
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पूरे देश में किसान व एमएसपी को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है। कुछ तथा कथित किसान नेता व बड़े आढ़ती इस खेल को जारी रखने के लिए केंद्र सरकार पर किसान आंदोलन नाम पर दबाव बनाने का भरसक प्रयास कर रहे है हालांकि केंद्र सरकार ने किसानों की समृद्धि के लिए 3 कृषि बिलों के माध्यम से दशा सुधारने व बिचैलियों से किसानों को मुक्ति दिलाने की कोशिश की है लेकिन फिर भी अभी तक देश का किसान आढ़तियों व तथा कथित नेताओं के इस खेल को समझ नही पा रहा है। दिल्ली में भी अब एमएसपी का खेल शुरू हो चुका है और सरकारी खरीद के नाम आढ़ती व सरकारी एजेंसियों की मिली भगत पर सवाल उठाते हुए भारतीय किसान संघ के कंझावला जिला अध्यक्ष बिजेन्द्र कोटला ने 13.5 करोड़ के घोंटाले की आशंका जताई है।
दिल्ली की मंडियों में होने वाले एमएसपी के खेल पर सवाल उठाते हुए श्री कोटला ने बताया कि एक तरफ सरकार किसानों को बिचैलियों से मुक्ति दिलाने की कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी तरफ किसान आढ़तियों व सरकारी एजेंसियों के खेल में फंसते जा रहे है। उन्होने कहा कि किसानों को एमएसपी दिलाने की केंद्र व दिल्ली सरकार की लड़ाई का आढ़ती व बिचैलियें फायदा उठा सकते है। उन्होने मंडियों में चल रहे एमएसपी के खेल को उजागर करते हुए कहा कि एमएसपी व्यवस्था लागू होने के आरंभ से ही पूरे पंजाब में आंशिक हरियाणा के किसान एमएसपी के सर्वाधिक लाभार्थी रहे हैं। अभी।भी चल रहे किसान आंदोलन में पंजाब व आंशिक हरियाणा के किसान एमएसपी पर सर्वाधिक आक्रामक हैं।
यहां बता दें कि इस वर्ष केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश में एमएसपी का लाभ किसानों के आधार कार्ड से जोड़ने और सीधे बैंक खाते में पहुंचाने का प्रबंध किया है। इस प्रबंध से वास्तविक किसानों को तो लाभ पहुंचा है परंतु तथाकथित घोटालेबाज किसान व्यक्तियों के घोटालों पर नकेल कसने का काम किया है। सरकार की नई नीति एक प्रकार से वज्रपात व आपदा सिद्ध हुई है। दिल्ली सरकार की मंडियों के आढ़तियों व तथाकथित किसानों और भारतीय खाद्य निगम के घोटालेबाज अधिकारियों और केंद्र व दिल्ली सरकार की कृषि संबंधी समितियों में बैठे विरोधाभासी दलों द्वारा मनोनीत सदस्यों के गठन को इस आपदा में लाभकारी अवसर दिखाई दे गया, जिस दिल्ली में केंद्र सरकार को बिल्डरों के माध्यम से दिल्ली के किसानों की जमीनों पर फ्लैट उगाने और फार्म हाउस स्थापित करने के सपने आ रहे थे, उन सपनों को पूरा करने हेतु योजनाएं बनाई जाने लगी और किसान का दर्जा समाप्त करके फसल विवरण गिरदावरी जारी करना बंद कर दिया गया। यहां तक कि खेतों को शहरीकृत घोषित कर दिया गया व नहरी पानी बंद कर दिया गया। कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी बंद कर दी गई। किसानों को सस्ती दरों पर बिजली देनी बंद कर दी गई तथा कृषि हेतु नए कनेक्शन देने बंद कर दिए गए। ट्यूबेल व बोरवेल पर प्रतिबंध लगा दिया गया, यहां तक कि पशुपालन भी प्रतिबंधित कर अनुबंधित कर दिया गया। पिछले वर्ष दिल्ली में एमएसपी पर भी खरीद नहीं हुई और इसे लेकर किसान संगठनों द्वारा सैकड़ों बार धरने प्रदर्शन किए गए एवं हजारों ज्ञापन दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार को दिये गये। किंतु दिल्ली के किसानों को कृषि संबंधी सभी लाभ नहीं दिए गए और फसल की गिरदावरी जैसी महत्वपूर्ण कार्रवाई भी नहीं की गई परंतु यह वास्तविकता है कि सरकार ने भले ही कागजी तौर पर दिल्ली की कृषि भूमि का दर्जा समाप्त कर दिया परंतु दिल्ली में अभी भी हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि है और ग्रामीण क्षेत्रों की लाखों की जनसंख्या की आजीविका कृषि पर निर्भर है यह वास्तविकता जानते हुए भी दिल्ली के मंत्री गोपाल राय द्वारा नरेला मंडी में जिक्र किया कि इस वर्ष दिल्ली में अनुमानित 83 हजार मैट्रिक टन गेहूं के उत्पादन होना है।
