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    पोलियो और पोस्ट पोलियो सिंड्रोम: एक दर्दनाक स्थिति

    नई दिल्ली/डॉ. सुमन शर्मा/-  पोस्ट पोलियो सिंड्रोम पोलियो से प्रभावित लोगों के लिए एक अत्यंत दर्दनाक स्थिति है। कुछ लोगों को बहुत बचपन की अवस्था में पोलियो हो जाता है, जिसके कारण उनके शरीर का कोई हिस्सा, जैसे हाथ या पैर, पूरी तरह या अर्धावस्था में काम करना बंद कर देता है। इसके परिणामस्वरूप उस अंग का विकास रुक सकता है, कभी वह अंग किसी दिशा में झुक सकता है या असामान्य रूप से मुड़ सकता है। कुल मिलाकर, वह अंग कार्य करने में असमर्थ हो जाता है।

    हालांकि भारत को 27 मार्च 2014 को औपचारिक रूप से पोलियो मुक्त राष्ट्र घोषित किया जा चुका है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि “भूत केवल वर्तमान का आधार नहीं बनाता, बल्कि इसमें एक व्यक्ति का भविष्य भी छिपा होता है।” पोलियो से प्रभावित व्यक्ति के लिए यह कथन अक्षरश: सत्य है।

    जब पोलियो से प्रभावित व्यक्ति अपने जीवन के 40वें दशक को पार करता है, तो उसके जीवन में शारीरिक और मानसिक स्थिति में बड़े परिवर्तन होते हैं। यह दशक सामान्यतः हर व्यक्ति के लिए एक परिवर्तनशील अवस्था होती है, लेकिन अस्थि विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति के लिए इसका प्रभाव अधिक गंभीर होता है।

    40वें दशक के बाद, अस्थि विकलांगता वाले लोगों के लिए पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के रूप में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति का जीवन या तो बिस्तर पर ठहर सकता है, या फिर उसका जीवन संघर्षपूर्ण हो जाता है। मेरी जानकारी के अनुसार, इसका कोई उपचार वर्तमान मेडिकल विज्ञान में उपलब्ध नहीं है। जो अंग पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुका है, उसे पुनः सक्रिय करना संभव नहीं है।

    इसलिए, यह आवश्यक है कि हम समय रहते अपनी जीवनशैली में आवश्यक परिवर्तन करें, ताकि पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के नकारात्मक प्रभावों को सीमित किया जा सके।

    पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के संभावित लक्षण/प्रभाव:
    मेरे अनुभव के आधार पर पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं:

    1. शरीर के किसी हिस्से का एक तरफ अधिक झुक जाना, जैसे पोलियो प्रभावित पैर के कारण पेट का निचला हिस्सा झुक जाना।
    2. रीढ़ की हड्डी (बैक बोन) का तिरछा होना (स्कोलियोसिस), जिससे स्थायी सिरदर्द और सेरेब्रल पाल्सी की संभावना बढ़ जाती है। यह पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
    3. पीठ और पैरों के निचले हिस्से में दर्द का बढ़ना।
      ठंड या न्यून तापमान के प्रति शरीर की संवेदनशीलता का बढ़ना।
    4. पाचन तंत्र में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
      किसी भी सामान्य कार्य को करने में अत्यधिक शारीरिक और मानसिक थकान का अनुभव।
    5. मांसपेशियों में शिथिलता, जकड़न, थकान और कमजोरी का बढ़ना।
    6. तनाव, दबाव और गंभीर अवसाद की स्थिति।

      पोस्ट पोलियो सिंड्रोम से बचाव के उपाय:
      पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के प्रभावों को सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि किसी भी कार्य को लगातार न करें, बल्कि बीच-बीच में आराम करते रहें। अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक व्यायाम न करें, और यदि कोई असामान्य लक्षण दिखाई दे, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें। डॉक्टर आपकी कार्यशैली, बैठने और चलने के तरीके में सुधार के लिए उपयोगी सुझाव दे सकते हैं, जिससे आपको लाभ हो सकता है।

      अतः, खुद का और अपनों का हमेशा ध्यान रखें।

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