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    अब एमपी-एमएलए के मुकदमे आसानी से वापस नहीं ले सकेंगी राज्य सरकारें

    -राजनीति को बेदाग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा कदम, भाजपा-कांग्रेस समेत 8 दलों पर ठोका जुर्माना

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- राजनीति को बेदाग करने व जनप्रतिनिधियों की साफ छवि के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। जिसके तहत अब एमपी-एमएलए के खिलाफ मूकदमों को राज्य सरकारें आसानी से वापस नही ले सकेंगी। एससी ने इसके लिए सभी पार्टियों को अपने उम्मीदवारों को नामांकन के 48 घंटे के अंदर पूरा ब्योरा देने के आदेश दिये है। वही एससी ने भाजपा व कांग्रेस समेत 8 राजनीतिक दलों को कोर्ट के आदेश की अवमानना का दोषी मानते हुए उनके खिलाफ मंगलवार को कार्यवाही करते हुए जूर्माना भी लगाया है।
                                    देश की राजनीति को बेदाग व साफ रखने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट सख्त हो गई है। कोर्ट ने बीजेपी और कांग्रेस सहित आठ राजनीतिक दलों के खिलाफ मंगलवार को जुर्माना लगाया है, जिन्होंने अपने उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक केसों का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया। बिहार चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित न करने के मामला पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 पार्टियों को अपने आदेश का पालन न करने के लिए अवमानना का दोषी माना। कोर्ट ने जेडीयू, आरजेडी, एलजेपी, कांग्रेस, बीजेपी, सीपीआई पर 1-1 लाख का जुर्माना किया है। इसके अलावा, सीपीएम और एनसीपी पर 5-5 लाख का जुर्माना लगाया है।
                           भविष्य के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि- राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड डालें. चुनाव आयोग ऐप बनाए, जहां मतदाता ऐसी जानकारी देख सके। इसके साथ ही, पार्टी प्रत्याशी चुनने के 48 घंटे के भीतर आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित करे। आदेश का पालन न होने पर आयोग सुप्रीम कोर्ट को सूचित करे।
                          जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक केस राज्य सरकारें अब मनमाने तरीके से वापस नहीं ले सकेगीं। सुप्रीम कोर्ट ने आज यह आदेश दिया कि कोई भी राज्य सरकार वर्तमान या पूर्व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक केस बिना हाई कोर्ट की मंजूरी के वापस नहीं ले सकती। सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों के तेज निपटारे से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है।
                           बता दें कि 2016 से लंबित इस मामले में कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से तमाम लंबित मुकदमों का ब्यौरा मांगा था। साथ ही केंद्र सरकार से कहा था कि वह हर राज्य में विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट बनाने के लिए फंड जारी करे। इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में मामले की सुनवाई हुई थी। तब से लेलर अब तक केंद्र ने कोर्ट के सवालों पर विस्तृत जवाब दाखिल नहीं किया है। चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने सरकार की गंभीरता पर भी सवाल उठाए.।

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