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    पंजाब में ड्रग्स की कड़ी तोड़ेगी बीएसएफ

    -नये नियम के बाद आधे पंजाब पर अब बीएसएफ का कंट्रोल -पंजाब सीएम चन्नी ने दी इजाजत, अब चुनाव से पहले 7 जिले केंद्र के नियन्त्रण में -पंजाब के सीएम हुए कमजोर, कैप्टन ने जताई खुशी, अकाली कर रहे विरोध

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/पंजाब/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है लेकिन अभी तक पंजाब चुनावों ड्रग्स एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल होती रही है। लेकिन इस बार केंद्र सरकार पंजाब चुनावों में ड्रग्स की कड़ी तोड़ने के लिए बीएसएफ को अधिक अधिकार दे दिये गये है। अब बीएसएफ पंजाब में 50 किलोमीटर तक कार्यवाही कर सकेगी। जिससे अब यह लगने लगा है कि पंजाब में न केवल बीएसएफ के जरीये ड्रग्स सप्लाई के चेन टूटेगी बल्कि युवाओं को ड्रग्स के जहर का आदि बना रहे ड्रग्स माफियाओं पर भी शिकंजा कसा जा सकेगा। हालांकि कुछ लोग केंद्र के इस फैसले को राजनीतिक रंग दे रहे है और उल्टे-पुल्टे बयान भी दे रहे है कि केंद्र ने बीएसएफ के जरीये करीब-बरीब आधे पंजाब को अपने नियन्त्रण में ले लिया है। हालांकि पंजाब में बीएसएफ को मिले इस नये अधिकार पर पंजाब सीएम चन्नी ने विरोध के बाद अपनी इजाजत दे दी है लेकिन अभी भी अकाली नेता इस नये ऐलान से बिलबिलाये हुए है और केंद्र के इस निर्णय को पंजाब विरोधी बता रहे है जबकि पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिन्द्र ने केंद्र के इस निर्णय का स्वागत किया है।


