संसद भवन में चल रहे मानसून सत्र के साथ-साथ संसद भवन से कुछ ही दूरी पर जंतर-मंतर पर चल रही किसान संसद में आज कृषि कानूनों पर तीखी बहस हुई। जिसमें कृषि मंत्री ने कृषि कानूनों पर अपनी नाकामी मानते हुए इस्तीफे की पेशकरश कर दी। जिससे स्थिति जटील हो गई लेकिन वहीं विपक्ष ने इसे अपनी जीत बताया। इसके उपरान्त किसान संसद में शुक्रवार को आमसहमति से एक प्रस्ताव पारित किया गया। पीएमसी बायपास अधिनियम को रद्द करने की मांग की गई। प्रस्ताव में एपीएमसी बायपास अधिनियम या कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम के क्रियान्वयन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थगित किये जाने से पहले जून 2020 से जनवरी 2021 तक पड़े इसके प्रतिकूल प्रभाव पर गौर किया गया।
किसान संसद में शुक्रवार की कार्यवाही संसद के कामकाज की तरह ही हुई, जिसका मॉनसून सत्र चल रहा है। किसान संसद के दूसरे दिन संयुक्त किसान मोर्चा ने एक स्पीकर (हरदेव अर्शी), एक डिप्टी स्पीकर (जगतार सिंह बाजवा) और एक कृषि मंत्री भी नियुक्त किया। किसान संसद में ’कृषि मंत्री’ रवनीत सिंह बरार (37) ने अपने इस्तीफे की पेशकश की क्योंकि वह किसानों के मुद्दे का हल करने में नाकाम रहे और उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।
प्रस्ताव में कहा गया है कि किसानों को कहीं अधिक संख्या में संचालित होने वाली मंडियों की जरूरत है ना कि कम संख्या में। प्रस्ताव में केंद्रीय अधिनियम को फौरन रद्द करने की मांग करते हुए दावा किया गया कि इसे संविधान की अनदेखी की है। प्रस्ताव में सरकार से मंडी प्रणाली में सुधार लाने की भी मांग की गई ताकि किसानों के हितों की रक्षा हो सके।
किसान संसद में एक घंटे का प्रश्नकाल भी रखा गया था, जिसमें कृषि मंत्री पर सवालों की बौछार की गई, जिन्होंने केंद्र के नये कृषि कानूनों का बचाव करने की पुरजोर कोशिश की। मंत्री ने संसद को बताया कि कैसे कोवि़ड वैश्विक महामारी के बीच, किसानों को उनके घरों को लौटने और उनसे टीका लगवाने का अनुरोध किया गया था। हर बार जब मंत्री संतोषजनक जवाब देने में विफल रहते, सदन के सदस्य उन्हें शर्मिंदा करते, अपने हाथ उठाते और उनके जवाबों पर आपत्ति जताते। बाजवा ने बाद में मीडिया से कहा,’’ कृषि मंत्री सवालों के जवाब देने में नाकाम रहे, जिसके चलते संसद के सदस्यों ने मंत्री को शर्मिंदा किया, जिससे बाधा हुई। उन्होंने कहा,’’ प्रश्न पूछा गया कि जब प्रधानमंत्री ने स्वयं इस तथ्य पर जोर दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य था, यह वर्तमान में भी है और यह रहेगा तो फिर इसे कानून बनाने में क्या समस्या है। अगर सभी तीनों कृषि कानून किसानों के लिए बनाए गए हैं तो उन्हें रद्द करके और किसानों से विचार विमर्श करके दोबारा बनाया जाए।
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