
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- जहां पूरी दुनिया में कोरोना ने कोहराम मचा रखा है तो वहीं इस संकट में एक राहत की खबर सामने आ रही है। जिन कोरोना मरीजों की रिपोर्ट दोबारा कोरोना पॉजिटिव आए तो उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। बता दें कि दोबारा पॉजिटिव होना कोरोना मरीजों का रिकवरी फेज होता है।
दरअसल कोरोनावायरस ने अपने कई रूप बदले हैं, कभी लक्षण के रूप बदले तो कभी ठीन होने के समय में, ऐसे में देखा गया है कि जो कोरोना मरीज दोबारा कोरोना पॉजिटिव हो रहे हैं वो उनका रिकवरी फेज होता है। आपको बता दें कि चीन से लेकर भारत तक में यह ट्रेंड देखा जा रहा है कि जो कोरोना मरीज ठीक हो चुके हैं वो दोबारा भी पॉजिटिव निकले हैं। ऐसे में आपको डरना है या नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्थिति स्पष्ट की है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिसर्च फाइंडिंग टीम के हवाले से बताया है कि यह जरूरी नहीं कि जो मरीज ठीक हो चुके हैं उनकी हर बार रिपोर्ट निगेटिव ही आए। दरअसल फेफड़े की मृत कोशिकाओं के कारण दोबारा पॉजिटिव रिपोर्ट की संभावना बनी रहती है। पर इसका मतलब यह नहीं कि मरीज री-इंफेक्टेट है। यह मरीज का रिकवरी फेज होता है।
डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 संक्रमित मरीजों को लेकर जो महत्वूपर्ण जानकारी साझा की है, उसके अनुसार इसकी पूरी संभावना बनी रहती है कि जो मरीज एक बार ठीक हो चुका है उसकी रिपोर्ट दोबारा पॉजिटिव आए। पर मरीजों का दोबारा पॉजिटिव टेस्ट आने के पीछे फेफड़ों की मरी हुई कोशिकाएं जिम्मेदार हो सकती हैं। इससे मरीजों को डरने की जरूरत नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने स्पष्ट किया है कि ताजा आंकड़ों और विश्लेषणों के आधार पर कहा जा सकता है कि रिपोर्ट पॉजिटिव आना स्वाभाविक है। ठीक होने के बाद मरीजों के फेफड़ों से मृत कोशिकाएं बाहर आ सकती हैं। इन मृत कोशिकाओं के आधार पर रिपोर्ट पॉजिटिव आ सकती है। पर यह मरीजों का रिकवरी फेज है जिसमें मनुष्य का शरीर खुद ही उसकी सफाई करता है। डब्ल्यूएचओ ने ये भी कहा है कि, कोरोना के दूसरे फेज की बात करना गलत है। तमाम देशों में काफी संख्या में मरीजों की रिपोर्ट ठीक होने के बाद दोबारा पॉजिटिव आई है। यह खास चिंता की बात नहीं है। यह कोरोना का दूसरा फेज बिल्कुल नहीं है। अप्रैल में सबसे पहले दक्षिण कोरिया ने अपने यहां के सौ मरीजों की रिपोर्ट दी थी, जिसमें बताया गया था कि ठीक होने के बाद वो दोबारा पॉजिटिव निकले हैं। इसके बाद कई अन्य देशों में ऐसी बातें सामने आईं। पर अब स्पष्ट है कि इससे ज्यादा खतरा नहीं।
डब्ल्यूएचओ के महामारी विज्ञानी मारिया वान केहोव ने कहा कि ठीक होने के बाद कोरोना मरीजों के फेफड़े अपने आप को रिकवर करते हैं। ऐसे में वहां मौजूद डेड सेल्स बाहर की तरफ आने लगते हैं। वास्तव में ये फेफड़े के ही सुक्ष्म अंश होते हैं जो नाक या मुंह के रास्ते बाहर निकलते हैं। ये डेड सेल्स संक्रामक वायरस हैं यह कहना बिल्कुल गलत है। न ही ये संक्रमण का री-एक्टिवेशन है। वास्तव में यह स्थिति तो उपचार प्रक्रिया का हिस्सा एक है। शरीर खुद को रिकवर करता है।
More Stories
दिल्ली: 20 अप्रैल से 5 मई तक पूरे देश में वक्फ संशोधन जागरूकता अभियान चलाएगी बीजेपी
देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए SC ज़िम्मेदार- निशिकांत दुबे, राजनीति मैदान में मचा हंगामा
नजफगढ़ विधायक नीलम पहलवान ने किया राव तुलाराम अस्पताल का औचक दौरा
नजफगढ़ थाना पुलिस ने एनकाउंटर के बाद पकड़ा नामी बदमाश
लक्ष्मीबाई कॉलेज परिसर को गोबर से लीपने के मामले में दिल्ली पंचायत संघ ने दिया पूर्ण समर्थन
प्रकृति भक्त फाउंडेशन ने गुरुद्वारा हरगोबिंदसर साहिब में 1000 पौधे लगाने का लिया संकल्प