मानसी शर्मा/- गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। जो कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को होता है। गोवर्धन पूजा वृंदावन, मथुरा, गोकुल, नंदगांव, बरसना में विशेष रूप से मनाई जाती है। इस साल ये पर्व 13 और 14 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस पर्व में मुख्य रूप से गोवर्धन पर्वत, भगवान श्रीकृष्ण और पशुधन की पूजा की जाती है। इसके साथ ही इंद्र देव, अग्नि देव और वरूण देवता की पूजा का भी विधान है। इस दिन पूजन में विभिन्न प्रकार के अन्न भगवान को समर्पित किए जाते हैं, इसलिए इसे अन्नकूट कहा जाता है।
गोवर्धन पूजा के लिए जान लें शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा के लिए जान लें शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त: 13 नवंबर दोपहर 02.56 से 14 नंवबर 2:36तक
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ: 13 नवंबर,दोपहर 2.56 पर
प्रतिपदा तिथि समाप्त: 14 नवंबर दोपहर 2:36 पर
क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई है। इसमें हिन्दू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते है। उसके बाद गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। इस दिन मंदिरों में अन्नकूट किया जाता है।
गोवर्धन पूजा की विधि ?
हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा का बहुत महत्व है। इसके लिए सबसे पहले गाय के गोबर से गोवर्धन का चित्र घर के आंगन में बनाया जाता है। इसके बाद गोवर्धन भगवान की पूजा की जाती है। इस पूजन में अक्षत, रोली, जल, दूध, बताशे, पान और केसरी फूल प्रयोग में लाए जाते हैं। गोवर्धन के चित्र के पास दीप जलाकर भगवान को याद किया जाता है। मान्यता है कि आज के दिन अगर विधि-विधान से भगवान गोवर्धन की पूजा की, तो श्रीकृष्ण पूरे साल अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।
गोवर्धन पूजा कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रज में पूजन कार्यक्रम चल रहा था। सभी ब्रजवासी पूजन कार्यक्रम की तैयारियों में जुटे हुए थे। भगवान श्रीकृष्ण ये सब देखकर व्याकुल हो जाते हैं और अपनी माता यशोदा से पूछते हैं- मैया, ये सब ब्रजवासी आज किसकी पूजा की तैयार में लगे हैं। तब यशोदा माता ने बताया कि ये सब इंद्र देव की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण फिर से पूछते हैं कि इंद्र देव की पूजा क्यों कर रहे है, तो यशोदा बताती हैं कि इंद्र देव वर्षा करते हैं और उस वर्षा की वजह से अन्न की पैदावार अच्छी होती है। जिससे हमारी गाय के लिए चारा उपलब्ध होता है।
तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इंद्रदेव का वर्षा करना कर्तव्य है. इसलिए उनकी पूजा की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर गायें चरती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इससे इंद्रदेव नाराज हो गए और क्रोध में आकर मूसलाधार बारिश करने लगे। जिस वजह से हर तरफ कोहराम मच गया।
सभी ब्रजवासी अपने पशुओं की सुरक्षा के लिए भागने लगे। तब श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया। सभी ब्रजवासियों ने पर्वत के लिए शरण ली। जिसके बाद इंद्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने श्रीकृष्ण से मांफी मांगी। इसके बाद से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा शुरू हुई। इस पर्व में अन्नकूट यानी अन्न और गौवंश की पूजा का बहुत महत्व है।
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