
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 21 दिन से दिल्ली के विभिन्न बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों का साफ कहना है कि ये कानून उनके खिलाफ हैं। इनमें से एक अनुबंध खेती करने का भी कानून है। इस कानून पर किसान नेता दावा कर रहे हैं कि निजी कंपनियां उनकी जमीनों पर कब्जा जमा लेंगी। हालांकि इस आंदोलन में सबसे ज्यादा पंजाब के किसान भाग ले रहे है जो आंदोलन में अनुबंध खेती का विरोध कर रहे है तो वहीं अपने खेतों में 15 साल से अनुबंध खेती कर रहे हैं और कंपनियों से अनुबंध कर यहीं किसान 20 हजार रूपये प्रति एकड़ कमा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या ये किसान किसी दबाव में देश को गुमराह कर रहे है या वजह कुछ और है।
पंजाब के मालवा के 15 जिलों में किसानों ने अनुबंध खेती के तहत ज्यादातर जमीने कंपनियों को अनुबंध पर दे रखी है और वही कंपनियां आलू और अन्य फसलों के बीज तैयार करने के लिए किसानों से ठेके पर काम करवा रही हैं। इस संबंध में कई किसानों से बात की गई लेकिन इस समय चल रहे आंदोलन के कारण किसान खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। कुछ किसान यह बात मान रहे हैं कि फायदा हो रहा है लेकिन किसान यूनियन का खौफ इस कदर है कि वह अपना नाम तो क्या गांव का नाम भी बताने को तैयार नहीं हैं।
अनुबंध खेती को लेकर केंद्र सरकार के नेता दावा कर रहे हैं कि यह किसानों के लिए फायदेमंद है। पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय सांपला ने एक समारोह में अनुबंध खेती के बारे में बताया था कि कंपनी जब किसान से किसी फसल का अनुबंध करेगी तो दाम पहले ही तय हो जाएंगे। उदाहरण देकर उन्होंने बताया था कि अगर कंपनी किसान से टमाटर की फसल अनुबंध करती है तो भाव 10 रुपये किलो तय हो जाएंगे। फसल तैयार होने पर अगर टमाटर का दाम 12 रुपये किलो होगा तो किसान को 12 रुपये मिलेंगे। अगर किसी कारण भाव कम होकर आठ रुपये किलो रह जाता है तो भी किसान को 10 रुपये ही मिलेंगे। अगर कंपनी किसान के खेत में कोई निर्माण करती है तो अनुबंध खत्म होने के बाद वह उसे वहां से ले जा सकती है। अन्यथा उसे किसान को दे सकती है।
40 हजार रुपये प्रति एकड़ कंपनी को देकर किसान कर रहे अनुबंध खेती
लुधियाना के एक गांव के किसान बताते हैं कि वह बीते तीन साल से अनुबंध खेती कर रहे हैं। वह पेप्सी कंपनी के लिए आलू की खेती करते हैं, साथ ही आलू के बीज भी तैयार कर कंपनी को दे रहे हैं। इस समय वह लगभग तीस एकड़ जमीन पर अनुबंध खेती कर रहे हैं। इस बार उन्होंने आलू की एफ-11 किस्म लगाई है। बीज कंपनी की तरफ से दिए गए हैं, इसलिए उन्होंने प्रति एकड़ लगभग 40 हजार रुपये कंपनी को अग्रिम दिए हैं। इसके साथ टियूमर आलू बीज तैयार करने के लिए कंपनी को 13 हजार रुपये प्रति एकड़ पहले से दिया है। अब इस फसल की बिजाई, उसकी देखभाल और फसल तैयार होने पर आलू निकालने का खर्च वह खुद करेंगे। आलू की छंटाई कर लोडिंग करने का खर्च पहले वह खुद देंगे, बाद में कंपनी यह पैसा उन्हें लौटा देगी। अनुबंध करने वाली कंपनी आलू की फसल पर कीटनाशक छिड़काव को देती है। उन्हें प्रति एकड़ 35 सौ रुपये कंपनी को कीटनाशक दवा का देना होता है। अगर कमाई की बात करें तो सभी खर्च निकालकर लगभग 35 हजार रुपये की कमाई एक एकड़ से होती है। इस पूरी कहानी से एक बात साफ है कि अनुबंध खेती से फायदा तो हो रहा है।
