
नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- अच्छे भले इंसान की अचानक मौत हो जाने का राज अब खुल गया है। एम्स के एक अध्ययन में पता चला है कि कोरोना महामारी के बाद से ग्रीवा धमनी का सेंसर दिल और दिमाग को धोखा दे रहा है। वह भी ऐसा कि जिससे इंसान की जान ही चली जाए।

दरअसल ग्रीवा धमनी का सेंसर दिल और दिमाग को शरीर में होने वाली हलचल का संदेश भेजता है, इससे अचानक शरीर की मुद्रा बदलने से दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इससे दिल की धड़कनों में तेज बदलाव आता है। कई बार लोगों को चक्कर भी आ जाता है। अब कोरोना महामारी के बाद से यही संदेश सेंसर सटीक तरीके से नही भेज पा रहा है। इसमें हार्ट फेल होने की आशंका काफी बढ़ जाती है। एम्स के एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। अध्ययन 110 मरीजों पर किया गया है। इसमें शामिल 57 मरीजों में कोरोना के दौरान हल्के लक्षण थे। इन्हें कोई दूसरी बीमारी नहीं थी और यह सभी 3 से छह माह में अपने घर में ही पूरी तरह से ठीक हो गए थे। जबकि 53 मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री कोविड-19 से पहले की थी। अध्ययन के दौरान दोनों का मिलान किया गया। इस दौरान कोविड से 3 से 6 माह में ठीक हुए हल्के लक्षण के मरीजों की बैरोफ्लेक्स (सेंसर) की संवेदनशीलता को देखा। साथ ही यह पता लगाया गया कि इसका कैरोटिड (ग्रीवा) धमनी से क्या संबंध है। शोधकर्ता यह देखकर हैरान हुए कि कोविड के हल्के लक्षण वाले मरीजों में अभी भी बैरोफ्लेक्स की संवेदनशीलता कमजोर है।
कोरोना में सेंसर हुआ प्रभावित
शरीर क्रिया विज्ञान विभाग के डॉ. डीनू एस चंद्रन ने कहा कि अध्ययन में पाया गया कि कोरोना महामारी ने मरीजों के बैरोफ्लेक्स को प्रभावित किया है। जो दिमाग को संकेत देता है। इसमें आई दिक्कत के कारण दिल जरूरत के आधार पर काम नहीं कर पाता। यहीं कारण है कि अक्सर जब हम कुछ देर तक बैठे रहते हैं और अचानक खड़े होते है तो दिल की धड़कन बढ़ जाती है या फिर चक्कर आने लगता है। आशंका जाहिर की जा रही है कि यह अचानक बढ़ रहे दिल के दौरे का बढ़ा कारण हो। बैरोफ्लेक्स हमारे शरीर के आधार पर रक्तचाप को स्थिर बनाने में मदद करता है। जबकि अब यही प्रभावित हो गया है। उनका कहना है कि यदि सामान्य मरीजों की स्थिति ऐसी है तो कोरोना के गंभीर मरीजों की स्थिति और खराब हो सकती है। ऐसे में मरीजों के लंबे समय तक दिल की जांच की जरूरत है।
यह है बैरोरेफ्लेक्स
बैरोरेफ्लेक्स या बैरोरिसेप्टर रिफ्लेक्स शरीर का वह सेंसर है जो रक्तचाप को लगभग स्थिर स्तर पर बनाए रखने में मदद करता है। इससे शरीर में होने वाली हर हरकत की सूचना दिमाग तक पहुंचती है। और हृदय गति शरीर की क्रिया के हिसाब से स्थिर बनाए रखता है।
अध्ययन का आंकड़ा
कुल मरीज की संख्या – 110
पोस्ट कोविड मरीज – 57
कोरोना से पहले की हिस्ट्री – 53
मरीज की औसत आयु – 34 साल
इन डॉक्टरों ने किया अध्ययन
एम्स के मेडिसिन, शरीर क्रिया विज्ञान विभाग सहित अन्य विभाग के डॉक्टरों ने इस अध्ययन को किया। इस अध्ययन में कोरोना से प्रभावित हल्के लक्षण वाले मरीजों को चुना गया। यह मरीज दो से तीन माह तक अपने घर में रहकर ही ठीक हो गए। ठीक होने के बाद इन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। इन मरीजों की पहचान करने के बाद डॉ. प्राची श्रीवास्तव, डॉ. पी. एम. नबील, डॉ. किरण वी. राज, डॉ. मनीष सोनेजा, डॉ. दीनू एस. चंद्रन, डॉ. जयराज जोसेफ, डॉ. नवीत विग, डॉ. अशोक कुमार जारयाल, डॉ. डिक थिजसेन और डॉ. किशोर कुमार दीपक ने अध्ययन किया।
बढ़ा रहा दिल का दौरा
अध्ययन को लेकर डॉक्टरों ने आशंका जाहिर की है कि कोरोना महामारी के बाद अचानक तेजी से बढ़े दिल के दौरे के पीछे मुख्य धमनी के सेंसर के खराब होना बड़ा कारण हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सेंसर जब दिमाग को सटीक संकेत नहीं देगा तो दिल भी शरीर की मांग के अनुसार काम नहीं कर पाता। ऐसे में जब अचानक जरूरत बढ़ती है तो दिल को तेजी से काम करना पड़ता है जिसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे खून का दौरा प्रभावित होता है, जबकि हमारे शरीर को उचित मात्र में खून की जरूरत होती है। अचानक दिल के काम करने की गति जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है जो हार्ट अटैक दे सकती है। हालांकि इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इसे लेकर आईसीएमआर अध्ययन कर रहा है। इस अध्ययन के बाद स्पष्ट होगा कि दिल के दौरे बढ़ने के पीछे कोविड का कितना हाथ है।
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