है। इन लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा है जो पातालगामी है क्योंकि उसमें कितना भी जल डालो वह उसमें समा जाता है, वहीं लिंग में एक अन्य छिद्र के बारे में मान्यता है कि वह अक्षय छिद्र है। उसमें हमेशा जल भरा रहता है। जो कभी सूखता ही नहीं है। लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुंड में चले जाने की भी मान्यता है। लक्षलिंग जमीन से लगभग 30 फुट ऊपर है और इसे स्वयंभू लिंग भी माना जाता है। लक्षलिंग के पीछे रामायण की एक रोचक कहानी है। रावण ब्राह्मण था। अतः उसका वध करने के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इससे मुक्ति पाने के लिए राम-लक्ष्मण ने शिव के जलाभिषेक का प्रण लिया। लक्ष्मण सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों से जल एकत्रित करने निकले। इस दौरान गुप्त तीर्थ शिवरीनारायण से जल लेकर अयोध्या के लिए निकलते समय वह रोगग्रस्त हो गए। रोग से छुटकारा पाने के लिए लक्ष्मण ने शिव आराधना की। प्रसन्न होकर शिव ने लक्ष्मण को दर्शन दिए और लक्षलिंग रूप में विराजमान हो गए। लक्ष्मण ने लक्ष लिंग की पूजा की और रोग मुक्त हो गए इसीलिए यह मंदिर लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तब से इसे लोग लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से ही जानते हैं। खरौद में स्थित अन्य प्रमुख मंदिरों में इंदल देव तथा शबरी मंदिर भी शामिल हैं जो अत्यंत प्राचीन व पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। लक्ष्मणेश्वर मंदिर के निर्माण के पीछे की बड़ी ही रोचक है ! साथ ही इस मंदिर का निर्माण कुछ इस किया गया है कि सुनने वाले और सुनने वाले को इस पर करना मुश्किल होगा ! विद्वानों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण काल छठी शताब्दी माना गया है! प्रति वर्ष यहाँ महाशिवरात्रि के मेले में शिव की बारात निकाली जाती है! छत्तीसगढ़ में इस नगर की काशी के समान मान्यता है कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असुरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा। छत्तीसगढ़ की काशी कहे जाने वाले नगर पंचायत खरौद में सावन के चौथे सोमवार के बाद शुक्रवार को शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ जुटी हुई है. सुबह से ही शिव मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है, और हर तरफ शिवभक्त हर-हर महादेव के नारों से गूंज रहे हैं। मंदिर एक ऐतिहासिक और अद्भुत स्थान है. इस मंदिर के शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं, जिसका मंदिर के दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अतः इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवीं शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के बाएं भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें चव्वालिस श्लोक हैं। चंद्रवंशी हैहयवंश में रतनपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है।
– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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