जब कृषि कानूनों के बारे में पूछा तो किसान का साफ कहना था कि केंद्र सरकार का कानून ठीक नहीं है। इस समय पूरे प्रदेश में आंदोलन चल रहा है। वह खुद दिल्ली बॉर्डर पर लगे धरने पर जाकर आए हैं। अगर वह खुद फायदे की बात करने लगे तो किसान यूनियन का आक्रोश उन्हें झेलना पड़ेगा।
नए कानून से अब एग्रीमेंट का कुछ असर होगा
समराला के पास एक गांव के किसान बताते हैं कि वह बीज कंपनी के कहने पर तीस एकड़ में बीज तैयार कर रहे हैं। इसमें 20 एकड़ में गेहूं की नई किस्म के बीज और 10 एकड़ में धान के बीज तैयार करेंगे। प्रति एकड़ उन्हें लगभग 35 हजार रुपये खर्च करने पड़ेंगे। इसमें 25 हजार रुपये जमीन का किराया और 10 हजार रुपये अन्य खर्च शामिल होंगे। उन्हें प्रति एकड़ लगभग 60 हजार रुपये की आय होगी, अगर शुद्ध लाभ की बात करें तो एक एकड़ से 20 से 25 हजार रुपये मिलेंगे। इस कंपनी के साथ उन्होंने कोई अनुबंध नहीं किया है, क्योंकि अभी तक जो भी अनुबंध किए जाते हैं, उनका कानून की नजर में कोई वजूद नहीं है। केंद्र सरकार के नए कानून से अब अनुबंध का कुछ असर होगा। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि उनके दोस्त ने एक कंपनी के लिए शिमला मिर्च की खेती का अनुबंध किया था। बाद में कंपनी अपने अनुबंध से पीछे हट गई। उनके दोस्त को लगभग 2.50 लाख रुपये का नुकसान झेलना पड़ा। उसने डीसी के पास शिकायत की। काफी दिन बीत जाने पर डीसी का कहना था कि यह उनके दायरे में नहीं आता है। नए कानून से अब हम डीसी तक पहुंच तो सकते हैं। अगर सरकार इसे अदालत तक ले जाने की बात करे तो किसानों के लिए और भी फायदेमंद होगा।
अनुबंध खेती से अधिक लोग जुड़े तो लाभ कम होता चला गया
लुधियाना के रायकोट निवासी किसान बताते हैं कि उन्होंने साल 2000 से अनुबंध पर खेती की शुरुआत की थी। ज्यादातर आलू, मूंग और मूली के बीज तैयार करने का काम मिलता था। कुछ साल तक उन्हें बहुत फायदा हुआ। प्रति एकड़ 25 से 30 हजार रुपये कमाई हुई। धान और गेहूं की फसल के अलावा यह हमारी तीसरी फसल हो जाती थी। पहले कंपनी पांच हजार रुपये प्रति एकड़ बीज का पैसा अग्रिम लेती थी। इसके बाद धीरे-धीरे 20 हजार तक पहुंच गया। उन्होंने अपने गांव के आसपास के गांवों के किसानों को इसके साथ जोड़ा। पहले पांच साल तो कंपनी अच्छी पैदावार करने वाले किसानों को बोनस भी देती थी। अगर आलू का भाव तेज होता तो कंपनी सारा आलू खरीद लेती थी। अगर भाव गिरा तो फिर कंपनी खरीद करने में आनाकानी करने लगती। जब इससे ज्यादा लोग जुड़ गए तो लाभ कम होता चल गया। उस समय ठेका करते समय रेट तय नहीं होता था। जब उनसे नए कानून के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि यह तो कानून की शर्तों पर निर्भर करता है। अभी उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
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