                         राजनीतिक हल्को में चर्चा इस बात को लेकर ज्यादा चल रही है कि केंद्र सरकार बिना चुनाव जीते ही आधे पंजाब पर राज करना चाहती है, यह चर्चा इसलिए है क्योंकि सीमा सुरक्षा बल का अधिकार क्षेत्र बॉर्डर से 50 किमी तक बढ़ा दिया गया है। पंजाब के लिहाज से ये बात सिर्फ सियासी चर्चा भर नहीं है, क्योंकि भौगोलिक आंकड़े भी इसे सही ठहराते हैं। सीधे तौर पर पाकिस्तान बॉर्डर से सटे 7 जिले केंद्र के कंट्रोल में आ गए।
                        पंजाब में 2 ऐसे चुनावी मुद्दे हैं, जो भावनात्मक तौर पर पंजाबियों से जुड़े हैं। इनमें पहला श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और उससे जुड़े गोलीकांड और दूसरा नशा। बेअदबी और गोलीकांड के मामले में पंजाब सरकार कुछ हद तक दोषियों को पकड़ने में कामयाब रही। नशा ऐसा मुद्दा है, जिसने पंजाब में कई बच्चे अनाथ बना दिए तो कहीं पिता को जवान बेटे की अर्थी को कंधा देना पड़ा।
                        नशे पर कार्रवाई तो हुई, लेकिन पंजाब सरकार किसी बड़े मगरमच्छ को नहीं पकड़ सकी। पंजाब सरकार की जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में सीलबंद पड़ी है। पंजाब में ज्यादातर नशा सीमा पार, यानी पाकिस्तान से आता है। ऐसे में अगर बीएसएफ ने नशे को लेकर बड़ी कार्रवाई की तो निस्संदेह केंद्र के प्रति पंजाब में लोगों का नजरिया बदलेगा। यह दांव कांग्रेस के लिए पंजाब में बड़ी सियासी पटखनी साबित होना तय है।
                        वहीं पंजाब विधानसभा चुनाव की घोषणा से 3 महीने पहले नशे का सबसे बड़ा मुद्दा अब केंद्र की मुट्ठी में है। पंजाब के सियासी पहलू के लिहाज से यह अपमानित होकर कुर्सी छोड़ने को मजबूर हुए कैप्टन अमरिंदर की बड़ी जीत है। केंद्र के फैसले से पंजाब की नई चरणजीत चन्नी की सरकार कमजोर हुई है।
                          भौगोलिक आंकड़े देखें तो पंजाब का कुल लैंड एरिया 50,362 स्क्वायर किलोमीटर है। पंजाब का 600 किलोमीटर एरिया पाकिस्तान से सटा है। अगर इसके 50 किलोमीटर दायरे को देखें तो करीब 25 हजार वर्ग किमी एरिया अब बीएसएफ के कंट्रोल में है। जिसमें पंजाब के 7 बड़े जिले अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, पठानकोट आ रहे हैं। वहीं फरीदकोट, मुक्तसर, मोगा, कपूरथला और जालंधर का कुछ हिस्सा इस दायरे में आ जाएगा। इनके शहर से लेकर गांवों तक पर अब बीएसएफ का कंट्रोल होगा। पंजाब में बीएसएफ अभी तक पाकिस्तान से सटे बॉर्डर तक सीमित थी। एक्सपर्ट बताते हैं कि अब 50 किलोमीटर के भीतर बीएसएफ को पुलिस जैसे अधिकार मिल गए हैं। बीएसएफ यहां कहीं भी रेड या सर्च कर सकती है। किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है। कुछ भी बरामद कर अपने साथ ला सकती है। इसके लिए मजिस्ट्रेट से किसी तरह के वारंट की जरूरत नहीं रहेगी। अभी तक कोई इनपुट मिलता था तो बीएसएफ उसे पंजाब पुलिस से साझा करती थी। अब ऐसा नहीं होगा, बीएसएफ को एनडीपीएस एक्ट, पासपोर्ट एक्ट और कस्टम एक्ट में यह छूट मिल गई है कि वो सीधे कार्रवाई करें।
                        पंजाब पुलिस के एक अफसर बताते हैं कि बीएसएफ को पंजाब पुलिस जैसे अधिकार मिले, लेकिन इसके आगे खतरे भी हैं। अभी तक ठैथ् पुलिस की मदद से कहीं कार्रवाई करती और फिर बॉर्डर पर लौट जाती थी। अब बीएसएफ उसी एरिया में राज्य की पुलिस की तरह अलग से कार्रवाई करेगी। नए अधिकार के बाद उन्हें लोकल पुलिस के साथ की जरूरत नहीं है। ऐसे में कार्रवाई को लेकर उनका ग्रामीणों और लोकल पुलिस से टकराव हो सकता है।
                        यह फैसला कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। अमरिंदर के कुर्सी से हटने के बाद पंजाब की कांग्रेस सरकार को यह बड़ा झटका है। इसमें पंजाब में कांग्रेस नेतृत्व की कमजोरी खुलकर सामने आई। इसे कमान सौंपने के फैसले से कांग्रेस हाईकमान पर भी सवाल उठ रहे हैं। केंद्र ने यह फैसला तब किया, जब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर आए। उनसे बॉर्डर सील करने की मांग की। केंद्र को यह मौका इसीलिए मिल भी गया, क्योंकि अमरिंदर भी इस्तीफा देने के बाद दिल्ली जाकर यही मुद्दे उठाकर आए थे।
                          बीएसएफ को अधिकार तब मिले, जब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने खुद दिल्ली जाकर बॉर्डर पर ड्रोन और नशा रोकने के लिए सख्ती बढ़ाने को कहा। कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही कह चुके हैं कि सीएम चन्नी अच्छे मंत्री हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा का उन्हें अनुभव नहीं। ऐसे में नए फैसले के बाद सीएम की शाह से मुलाकात पर पूर्व पंजाब कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ ने भी तंज कस दिया। उन्होंने कहा कि अगर किसी से कुछ मांगो तो सावधानी बरतनी चाहिए। पंजाब में सुरक्षा के मुद्दे पर सीएम चन्नी और कैप्टन से सबसे बड़े विरोधी बने डिप्टी ब्ड सुखजिंदर रंधावा कमजोर साबित हुए। रंधावा के पास इस वक्त गृह विभाग भी है।
                          पंजाब की राजनीति के लिहाज से यह फैसला राज्य की संप्रभुता के बाद नशे से जुड़ा है। पंजाब कांग्रेस के प्रधान बने नवजोत सिद्धू ने अमरिंदर का तख्तापलट करवाया तो उसमें नशा भी बड़ा मुद्दा रहा। सिद्धू लगातार इशारों से अकाली नेता बिक्रम मजीठिया को निशाना बनाते रहे हैं कि नशा तस्करों को उनकी शह है। पंजाब में सीएम चेहरा बदलने के बाद भी कांग्रेस सरकार अब तक बड़े तस्करों को नहीं पकड़ सकी। ऐसे में चर्चा यह है कि सिद्धू जो काम अपनी सरकार से कराना चाहते हैं, अब वो बीएसएफ के जरिए हो सकता है।

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