आत्मनिर्भर भारत की नींव है योग साधना- कुलपति

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

November 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
24252627282930
November 9, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

आत्मनिर्भर भारत की नींव है योग साधना- कुलपति

-श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में मनाई गई महर्षि दयानंद की 200वीं जयंती

नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- महर्षि दयानंद की 200वीं जयंती के उपलक्ष में “आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योग की भूमिका“ विषयक त्रिदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के योग विज्ञान विभाग द्वारा किया गया।
        कार्यक्रम का उद्घाटन  माननीय कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने किया, उन्होंने अपने  उद्बोधन में कहा योग से ही  आत्मनिर्भर भारत बन सकता है। हर कार्य को कर्तव्य भाव से करना ही भगवान श्री कृष्ण के अनुसार योग है। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने कार्यों को निष्काम व कर्तव्य भाव से करेगा तो ही भारत आत्मनिर्भर बन पाएगा। इस कार्यक्रम के संयोजक डॉ. रमेश कुमार योगाचार्य ने सभी अतिथियों का फूलमाला एवं शॉल के द्वारा स्वागत किया।

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रोफेसर यीशु भारद्वाज पूर्व संकाय प्रमुख गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ने कहा कि योग द्वारा ही हम अपने जीवन में कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। यदि  हम योग करेंगे तो स्वस्थ रहकर देश के प्रति कार्यों को कर  सकेंगे जिससे देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा । समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. विनय आर्य, महामंत्री आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली ने स्वामी दयानंद के सिद्धांतों को अपनाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद ने कहा था कि वेद का पढ़ना पढ़ाना, सुनना और सुनना सभी आर्यों का परम धर्म है।
          विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित प्रो. सुधीर कुमार आर्य ने कहा कि संस्कृत पढ़ने से ही व्यक्ति में संस्कारों का उदय होता है, इसलिए हमें संस्कारों का उदय करने के लिए संस्कृत का पठन- पाठान करते हुए जीवन के लिए निर्धारित 16 संस्कारों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए, जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है और वह संस्कार युक्त होकर अच्छे कार्यों में संलग्न होता है।

इस अवसर पर प्रोफेसर ईश्वर भारद्वाज को ( भीष्म पितामह राष्ट्रीय अवार्ड ) से सम्मानित किया गया। समापन समारोह की अध्यक्षता दर्शन पीठ प्रमुख प्रो. ए. एस. आरावमुदन ने की । कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलसचिव संतोष कुमार श्रीवास्तव ने की । इस कार्यक्रम में दक्षिण अमेरिका से डॉ. सोमवीर आर्य, निदेशक स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय राजदूत आवास सूरीनाम ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपना वक्तव्य प्रदान किया।
          दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर ओमनाथ विमली, पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार से निधीश कुमार, डॉ. वात्सल्य पाठक, मनोवैज्ञानिक डॉ. अशोक भास्कर, डॉ दिनेश यादव, डॉ. अमित राठौर, डॉ. रामनारायण मिश्र, डॉ. दिलीप कुमार तिवारी, महेंद्र भाई जी,  कमलेश शास्त्री क्षेत्रीय बाल कल्याण अधिकारी, डॉ. हरीश कुमार, डॉ. रवि कुमार शास्त्री, डॉ. सत्येंद्र मिश्रा, डॉ. मोहन,  प्रो. निखिलेश यादव, आशा भारद्वाज, हर्ष शुक्ला आदि विद्वानों ने अपने विचार रखे।अन्त में कार्यक्रम के सह-संयोजक डॉ. नवदीप जोशी ने सभी गणमान्य लोगो का धन्यवाद ज्ञापन किया ।

About Post Author

आपने शायद इसे नहीं पढ़ा

Subscribe to get news in your inbox