
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश-विदेश/शिव कुमार यादव/– 1948 में इजराइल एक अलग मुल्क बना था। इसके बाद यह पहली बार है जब पब्लिकली कोई इजराइली फ्लाइट सऊदी अरब में लैंड हुई। हालांकि यह कोई अधिकारिक फ्लाइट नही थी लेकिन मानवता के नाते इजराइली फ्लाइट को इमरजेंसी लैंडिंग की इजाजत देने पर इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सऊदी सरकार का शुक्रिया अदा किया है। बता दें कि सोमवार रात एक इजराइली फ्लाइट को सऊदी सरकार ने जेद्दाह एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग की मंजूरी दी थी। इस दौरान 128 इजराइली नागरिकों ने इस शहर के एक होटल में रात गुजारी थी। दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन नहीं हैं। फिर भी इस लैंडिंग के बाद में कुछ पैसेंजर ने माना कि उन्हें सऊदी में लैंडिंग करते वक्त डर लग रहा था।

पहले मामला जान लीजिए
एयर सेशेल्स के एक प्लेन ने सोमवार दोपहर सेशेल्स से इजराइल की एडिमिनिस्ट्रेटिव कैपिटल (प्रशासनिक राजधानी) तेल अवीव के लिए उड़ान भरी। इस दौरान एयरक्राफ्ट के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में फॉल्ट आ गया। इससे इंजन फेल होने का खतरा भी था। पायलट ने फौरन मदद मांगी। सबसे करीब में सऊदी अरब का जेद्दाह एयरपोर्ट था, लेकिन इजराइल और सऊदी अरब के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन नहीं हैं। लिहाजा, वहां लैंडिंग की मंजूरी मिलना मुश्किल था। बहरहाल, फ्लाइट में मौजूद 128 इजराइली नागरिकों की जान बचाने के लिए कुछ बैकडोर डिप्लोमैटिक एफर्ट्स किए गए। इसके बाद फ्लाइट को जेद्दाह में इमरजेंसी लैंडिंग की मंजूरी मिल गई।
एयरपोर्ट से सीधे होटल गए पैसेंजर
जेद्दाह एयरपोर्ट पर जब यह फ्लाइट लैंड हुई तो इसमें मौजूद सभी 128 पैसेंजर्स को एयरपोर्ट बिल्डिंग में लाया गया। इसके बाद कुछ देर तक वो यहीं रुके। जब यह तय हो गया कि ये फ्लाइट तेल अवीव के लिए उड़ान नहीं भर सकेगी तो सभी पैसेंजर्स को एक स्पेशल बस से करीब के एक होटल में ले जाया गया। इन लोगों ने रात यहीं बिताई। इसके बाद मंगलवार दोपहर सेशेल्स से एक एयरक्राफ्ट जेद्दाह पहुंचा। इसमें सभी पैसेंजर्स बैठे और इसके बाद फ्लाइट ने तेल अवीव के लिए टेक ऑफ किया। इस दौरान कुछ पैसेंजर्स एयरपोर्ट अथॉरिटीज का शुक्रिया अदा करते भी देखे गए।

एयरपोर्ट से होटल और होटल से एयरपोर्ट के रास्ते में इजराइली पैसेंजर्स की बस को सऊदी अरब की स्पेशल फोर्स ने सिक्योरिटी दी। बाद में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोशल मीडिया पर सऊदी अरब सरकार का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा- सऊदी अरब ने हमारे नागरिकों की मदद के लिए जो जज्बा दिखाया, उसके लिए शुक्रिया। नेतन्याहू की इस पोस्ट को हिब्रू के साथ ही अरबी और इंग्लिश में भी पोस्ट किया गया।
पैसेंजर्स ने शेयर किया अपना एक्पीरियंस
तेल अवीव पहुंचने के बाद इजराइली पैसेंजर्स ने यहां के एक न्यूज चैनल से बातचीत की। इसमें बताया कि सऊदी अरब पहुंचने से पहले और बाद में उनके मन में क्या चल रहा था।
एक महिला एमैनुएल ईवा ने कहा- जैसे ही फ्लाइट कमांडर ने हमें बताया कि हमें जेद्दाह में इमरजेंसी लैंडिंग करनी है तो हम थोड़ा घबरा गए। इस दौरान सभी एक-दूसरे की तरफ सवालिया नजरों से देख रहे थे। बहरहाल, हमने यही सोचा कि फ्लाइट की लैंडिंग सेफ होनी चाहिए। बाकी जो होगा, देखा जाएगा। जेद्दाह में हमारा स्वागत किया गया। इसके बाद होटल ले जाया गया।

