श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि।।
अत्यन्त बलशाली, परम पराक्रमी, जितेन्द्रिय, ज्ञानियों में अग्रगण्य, प्रभु श्रीरामजी के अनन्य भक्त, राम कथा के रसिया- ‘प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया’, ‘राम काज करिबे को आतुर’- सेवा और आत्मसमर्पण के प्रतीकमान जन देवता, संकट हरण, निरभिमानी, निश्चल, श्री रघुपति के दूत, विश्वास के स्वरूप, जीवन-स्रोत श्री हनुमान जी, मंगल मूरति मारुत नन्दन, भक्ति की खोज में तत्पर्य, अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, बल, बुद्धि और विवेक प्रदान कर भक्तों की रक्षा करने वाले श्री हनुमान जी का चरित्र अपार है जिसको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। तेज प्रताप जग में वंदनीय- ‘तेज प्रताप महाजग बंदन’ स्वयं प्रभु श्री राम जी ने अपने पावन मुख से मानस-रामायण में आपका बखान किया है- ‘प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।’ प्रभु स्वयं आपसे उट्टण नहीं हैं- ‘सुन सुत तोहि उरिन मैं नाही। देखउँ करि बिचार मन माही।’
जामवंत जी ने स्वयं कहा- ‘नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाई सो बरनी। पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।’
डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक मानस-गंगाः- श्रीहनुमानचालीसा-चालीसा में मानस’ जिसके लेखक आनंद सिंह है। इस लघु पुस्तिका मानस-गंगाः-श्रीहनुमानचालीसा-चालीसा में मानस’ में श्रीहनुमानचालीसा को गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस से जोड़ने का प्रयास किया गया है। यह एक अनूठा प्रयोग है। जिससे पाठकों को मानस (रामायण) से कुछ विशेष अंश-चौपाई और दोहे और सम्पूर्ण श्रीहनुमानचालीसा एक साथ, एक ही जगह उपलब्ध हो सकेंगे। इसके परिणाम स्वरूप पाठकगण समानान्तर दोनों का ही पाठ कर सकेंगे। श्रीहनुमानचालीसा ‘चालीसा में मानस’ का उद्देश्य पाठकों को श्रीहनुमानचालीसा के साथ-साथ श्रीरामचरितमानस का परायण करने का अवसर प्रदान करना है। श्रीहनुमानचालीसा के साथ मानस-रामायण का पाठ करना श्री हनुमान जी द्वारा एक शुभाशीष और अभय प्रदान करता है। इससे पाठकों को श्रीरामचरितमानस में वर्णित विशेष प्रसंगों व परिस्थितियों का एक संदर्भ व परिप्रेक्ष्य प्राप्त होगा जो श्रीहनुमानचालीसा के पाठ-पठन को सार्थक कर देगा। श्रीरामचरितमानस के माध्यम से श्री हनुमानजी के पुनीत चरित्र, उनके कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग की महिमा को पाठकगण आत्मसात करने में सक्षम होंगे।
आपका गुणगान सभी देवी, देवताओं, ऋषियों, मुनियो, संतो, मनुष्यों को प्रमोद से भर देता है और सभी अपने को कृतकृत्य मानते हैं। पूजनीय महाकवि श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने आपकी वन्दना करके हम सभी को शुभाशिर्वाद दिलवाया है। ‘महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना।’ आपकी महिमा अपार है, मेरे जैसे दासानुदास में यह सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके चरित्र की व्याख्या अपने शब्दों में कर सवफ़ूँ, यह तो आपकी अति अनुकम्पा है जो यह कार्य किंचितमात्र सम्पन्न हो सका।
