नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/गुवाहाटी/शिव कुमार यादव/- असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य सरकार असम में बहुविवाह पर रोक लगाएगी। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, ’एक से ज्यादा शादियों पर बैन लगाने के लिए आने वाले कुछ समय में असम सरकार ने एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने का फैसला किया है।
ये कमेटी पता करेगी कि क्या विधानसभा को राज्य में बहुविवाह पर रोक लगाने का अधिकार है? यह कमेटी भारत के संविधान के आर्टिकल 25, संविधान में दिए राज्य के नीति निदेशक तत्व और मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एक्ट 1937 के प्रावधानों का अध्ययन करेगी। कमेटी सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ विचार-विमर्श भी करेगी ताकि सही निर्णय लिया जा सके।
दरअसल बीते 6 मई को असम के सीएम सरमा कर्नाटक के कोडागु जिले के शनिवारासंथे मदिकेरी में रोड़ शो करने पहुंचे थे। यहां जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि असम में समान नागरिक संहिता को लागू करना बेहद जरूरी है ताकि पुरुष के “चार-चार शादियां“ करने और महिलाओं को “बच्चा पैदा करने वाली मशीन“ समझने की प्रथा को समाप्त किया जा सके।
सीएम ने कहा कि मुस्लिम बेटियों को बच्चा पैदा करने वाली मशीन नहीं बल्कि डॉक्टर और इंजीनियर बनाया जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आने पर वादा किया था कि वह समान नागरिक संहिता पर काम करेंगे और इसके लिए वो उनका धन्यवाद देना चाहते हैं। हालांकि सीएम हिमंता के इस बयान की जमकर आलोचना भी हुई थी। कहा गया कि वह अपने भाषण से धर्म विशेष को टारगेट कर रहे थे जिसके बाद उन्होंने ट्वीट करते हुए बहुविवाह पर रोक लगाने की बात कही।
क्या हैं बहुविवाह के नियम?
आईपीसी के धारा 494 (पति या पत्नी के जिंदा रहते दूसरी शादी करना) के तहत दो शादियां करना या कहें बहुविवाह करना एक अपराध है। इस धारा में कहा गया है कि अगर किसी का पति या पत्नी जिंदा है, मगर वह फिर भी शादी करता है, तो ऐसे हालात में उसकी शादी मान्य नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका वर्तमान पति या पत्नी अभी जिंदा हैं ऐसा करने पर उसे जेल में सजा काटनी पड़ सकती है।
बहुविवाह के अपराध में अधिकतम सात साल की सजा हो सकती है। साथ ही दोषी व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है हालांकि, इस धारा के तहत तब कार्रवाई नहीं होती है, जब अदालत द्वारा किसी शादी को अवैध करार दिया गया है। उदाहरण के लिए अगर किसी बाल विवाह के मामले को अवैध घोषित कर दिया जाए। इसके अलावा यह कानून तब लागू नहीं होता है जब पति या पत्नी सात साल से अलग रह रहे हों। आसान भाषा में समझे तो इसका मतलब यह है कि शादी के रिश्ते में अगर पति या पत्नी में से किसी एक ने शादी छोड़ दी हो या जब सात साल तक उसका ठिकाना नहीं पता है, तो ऐसी स्थिति में पति या पत्नी किसी और से विवाह कर सकते हैं।
मुस्लिम पुरुषों को एक से ज्यादा शादी करने की छूट
हमारे देश में आईपीसी की धारा 494 के तहत मुस्लिम पुरुषों को एक से ज्यादा शादी करने की छूट दी गई है। आईपीसी की इसी धारा के तहत मुस्लिम पुरुष एक पत्नी के रहते हुए दूसरी महिला से निकाह कर सकते हैं। मुस्लिम पुरुषों को शरियत कानून में भी बहुविवाह की अनुमति दी गई है जिसके तहत पहली पत्नी की सहमति से पुरुष चार शादियां कर सकते हैं हालांकि, इस कानून में भी केवल पुरुषों को दूसरी शादी करने की इजाजत है। मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के तहत दूसरी शादी नहीं कर सकती हैं। कानून के अनुसार अगर उन्हें किसी और से शादी करनी है तो उन्हें पहले अपने पति को तलाक देना होगा फिर वह दूसरी शादी कर सकती हैं
कब आती है दिक्कत
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के अनुसार मुस्लिम पति दूसरी शादी करने से पहले पहली पत्नी से इसकी अनुमति लेगें। जब उसे पहली पत्नी से इस शादी की इजाजत मिलती है तभी वो दूसरी शादी करेंगे लेकिन ज्यादातर मुस्लिम महिलाओं की शिकायत रही है उनसे दूसरी शादी करते वक्त इस बारे में कभी नहीं पूछा गया। कई मुस्लिम महिलाओं के अनुसार उनके शौहर ने उससे बीना पूछे शादी कर ली और ऐसा करने उन्हें काफी अपमानित महसूस करवाता है। यही नहीं, कई मामले ऐसे भी आई है जहां दूसरी शादी करने के बाद पति अपनी पहली पत्नी का ध्यान रखना बंद कर देते हैं। वहीं, पहली पत्नी पर दूसरी पत्नी से होने वाले बच्चों को पालने का बोझ आ जाता है। कई बार इन समस्याओं से निजात पाने के लिए उन्हें कानून का दरवाजा खटखटाना पड़ता हैं
