अनीशा चौहान/- समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘एक देश-एक चुनाव’ के मुद्दे पर एक गहरी और महत्वपूर्ण अपील की है। उन्होंने देशवासियों, पत्रकारों, लोकतंत्र के पक्षधर नागरिकों और सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं से इस विषय पर गहरी सोच-विचार करने और जन जागरूकता अभियान चलाने की अपील की। उनका कहना है कि यह मुद्दा सिर्फ एक चुनाव के आयोजन का मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे संविधान, लोकतांत्रिक व्यवस्था और भविष्य के अधिकारों से जुड़ा हुआ एक संवेदनशील मुद्दा है।
अखिलेश यादव ने अपनी अपील में कहा है कि लोकतंत्र के संदर्भ में ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक होता है, क्योंकि लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर है। जब हम ‘एक’ की बात करते हैं, तो यह दूसरे के अस्तित्व को नकारने जैसा है, और इससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है। व्यक्तिगत स्तर पर यह अहंकार को बढ़ावा देता है, जिससे सत्ता में तानाशाही की प्रवृत्ति जन्म ले सकती है। उनका कहना है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुलता को स्वीकार किया जाता है और एक समान विचारधारा की नहीं, बल्कि विभिन्न विचारधाराओं की स्वीकृति होती है।
अखिलेश यादव ने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘एक देश-एक चुनाव’ का प्रस्ताव देश के लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकता है। इस व्यवस्था को लागू करने से राज्यसभा और राज्यों की भूमिका कमजोर होगी, और इस तरह से देश के संघीय ढांचे पर भी चोट पड़ेगी। इससे राज्य स्तर पर जो स्थानीय मुद्दे हैं, उनका महत्व समाप्त हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों में फंसकर रह जाएगी, जो उनकी वास्तविक समस्याओं से जुड़े नहीं होंगे। अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान में राज्यों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और यह सोच समझ कर किया गया था कि विभिन्न राज्य अपनी-अपनी विशेषताओं और समस्याओं के आधार पर एकसाथ विकास कर सकें।
वह आगे कहते हैं, ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार हमारे संविधान को बदलने और उसकी धाराओं को समाप्त करने की एक साजिश हो सकती है। इसके द्वारा भाजपा जैसे दल राज्यसभा को भी समाप्त करने की मांग कर सकते हैं, ताकि वे और ज्यादा तानाशाही लागू कर सकें। उनके अनुसार, यदि ऐसा होता है तो लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सशक्त और संविधानिक रूप से महत्वपूर्ण संस्थाएं समाप्त हो जाएंगी, और देश एकतंत्रीय व्यवस्था की ओर बढ़ जाएगा।
अखिलेश यादव ने भाजपा पर यह आरोप भी लगाया कि वह ‘एक देश-एक चुनाव’ जैसे मुद्दे को महंगाई, बेरोजगारी और अन्य बड़े मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए उठा रही है। उनका मानना है कि भाजपा को केवल चुनावी जीत का ही ख्याल है और वह अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए हर तिकड़म करने को तैयार रहती है। इस प्रकार से ‘एक देश-एक चुनाव’ के मुद्दे का उठाना केवल एक राजनीतिक चाल है, जिसे भाजपा अपनी सत्ता की मजबूती के लिए इस्तेमाल करना चाहती है।
अखिलेश यादव ने यह सवाल भी उठाया कि यदि ‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू किया जाता है, तो क्या इसका मतलब होगा कि हर ग्राम पंचायत से लेकर, नगर निकायों, राज्य सरकारों और राष्ट्रीय चुनावों तक सभी चुनाव एक साथ होंगे? क्या ऐसे चुनावों की योजना का समय, संसाधन और प्रबंधन सही तरीके से किया जा सकता है? क्या इसे सरकारी स्तर पर ठेके पर दे दिया जाएगा, जैसा कि भाजपा की नीयत दिख रही है?
अखिलेश यादव ने इसके अलावा यह भी पूछा कि क्या यदि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए, तो क्या पूरे देश में फिर से चुनाव कराए जाएंगे? और क्या चुनावों के बीच राज्यों के चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं? क्या इस पूरी योजना का कोई स्पष्ट और निर्धारित समयसीमा है? या इसे भी महिला आरक्षण जैसे मुद्दों की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
अखिलेश यादव ने भाजपा से यह अपील की कि पहले अपनी पार्टी के भीतर ही जिलों, नगरों, राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ चुनावों की प्रक्रिया को लागू करके दिखाएं, फिर वे पूरे देश की बात करें। उन्होंने अंत में यह कहा कि भाजपा को यह साबित करना चाहिए कि उनका ‘एक देश-एक चुनाव’ का प्रस्ताव वास्तव में देश के लिए फायदेमंद है, और इसे सिर्फ सत्ता के लिए एक साधन न बनाया जाए।
अखिलेश यादव ने अंत में देशवासियों, पत्रकारों और सभी लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं से यह अपील की कि वे इस मुद्दे पर जागरूक रहें और इसके दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को समझाएं। उनका कहना है कि अगर ‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू किया जाता है, तो यह केवल तानाशाही को जन्म देगा, लोकतंत्र को कमजोर करेगा, और संविधान और चुनावों के अधिकारों को भी खत्म कर देगा।
अखिलेश यादव ने चेतावनी दी, “चेत जाइए, भविष्य बचाइए!”
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