
नई दिल्ली/अनीशा चौहान/- सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि अब नए लॉ ग्रेजुएट्स को न्यायिक सेवा में सीधी नियुक्ति नहीं मिलेगी। मंगलवार को सुनाए गए फैसले में अदालत ने कहा कि सिविल जज जैसे प्रवेश-स्तर के पदों के लिए उम्मीदवारों के पास कम से कम तीन वर्षों का कानूनी अभ्यास (प्रैक्टिस) होना अनिवार्य होगा।
याचिका और कोर्ट का निष्कर्ष
यह निर्णय ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन द्वारा दाखिल की गई याचिका पर लिया गया, जिसमें ताजातरीन लॉ ग्रेजुएट्स को सीधे नियुक्त करने से होने वाले दुष्परिणामों की ओर इशारा किया गया था। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस ए.जी. मसीह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट किया कि बिना किसी व्यावहारिक अनुभव के नियुक्त किए गए जज न्यायिक कार्यों को प्रभावी ढंग से नहीं निभा पा रहे हैं।
न्यायिक प्रणाली पर पड़ा असर
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पिछले 20 वर्षों में, जब बिना अनुभव वाले ग्रेजुएट्स को जज नियुक्त किया गया, तब न्याय प्रणाली में कई समस्याएं उभरकर सामने आईं। विभिन्न हाई कोर्ट्स की रिपोर्टों से यह पता चला कि ऐसे जजों को अदालत की कार्यवाही और न्याय प्रशासन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कोर्ट का मानना है कि व्यावसायिक अनुभव न होने के कारण न्यायिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी।
मुख्य न्यायाधीश गवई का बयान
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “जजों को अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही लोगों के जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और प्रतिष्ठा से जुड़े निर्णय लेने होते हैं। केवल किताबी ज्ञान या प्रशिक्षण व्यावहारिक अनुभव का विकल्प नहीं हो सकता।”
अनुभव की गणना कैसे होगी?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तीन साल का अनुभव बार काउंसिल में नामांकन की तारीख से गिना जाएगा, न कि ऑल इंडिया बार एग्ज़ाम पास करने की तारीख से। उम्मीदवार को यह प्रमाणित करना होगा कि उसने 10 साल या उससे अधिक अनुभव वाले अधिवक्ता के साथ कार्य किया है। यह प्रमाणपत्र किसी न्यायिक अधिकारी या कोर्ट द्वारा नामित अधिकारी से सत्यापित करवाना अनिवार्य होगा। सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वालों के लिए भी यही प्रक्रिया लागू होगी।
इसके अलावा, किसी जज के साथ लॉ क्लर्क के रूप में किया गया कार्य भी इस अनुभव में गिना जाएगा। यह फैसला 2002 के उस निर्णय को पलटता है, जिसमें शेट्टी आयोग की सिफारिशों पर नए ग्रेजुएट्स को सीधे परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई थी।
नियम कब से लागू होगा?
कोर्ट ने कहा है कि यह नियम अगली न्यायिक सेवा भर्ती अधिसूचना से प्रभावी माना जाएगा। इसका उद्देश्य न्यायिक सेवा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना और अधिक सक्षम व व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित न्यायाधीशों की नियुक्ति सुनिश्चित करना है।
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