भारत के नये संसद भवन की तारीफ कर चीन ने सबकों चौंकाया

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भारत के नये संसद भवन की तारीफ कर चीन ने सबकों चौंकाया

-क्या चीन का यह नया पैंतरा या मोदी के यूएस की यूएस यात्रा से डरा ड्रैगन?

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- विश्व में भारत-चीन संबंधों को सभी भलीभांति जानते है। जहां तक चीन का सवाल है वह भारत को अपने लिए प्रतिस्पर्धी देश मानता है और उसे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई मौका नही चूकता है लेकिन अचानक भारत के नये संसद भवन की तारीफ कर चीन ने सभी को चौंका दिया है। चीन ने यह तारीफ ऐसे समय में की है जब भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले है। क्या चीन पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा से डरा गया है या फिर इस बदलाव का कारण कुछ और आखिर ड्रैगन इस प्रशंसा से भारत से क्या चाहता  है?

                 चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र समझे जाने वाले चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत के नए संसद भवन को लेकर नरेंद्र मोदी की तारीफ की है और कहा है कि भारत औपनिवेशिक काल की सभी निशानियों को मिटा रहा है। अखबार ने अपने एक संपादकीय में कहा है कि चीन भारत की गरिमा बनाए रखने और अपनी स्वतंत्रता को कायम रखने की इच्छा के साथ खड़ा है और चाहता है कि भारत विकास करे।
भारत के नये संसद भवन की गरिमामई चमक ने दुनिया के कई मुल्कों को चकाचौंध कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस शान से नई संसद बिल्डिंग का उद्घाटन किया और सेंगोल की स्थापना की, उसका प्रभाव दुनिया के दूसरे देशों में भी देखा जा रहा है। पड़ोसी देश चीन ने भी भारतीय संसद की जमकर तारीफ की है लेकिन इसे संदेह की नजरों से देखा जा रहा है। आखिर चीन ने इतनी जल्दी और सहजता से नई संसद की प्रशंसा क्यों की?

                  चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में भारत के नये संसद भवन को महान प्रतीक के तौर बताया है। संपदकीय में लिखा गया है-नया भवन भारतीय राजधानी को औपनिवेशिक युग के निशान से मुक्त करता है इसलिए यह महानता का प्रतीक है।

चीन ने क्यों की तारीफ?
इसकी कई वजहें हैं. हाल के सालों में भारतीय कूटनीति के आगे चीन की एक चाल सफल नहीं हो पा रही है। मोदी सरकार ने दुनिया में एक उभरते हुए भारत की छवि पेश करने में कामयाबी पाई है। दुनिया के कई मुल्कों में भारत को शक्तिशाली देश के तौर पर देखा जा रहा है। जापान से लेकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया आदि मुल्कों से भारत के संबंध पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हुए हैं।

                 भारत ने उन देशों के साथ दोस्ती को और पुख्ता बनाने में सफलता हासिल की है जहां चीन या तो डोरे डालने की कोशिश करता रहा है या फिर जो मुल्क चीन के विस्तारवाद को नापसंद करते रहे हैं। भारत की इस सफल कूटनीति के आगे चीन को फिलहाल कुछ समझ नहीं आ रहा है लिहाजा वह तारीफ करना ही बेहतर समझता है।

अमेरिका विरोध में भारतीय संसद की तारीफ
चीन पश्चिमी देशों और खासतौर पर अमेरिका का विरोधी रहा है। जैसा कि चीन को पता है कि भारत में हाल के सालों में उपनिवेशवादी और गुलामी की निशानियां की भरपूर की कोशिश की गई है। जिसके तहत इमारतों, शहरों और सड़कों के नाम बदले गये हैं। चीन इस बहाने तारीफ करके अपना पश्चिम विरोध प्रदर्शित कर रहा है।

पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा से पहले तारीफ
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जून को अमेरिका यात्रा पर भी जाने वाले हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि उससे पहले चीन ने नए संसद भवन की तारीफ करके दोनों देशों के बीच दरार पैदा करने का पांसा फेंकने का प्रयास किया है।
                 ग्लोबल टाइम्स में चीन ने भारत की राष्ट्रीय गरिमा को बनाए रखने और अधिक स्वतंत्र रहने की इच्छा भी व्यक्त की है। संपादकीय में लिखा गया है कि भारत को वास्तव में एक सभ्य देश के अपने अध्यात्म, दर्शन और सांस्कृतिक इतिहास को मजबूती से प्रदर्शित करना चाहिए और पश्चिमी देशों की राजनीति के जाल में नहीं पड़ना चाहिए।

’चीन भारत के विकास की कामना करता है’
संपादकीय में आगे लिखा गया, ’चीन कामना करता है कि भारत अपने विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में सफल हो। साथ ही चीन पश्चिम के भू-राजनीतिक जोड़-तोड़ और उकसावे के खिलाफ एक दोस्त के रूप में भारत को सतर्क रहने की सलाह देता है। यह पश्चिम के नव-उपनिवेशवाद का रूप है जो कि सच होता जा रहा है। अमेरिका ने पहले बड़े पैमाने पर फूट डालो और राज करो की रणनीति के माध्यम से राज किया और अब भी वो इसी का इस्तेमाल कर रहा है लेकिन उसकी यह रणनीति छिपी हुई रहती है।
                   अखबार ने लिखा कि अमेरिका ’हाथी-ड्रैगन दुश्मनी’ की मनगढ़ंत अवधारणा को आगे बढ़ाकर चीन और भारत के बीच विवाद पैदा करने में व्यस्त है। उसके पास अब इतनी शक्ति तो नहीं है कि वो भारत और चीन को अपने अधीन कर ले इसलिए वो अपने फायदे के लिए अब दोनों देशों के बीच दरार पैदा कर रहा है। एक तरह से यह औपनिवेशिक मानसिकता का ही एक रूप है। इसलिए वे दोनों के बीच तनाव बढ़ाने का खेल खेलते हैं। अखबार ने लिखा, ’चीन की तरह भारत पश्चिमी सभ्यता से अलग सभ्यता वाला देश है, जो देश का कायाकल्प करना चाहता है। यह कुछ ऐसा है जिसे पश्चिमी देश सराह नहीं सकते।’
                   ग्लोबल टाइम्स ने संपादकीय के अंत में लिखा है कि एशिया और विश्व इतने बड़े हैं कि वे चीन और भारत दोनों के एक साथ उदय को समान जगह दे सकते हैं। चीन सच में चाहता है कि भारत का विकास हो। चीन के बहुत कम लोग ही ऐसा मानते होंगे कि भारत का आर्थिक और सामाजिक विकास चीन के लिए खतरा बन जाएगा। अधिकांश लोग इस बात से सहमत हैं कि दोनों देश एक साथ सफल हो सकते हैं। हम आशा करते हैं कि भारत भी चीन और पश्चिम के साथ अपने रिश्तों को लेकर अधिक स्पष्टता और विश्वास रखे।  

अब भारत से क्या चाहता है चीन?
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है- भारत के विकास के लिए चीन की इच्छाएं स्वच्छ और ईमानदार हैं। चीनी समाज में कम ही लोग मानते हैं कि भारत का आर्थिक और सामाजिक विकास चीन के लिए खतरा बन जाएगा। अधिकांश लोग इस बात से सहमत हैं कि दोनों देश पारस्परिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

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