अब खेल यहां से शुरू होता है क्योंकि आपदाओं में लाभकारी अवसर ढूंढने वालों ने दिल्ली में अवसर खोज लिया फसल बुवाई संबंधी अधिकारिक विवरण प्रमाणित करने की गिरदावरी व्यवस्था दिल्ली में बंद होना घोटाले के लिए अनुकूलता प्रदान करता है। फसल बुवाई के समय ही भारतीय खाद्य निगम द्वारा उसकी आंतरिक योजना अनुसार आरंभ में दिल्ली में एमएसपी पर गेहूं खरीद का लक्ष्य एक हजार मैट्रिक टन रखा गया था परंतु बाद में यह अप्रत्याशित रूप से 50 गुना बढ़ाकर 50 हजार मैट्रिक टन हो गया। यही अतिरिक्त 49 हजार मैट्रिक टन गेहूं की मात्रा में लाभकारी अवसर के रूप में सामने आया है। किसान आंदोलन में केंद्र सरकार व विपक्ष की क्रिया-प्रतिक्रिया के बीच दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार का किसानों को समर्थन करने के निर्णय में दिल्ली के किसानों को लाभ देने को विवश होना पड़ा और केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा भी खरीद का लक्ष्य बनाना पड़ा जिसके चलते सरकार ने दिल्ली में एफसीआई को किसानों की फसल खरीदने के लिए अधिकृत किया।
अब यह घोटाले की भेंट चढ़ने की ओर अग्रसर है इस 50,000 मैट्रिक टन गेहूं की एमएसपी पर खरीद के लिए लाभ से दिल्ली के अधिकांश किसान वंचित रह गए हैं क्योंकि गिरदावरी दस्तावेज के अभाव और मंडी व एफसीआई की नूरा कुश्ती में दिल्ली के अधिकांश किसानों को अपनी फसल मंडी में आढ़तियों को 1650 1700 रूपये प्रति क्विंटल भाव से बेचनी पड़ी है। आप जो कि अधिकांश किसान अपनी उपज को मंडी में आढ़तियों को भेज चुके हैं तो गिरदावरी आदि की बाध्यकारी शर्तें हटा ली गई है और अभी भी लगभग 500 मेट्रिक टन अनाज यदि सीधे सीधे किसानों से खरीद भी लिया जाए तो बाकी का 45000 टन अनाज 8 दिनों से खरीदकर 50,000 मीट्रिक टन का लक्ष्य पूरा कर लिए जाने की पूरी पूरी संभावना है। इसकी पृष्ठभूमि तैयार कर ली गई है। इस प्रकार 8 दिनों में एफसीआईं द्वारा और 1675 प्रति क्विंटल खरीद और फिर 1975 रुपए प्रति क्विंटल एफसीआई को बेचने में 300 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 30,000 प्रति मीट्रिक टन के अनुसार 45000 मीटर पर 13.5 करोड़ रुपए घोटाले की संभावना है।
किसानों को इस घोटाले से बचाने और उनको उनका हक दिलाने के लिए भातीय किसान संघ ने सरकार को अपने कुछ सुझाव भी दिये है जो इस प्रकार है-
दिल्ली में एमएसपी पर खरीद के लिए 15 दिनों में 1000 मेट्रिक टन तय किए गए थे। अब एक हजार मैट्रिक टन से बढ़ाकर 50000 मीटर टन की खरीद के अनुसार बढ़े हुए लक्ष्य के अनुपात में 50 गुना समयावधि भी बढ़ाई जाए। एफसीआई द्वारा जो भी खरीद होनी है वह किसानों से ही सीधे-सीधे खरीद हो। आढ़तियों के माध्यम से एमएसपी पर खरीदी गई फसल का भी किसानों को लााभ दे। क्योंकि यह एमएसपी व्यवस्था किसानों को लाभ देने के लिए अस्तित्व में आई है ना की आढ़ती व व्यापारी को लाभ देने के लिए। एफसीआई दिल्ली सरकार द्वारा जारी होने वाली गिरदावरी को बहाना बनाकर नूरा कुश्ती में गिरदावरी व विकल्प के अभाव में खरीदारी की देरी के चलते जो किसान अपनी फसल मंडी में भेज चुके हैं उनसे क्षमा याचना करते हुए उनको मंडी व एसपी के भावांतर का लाभ दिया जाए।
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