• DENTOTO
  • “रोटी डे की जरूरत”

    स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

    शिव कुमार यादव

    वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

    संपादक

    भावना शर्मा

    पत्रकार एवं समाजसेवी

    प्रबन्धक

    Birendra Kumar

    बिरेन्द्र कुमार

    सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

    Categories

    May 2025
    M T W T F S S
     1234
    567891011
    12131415161718
    19202122232425
    262728293031  
    May 20, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    “रोटी डे की जरूरत”

    -लेखिका अपने लेख के माध्यम से देश में रोटी डे मनाने की पैरवी कर रही है।

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)/- 365 दिनों में हम कई तरह के डे को मनाते है, पर शायद दुनिया की परिधि अविराम जिसके चारों ओर घूमती है वह है रोटी। यह वही रोटी है जिसके कारण कई जरूरतमंदों को भूखा सोना पड़ता है। यही रोटी कितने ही लोगों को नाच नचाने पर मजबूर कर देती है। यही रोटी किसी को पूरे दिन के परिश्रम से नसीब होती है तो किसी की थाली में सरलता से परोसी जाती है। भूख व्यक्ति की हैसियत को देखकर नहीं लगती, बल्कि अमीर और गरीब को समान रूप से लगती है। इस रोटी का स्वाद सबके जीवन में अलग-अलग होता है। कई लोग इस रोटी को पचाने के लिए भी अनेकों जतन करते है तो कई लोग इस दो जून की रोटी के लिए अथक परिश्रम करते है और पसीना बहाते है। कुछ लोगों के लिए रोटी का एक-एक टुकड़ा आनंद से भरपूर होता है तो कुछ के द्वारा यह टुकड़ा ऐसे भी फेंक दिया जाता है।

    काश एक ऐसा रोटी डे भी होता जिसे सब लोग आपसी सहयोग और प्रेम से मनाते जिसमें क्षुधा की शांति प्रेम पूर्वक वितरित की गई रोटी से होती। आज यथार्थ में समाज को रोटी डे की जरूरत है। यही रोटी तो है जो इंसान को गलत मार्ग पर जाने को विवश करती है। उसे पाप की ओर धकेलती है। भूख की चीख जीवन में असहनीय होती है। हम लोग खाने में नमक कम होने पर भी मीन-मेख निकालने लगते है तो जिस व्यक्ति ने भूख को लंबे समय तक सहन किया हो उस पर क्या बीतती होगी। कई लोग इस रोटी को महत्व नहीं देते। पूरे दिन की मेहनत के बाद भी असंतोषी भाव से इसे ग्रहण करते है।

    शायद उनको प्राप्त और अप्राप्त के बीच का संघर्ष विदित नहीं है। अगर किसी दिन कारणवश मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा न जा पाओ, मन में कुछ पुण्य कर्म करने का भाव हो तो क्यों न किसी भूखे को रोटी ही दे दी जाए। यह रोटी तो मूक पशुओं को संतोष ही देती है। दुनिया के सारे लोग अगर रूठ भी जाए तो यह प्रार्थना की जाती है की अन्न देव आप कभी रुष्ठ मत होना। क्षुधा कभी भी व्यक्ति की जेब पर निर्भर नहीं करती बल्कि उसके पेट पर निर्भर करती है। यह पेट जो राजा और रंक दोनों का समान है।

    इस रोटी डे की जरूरत वाले भाव को मैंने एक अत्यंत बूढ़ी महिला को यथार्थ करते देखा है। वह लोगों के घर कार्य करके अपना जीवनयापन करती थी पर जाते वक्त रोटी गाय-कुत्तों को जरूर खिलाती थी। शायद वह दुआओं की पूँजी कमा रही थी। उसकी यही सोच शिरोधार्य है। जब उनसे इस विषय में बातचीत की गई तो उन्होने कहा पुण्य के अनेकों रूप हो सकते है पर मेरी सामर्थ्य यही तक है। सुना भी है भगवान भाव के भूखे होते है। जिंदगी के संघर्ष में इस रोटी के स्वाद को कभी धूमिल नहीं होने दे। यह रोटी तो माँ अन्नपूर्णा का ही आशीर्वाद है। कोशिश करें की अपने छोटे से प्रयास से किसी जरूरतमन्द की क्षुधा शांत हो सकें।

    About Post Author

    Subscribe to get news in your inbox