भारत में बहुविवाह पर क्या कहते हैं आंकड़े
साल 1961 की जनगणना के अनुसार भारत में एक लाख विवाहों का सर्वेक्षण किया गया जिसमें बताया गया था कि मुसलमानों में बहुविवाह का प्रतिशत महज 5.7 फीसदी था, जो कि दूसरे धर्म के समुदायों की तुलना में सबसे कम था। उसके बाद के जनगणना में इस मुद्दे पर आंकड़े नहीं जुटाये गये। साल 2021 में आये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2019-2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत में हिंदुओं की 1.3 प्रतिशत, मुसलमानों की 1.9 प्रतिशत और दूसरे धार्मिक समूहों की 1.6 फीसदी आबादी में आज भी एक से ज्यादा शादी करने की प्रथा जारी हैं
एनएफएचएस के पिछले 15 सालों के आंकड़ों को देखें तो मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बहुविवाह प्रथा की दर गरीब, अशिक्षित और ग्रामीण तबके में बहुत ज्यादा है। ऐसे मामलों में क्षेत्र और धर्म के अलावा समाज-आर्थिक मुद्दों की भी भूमिका अहम है।
अब समझिये भारत में शादियों को लेकर हिंदू और मुसलमान में क्या है नियम?
हिंदू धर्मः
हिंदू धर्म के शास्त्रों के 13वें संस्कार में विवाह का भी जिक्र किया गया है जिसका मतलब है विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करना।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सहायक प्रोफेसर धनंजय वासुदेव द्विवेदी के अनुसार विवाह संस्कार हिंदू संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि अन्य सभी संस्कार इसी पर आश्रित है। विवाह को संस्कार इसलिए कहा जाता है कि इसके बाद व्यक्ति धरातल से उठकर पारिवारिक और सामाजिक धरातल पर पहुंच जाता है. प्राचीन काल में विवाह को यज्ञ माना जाता था।
साल 1955 में भारत में हिंदू विवाह अधिनियम लागू किया गया, जिसमें पति और पत्नी को तलाक लेने की स्वतंत्रता दी गईं इसके बाद शादी के संस्कार माने जाने को लेकर कई बार सवाल भी उठे। कई संगठनों ने उस वक्त इस अधिनियम का विरोध भी किया थां
इस्लामः
मुस्लिम समुदाय में विवाह को एक समझौते के तौर पर माना गया है। निकाह के वक्त पति, पत्नी के साथ एक काजी और दो गवाह को होना जरूरी है। गवाह अगर पुरुष नहीं हैं, तो 4 महिलाओं को गवाही देना होगा।
बहुविवाह को लेकर कर्नाटक कांग्रेस के नेता ने दिया था विवादित बयान
साल 2016 में कर्नाटक कांग्रेस के नेता इब्राहिम कोंडिजल ने कहा था कि इस्लाम में बहुविवाह की इजाजत है, क्योंकि कोई भी आदमी अपनी यौन इच्छाओं को पूरा कर सकें इससे वेश्यावृत्ति पर रोक लगती है।
सुप्रीम कोर्ट में अंतिम बार कब हुई थी सुनवाई?
सुप्रीम कोर्ट में 23 मार्च 2023 को इस मामले में अंतिम बार सुनवाई हुई थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ का गठन सही समय पर किया जाएगा। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ से वकील अश्विनी उपाध्याय ने मामले पर नई संविधान पीठ के गठन का अनुरोध किया था।
दुनिया की दो प्रतिशत आबादी बहुविवाह में रहती है
साल 2019 में प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि दुनिया की लगभग दो प्रतिशत आबादी बहुविवाह वाले परिवारों में रहती है। तुर्की और ट्यूनीशिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों और दुनिया के ज्यादातर देशों में बहुविवाह प्रथा पर अब प्रतिबंध लग चुका है। संयुक्त राष्ट्र बहुविवाह के रिवाज को ’महिलाओं के खि़लाफ़ स्वीकार न किया जाने वाला भेदभाव’ बताता है। उसकी अपील है कि इस प्रथा को ’निश्चित तौर पर ख़त्म’ कर दिया जाएं।
भारत में भी यह मुद्दा समय समय पर राजनीति के गलियारों में गर्म होता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार ने पूरे देश में समान नागरिक संहिता (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड) लागू करने का वादा किया है। भारत में एक बहुविवाह कानून का प्रस्ताव पिछले सात दशकों से काफ़ी विवादास्पद रहा है। वह भी इसलिए क्योंकि इसके बन जाने के बाद विवाह, तलाक और संपत्ति के उत्तराधिकार के नियम अलग अलग धर्मों के कानूनों द्वारा तय होने के बजाय एक ही क़ानून से तय होंगे।
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