उत्तराखंड के सीमांत गांवों को मिलेगी बूस्टर डोज

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

April 2024
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
2930  
April 16, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

उत्तराखंड के सीमांत गांवों को मिलेगी बूस्टर डोज

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देहरादून/शिव कुमार यादव/- उत्तराखंड की धामी सरकार के बजट से सीमांत गांवों में विकास तेज करने की उम्मीद जगी है। चीन और नेपाल की सीमा से सटे उत्तराखंड के सीमांत गांव पलायन की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। केंद्र सरकार ने ऐसे गांवों की तस्वीर बदलने के लिए वाइब्रेंट विलेज योजना शुरू की है, वहीं प्रदेश स्तर पर इसके लिए मुख्यमंत्री सीमांत गांव पर्यटन विकास योजना का खाका तैयार किया जा रहा है। जिससे चीन-नेपाल सीमा पर बसे गांवों का सूनापन दूर होगा। साथ ही सीमांत गांवों के लोगों को जल्द बूस्टर डोज देने की भी घोषणा की गई है।
                  सामरिक सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण व संवर्द्धन की दृष्टि से सीमा प्रहरी की भूमिका निभाने वाले सीमांत क्षेत्रों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बजट से बड़ी उम्मीदें हैं। डबल इंजन की सरकार इन गांवों के ढांचागत विकास की नींव रख सकती है। सीमांत क्षेत्रों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का अभियान इस बजट के माध्यम से और गति पकड़ सकता है।
                    उत्तराखंड पलायन निवारण आयोग ने मुख्यमंत्री बार्डर टूरिज्म योजना का खाका तैयार किया है। यदि इस दिशा में सरकार आगे बढ़ती है तो देश का सीमांत क्षेत्र न सिर्फ सुरक्षित होगा, बल्कि यहां स्थानीय आबादी को एक बाद फिर बसाकर उनके रोजगार के द्वार भी खुलेंगे।

आज भी निर्जन हैं सीमांत के कई गांव
भारत-चीन के बीच उत्तराखंड में 345 किमी लंबी सीमा है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के कई गांवों को खाली करा दिया गया था। इनमें से कई गांव आज भी निर्जन हैं। देश की सीमा में लगे यह गांव किसी प्रहरी की भांति काम करते थे। केंद्र सरकार भी ऐसे गांवों को फिर से आबाद करना चाहती है। इसके लिए केंद्र के स्तर पर प्रदेश के उच्चाधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं।

प्रधानमंत्री की घोषणा को आगे बढ़ाने का सही वक्त
उत्तरकाशी में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े अमोद पंवार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चमोली जिले के सीमांत गांव माणा को प्रथम गांव कहकर संबोधित कर चुके हैं। दूरस्थ और दुर्गम के इन क्षेत्रों के महत्व को भी प्रधानमंत्री रेखांकित कर चुके हैं। उन्होंने अपने संबोधन में सीमांत गांवों के विकास की बात कही थी। प्रधानमंत्री के इस संबोधन के बाद धामी सरकार का यह बजट इस घोषणा के प्रारूप को आगे बढ़ाने का सही वक्त है।
                   सीमांत गांवों में ढांचागत विकास पर सरकार का फोकस है। इसके तहत बार्डर टूरिज्म विकास जैसी योजना पर काम किया जा रहा है। इसके लिए धन की कमी नहीं आने दी जाएगी, सरकार ने इसके संकेत दिए हैं। सरकार चाहती है कि सीमावर्ती गांवों में फिर से रौनक लौटे, लेकिन इससे पहले वहां लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाने होंगे। बार्डर टूरिज्म इस दिशा में कारगर नीति हो सकती है। – डॉ. एसएस नेगी, उपाध्यक्ष, ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग

80 प्रतिशत से अधिक पर्वतीय भू-भाग वाले इस प्रदेश में भौगोलिक कठिनाइयों के कारण दुर्गम क्षेत्रों के विकास में केंद्र पोषित योजनाओं और केंद्रीय सहायता की निर्णायक भूमिका है। सीमांत गांवों का विकास बिना केंद्रीय सहायता के संभव नहीं है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि धामी सरकार अपने इस बजट में सीमांत गांवों के विकास का एक खाका प्रस्तुत करेगी। सीमांत गांव कभी खाली नहीं होने चाहिए। यह गांव प्रकृति, पर्यावरण के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इनकी अपनी संस्कृति और सभ्यता होती है, जिसमें निरंतरता बनी रहनी चाहिए।

– पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, पर्यावरणविद

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox