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  • नजफगढ़ में कुश्ती में खत्म होता लड़कियों का करियर, बृजभूषण केस के बाद लड़कियों से रेसलिंग छुड़वा रहे परिजन

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    नजफगढ़ में कुश्ती में खत्म होता लड़कियों का करियर, बृजभूषण केस के बाद लड़कियों से रेसलिंग छुड़वा रहे परिजन

    -नजफगढ़ स्टेडियम में 70 में 30 लड़कियां ही अब आ रही प्रैक्टिस करने, -कोच बोले- अब दांव बताने में भी लगता है डर, लड़कियां बोली- घर से निकलते ही लोग कसते हैं फब्तियां

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नजफगढ़/शिव कुमार यादव/- कुश्ती में देश-विदेश में मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाने वाली हमारी महिला पहलवान आज न केवल अपने करियर को लेकर चिंता में है बल्कि बृजभूषण यौन उत्पीड़न के बाद से अपने खेल को लेकर काफी परेशान भी है। ये सब पूर्व प्रेसिडेंट बृजभूषण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद शुरू हुआ। जिसके बाद लड़कियों के लिए परिस्थितियां तेजी से बदल रही है। वहीं कुश्ती कोच भी महिला पहलवानों को लेकर काफी संशय में दिखाई दे रहे हैं। देश में अनेकों व्यायामशालाओं और अखाड़ों से महिला पहलवान कुश्ती छोड़ रही हैं। नजफगढ़ मैट्रो न्यूज की टीम ने नजफगढ़ स्टेडियम के इंडौर व्यायामशाला का दौरा किया और पाया कि नजफगढ़ स्टेडियम में इस प्रकरण के बाद काफी कुछ बदल गया है।


                     नजफगढ़ स्टेडियम के मुख्य कोच व इंटरनेशनल रैफरी विरेन्द्र दहिया ने बताया कि बृजभूषण मामले का सभी जगह गलत संदेश जा रहा है। खासकर अब बच्चियों के लिए कुश्ती खेलना आसान नही रह गया है। ऐसा नही है कि बच्चियां कुश्ती नही खेलना चाहती लेकिन उनके माता-पिता लोकलाज को आगे रखकर अब अपनी लड़कियों को रेसलिंग में नही भेजना चाहते। जिससे बच्चियों का सपना तो टूट ही रहा है साथ ही उनका करियर भी अब चौपट हो गया है। उन्होने बताया कि नजफगढ स्टेडियम में विभिन्न कैटेगिरी और वजन में करीब 60 से 70 लड़कियां कुश्ती की प्रैक्टिस करने आती थी। लेकिन इस प्रकरण के बाद अब सिर्फ 30 लड़कियां ही रह गई है। यह भी जब है जब उनके माता-पिता को काफी समझाया गया है। जो लड़कियां अब प्रैक्टिस पर आ रही है उनकी सुरक्षा के लिए उनके माता-पिता साथ आ रहे हैं। हम भी इस बात से निश्चिंत है कि इस तरह से विवाद से बचा जा सकता है। जब हमने महिला पहलवानों से बात करनी चाही तो उन्होने बात करने से मना कर दिया।
                   कुश्ती कोच दहिया का मानना है कि बृजभूषण केस का जो भी होगा वह बाद की बात है लेकिन इस प्रकरण से कुछ पहलवानों ने कुश्ती में लड़कियों के दरवाजे बंद करने का काम किया है। जिससे अब यह नही कहा जा सकता कि लड़किया फिर इस खेल में लौटेंगी भी या नही। वैसे तो आज हम चांद पर जाने की बात करते है। पश्चिम की हर बात की होड़ करते है लेकिन लड़कियों के मामले में अभी भी हमारे समाज में लोगों के दिल बंद है। इतना ही नही कुछ अखाड़ों ने तो इस प्रकरण के बाद से महिलाओं की कुश्ती की ट्रेनिंग ही बंद कर दी है। वहीं कुछ सेंटर्स ने तो लड़कों और लड़कियों की अलग-अलग प्रैक्टिस शुरू कर दी है।


                   बता दें कि दिल्ली, हरियाणा और मध्यप्रदेश के कुछ शहर के अखाड़ों में आने वाली महिला पहलवानों की संख्या 50 प्रतिशत तक कम हुई है। करीब 8 महीने तक चले रेसलर्स के आंदोलन के बाद अब कुश्ती में महिला पहलवानों की स्थिति काफी बदल गई है। नाम ना छापने की शर्त पर एक महिला पहलवान ने बताया कि इस प्रकरण के बाद से परिस्थितियां काफी बदल गई है। पहले हम अखाड़े में आते थे तो सभी कहते थे कि बेटी एक दिन देश का नाम रोशन करेगी लेकिन अब हम पर फब्तियां कसी जाती है। लोग कहते है किसी कोच को या अधिकारी को फंसा रखा होगा तभी तो आगे खेल रही है। और ऐसा लोग इसलिए कह रहे हैं कि हमारी खेल योजना में जो कमियां थी उन्हे दूर करने के लिए ही कुश्ती महासंघ ने कुछ नये नियम बनाये थे जो उन खिलाड़ियों को पसंद नही आये जो इसे अपनी जागीर समझ रहे थे। बस सबसे बड़ी लड़ाई यही है। कुछ ऐसी महिला पहलवान है जो कुश्ती में अपना वर्चस्व रखना चाहती हैं और उन्होने ही पूरे खेल और महिलाओं को बदनाम कर दिया।
                       वहीं कालू पहलवान की माने तो, ’लड़कियों की संख्या तेजी से कम हुई है। उन्होने बताया इस प्रकरण का सबसे ज्यादा नुक्सान नवोदित खिलाड़ियों झेलना पड़ रहा है जो शुरू से कुश्ती में अपना करियर बनाने के लिए लगी हुई थी लेकिन अब परिवार के बदले रवैये ने उन्हे पूरी तरह से तोड़ दिया है। इतना ही मिडिल फैमिली की लड़कियों से लिए यह समस्या काफी बड़ी बन गई है। वही अब कोच भी लड़कियों को दांव बताने से बचते नजर आते है। उनके मन में भी डर लगा रहता है कि बाद में कहीं किसी लड़की ने आरोप लगा दिया, तो करियर खत्म हो जाएगा। ऐसे में समाज का सामना कैसे करूंगा।’ फेडरेशन में जो हुआ, उसके बाद माता-पिता को समझाना मुश्किल हो रहा है। ’मैंने तो अब पेरेंट्स को भी सेंटर पर बुलाना शुरू कर दिया। वे हफ्ते में दो दिन आ सकते हैं। वे अपने सामने ट्रेनिंग देखें। कुछ पेरेंट्स आते हैं, लेकिन सभी के लिए आना मुमकिन नहीं है।

    बेटी टूर्नामेंट और कैंप में जाती है, तो चिंता होती है- माता-पिता
    खिलाड़ियों के माता-पिता की माने तो अब बेटी कैंप या टूर्नामेंट में जाती है तो एक चिंता सी रहती है। उनका कहना है कि हम नही चाहते कि एक बेटी का करियर खत्म हो लेकिन इस प्रकरण के बाद समाज का मिजाज बदल गया है और लोग मन में जो आये बोल देते है। लेकिन फिर भी हम उन्हें कैंप और टूर्नामेंट के लिए भेज रहे हैं। हां, लगातार वीडियो कॉल करता रहता हूं। ट्रेनिंग के लिए मैं खुद ही लेकर आता हूं।’

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