एक और महिला ने कहा- ज्यादातर पैसेंजर शॉर्ट्स और टी-शर्ट में थे। जब हमने लैंड किया तो कुछ लोगों ने अजीब तरह से देखा। हालांकि वहां कुछ अलग सी फीलिंग आ रही थी।
इजराइल को मान्यता भी देगा सऊदी?
वर्ल्ड मीडिया में यह खबरें आती रही हैं कि गल्फ कंट्रीज की सबसे बड़ी ताकत सऊदी अरब जल्द इजराइल को मान्यता दे सकता है। कुछ वक्त पहले यूएन में सऊदी के परमानेंट रिप्रेजेंटेटिव अब्दुल्ला अल मोआलिमिनी ने साफ तौर पर इसका जिक्र किया था।
ये तय है कि सऊदी अरब और इजराइल के बीच बैकडोर डिप्लोमैसी चल रही है। पिछले महीने इजराइली मीडिया में कई खास रिपोर्ट्स आई थीं। इनमें दावा किया गया था कि अमेरिका के 20 यहूदी नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल सऊदी अरब पहुंचा और उसने कई दिन तक यहां के सीनियर अफसरों से बातचीत की। इसके पहले भी इजराइल और अमेरिकी नेताओं के सीक्रेट रियाद दौरे होते रहे हैं। सभी का मकसद एक ही था कि रियाद और तेल अवीव के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन शुरू कराए जाएं।
इसके अलावा, पिछले महीने अमेरिका ने पहली बार खुलकर कहा है कि वो इजराइल और सऊदी अरब में नॉर्मल रिलेशनशिप चाहता है। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा- अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी के लिए बहुत जरूरी है कि इजराइल और सऊदी अरब के बीच नॉर्मल रिलेशन हों।

ब्लिंकन के मुताबिक अमेरिका को इससे काफी फायदा है। लिहाजा, बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन इस मकसद को पूरा करने के लिए तमाम कोशिशें कर रहा है। हालांकि ये भी सच है कि टारगेट को हासिल करने में कुछ वक्त और लगेगा।
सऊदी प्रिंस ने किताबों से इजराइल विरोधी बातें हटवाईं
सऊदी स्कूल और कॉलेजों के सिलेबस में अब इजराइल या यहूदी विरोधी बातें नहीं होंगी। पिछले दिनों क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान के आदेश पर यह फैसला अमल में लाया गया था। अरब देशों पर नजर रखने वाली वेबसाइट ‘ऑल अरब’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रिंस सलमान यानी डठै ने दो साल पहले ही देश के स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज के सिलेबस से कट्टरपंथी बातें हटाने के आदेश दिए थे। उन्होंने कहा था कि इस मामले में रिफॉर्म बेहद जरूरी हैं।

करीब दो साल से सभी तरह के सिलेबस में इजराइल और यहूदी विरोधी बातों को हटाया जा रहा था। यहूदियों को इन किताबों में मंकी और पिग्स तक बताया गया है। इसके अलावा यहूदी महिलाओं के बारे में भी आपत्तिजनक बातें थीं। अब ये हटाई जा चुकी हैं। इन किताबों में इजराइल को साजिश करने वाला देश बताया जाता था। इनमें कहा गया था कि इजराइल मिलिट्री पॉवर और टेक्नोलॉजी के दम पर इजिप्ट की नील नदी से इराक तक कब्जा चाहता है।
पिछले साल इजराइल के तब के प्रधानमंत्री नफ्टाली बेनेट यूएई दौरे पर गए थे। दोनों देशों के बीच अब अरबों डॉलर का ट्रेड होता है। यूएई भी चाहता है कि अरब देशों में सबसे बड़ी ताकत सऊदी अरब भी अब इजराइल को मान्यता दे। इसके बाद सिर्फ पाकिस्तान बचेगा।
आतंकी संगठनों का समर्थन भी बंद
रिपोर्ट के मुताबिक प्रिंस सलमान ने पांच साल पहले ही देश में हर स्तर पर सुधार का एजेंडा तैयार कर लिया था और इस पर अमल के लिए कई अफसरों को लगाया था। कट्टरपंथ और आतंकी सोच वाले संगठनों जैसे हिजबुल्लाह, हूती और मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन बंद किया गया और इसके बदले अमन बहाली पर फोकस किया गया।
यूनेस्को के साथ दुनिया के तमाम देशों में सिलेबस कंटेंट पर नजर रखने वाले इंस्टीट्यूट ‘इम्पैक्ट’ के मुताबिक पांच साल में सऊदी अरब की 301 टेक्स्ट बुक्स में जबरदस्त बदलाव किया गया।

इम्पैक्ट की रिपोर्ट में कहा गया- सऊदी प्रिंस ने नफरत, कट्टरपंथ और आतंकवाद की सोच वाली तमाम बुक्स को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया। सऊदी की एजुकेशन मिनिस्ट्री ने अब इन किताबों का वजूद ही खत्म कर दिया है। इस मामले में सबसे ज्यादा फोकस इजराइल और यहूदी विरोधी बातों पर रहा। मसलन, फिलिस्तीन के समर्थन और इजराइल के विरोध वाली एक कविता को सिलेबस से इसी साल हटा दिया गया।
कुछ किताबों में दुनिया का नक्शा तो मौजूद था, लेकिन उसमें इजराइल को दिखाया ही नहीं गया था। अब नक्शे पर न सिर्फ इजराइल की मौजूदगी दर्ज है, बल्कि उसके इस्लाम से टकराव की बातें भी सिलेबस से हटा दी गईं हैं।
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