यह ‘मानस-गंगाः-श्रीहनुमानचालीसा-चालीसा में मानस’ आपके ही श्री चरणों में सादर, सप्रेम और सविनय समर्पित करता हूँ। आपकी कृपा, करुणा से पाठकों को श्रीहनुमानचालीसा को श्रीरामचरितमानस से सम्बद्ध करने में आसानी होगी जिसके परिणाम स्वरूप श्रीहनुमानचालीसा के प्रति एक समझ बढ़ेगी। पाठकगण आपके कृपा पात्र बनकर श्री राम भक्ति में समर्पित हो सकेंगे।
आनन्द सिंह मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करने वाले लेखक हैं, इनके काव्य संग्रह ‘प्रवाह’, ‘मानस-गंगाः-श्रीहनुमानचालीसा-चालीसा में मानस’,‘मानस-गंगाः-श्रीहनुमानचालीसा-एक दार्शनिक एवं आध्यात्मिक रहस्य’, एवं ‘मानस-गंगाः-श्रीसुन्दरकाण्ड-एक दार्शनिक एवं आध्यात्मिक रहस्य’ आदि प्रकाशित हो चुके हैं। आनन्द के काव्यकला की विशिष्टता है आन्तरिक मनोभाव के साथ-साथ यथार्थ चित्रण। इस यथार्थ चिन्तन में इनका भाव बोध ही नहीं अपितु दार्शनिक गहराई भी झलकती है। विशेष स्थितियों, चरित्रें और दृश्यों को देखते हुए उनके मर्म को पहचानना तथा उन विशिष्ट वस्तुओं को ही चित्रण का विषय बनाना इनके यथार्थवाद की उल्लेखनीय विशेषता है। जिसमें अध्यात्मवाद और रहस्यवाद जैसी जीवन-उन्मुख प्रवृत्तियों का प्रभाव है। रहस्यवाद इनके भाव बोध में स्थायी नहीं रहता। इनकी लेखनी में साहस व सजगता का अद्भुत समावेश देखने को मिलता है।
इनकी काव्य भाषा में खड़ी बोली, हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी तथा उर्दू का भी प्रयोग दिखाई देता है जिसमें इनका काव्य संग्रह ‘प्रवाह’ एक नई कविता का उद्घोष है। इनकी भाषा पूर्ण स्वतंत्र और भावों की सच्ची अनुगामिनी है। इनकी लेखन कला में सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों का संदेश सदैव ही परिलक्षित होता है।
आनंद सिंह का कहना है कि हमारे सुहृदयी स्नेही परममित्र श्री रावजी कौशिक जी का असीम सहयोग प्राप्त हुआ। इसी क्रम में अपने जातक परिवार के अन्य सदस्यों में श्री अदित नाथ सिन्हा जी, श्री सुकुमार प्रमाणिक जी, श्री संजीव वत्स जी, श्री राकेश मिश्रा जी, श्री राजीव माहेश्वरी जी, श्री (डॉ-) मनप्रीत सिंह जी, श्री राजकुमार जी एवं श्री प्रशांत जी का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ, मैं सभी का हृदय से धन्यवाद करता हूँ। मेरी वनिता श्रीमती मन्जुबाला (ईशी) का अत्यन्त सहयोग प्राप्त हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप ही यह दुष्कर कार्य आगे अग्रसर हो सका। मैं उनका का हृदय से आभारी हूँ। और साथ ही हमारे प्रकाशक डायमण्ड पॉकेट बुक्स के निदेशक श्री नरेन्द्र कुमार वर्मा जी का अत्यंत आभारी हूँ जिनके माध्यम से यह पुनीत कार्य सम्भव हो सका है।
मैं पाठकों से भी निवेदन करता हूँ कि जो इस मानस-गंगा में अवगाहन करेगा, वह निश्चय ही अपनी दशा एवं दिशा में सुधार कर अपने जीवन-गन्तव्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सवफ़ेगा। आप स्वयं श्रीहनुमानचालीसा के साथ-साथ श्रीरामचरितमानस का परायण करके दूसरो को भी प्रेरित करें जिससे सनातन धर्म को और सुदृढ़ किया जा सके और श्रीरामचरितमानस जन-जन तक पहुँच सके, इसी में मेरा, आपका और सम्पूर्ण मानवता का हित निहित है।
‘राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल दुहँ दिसि तुलसीदास।।’
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