अरावली पर संकट: करोड़ों साल पुरानी प्राकृतिक ढाल पर मंडराता खतरा

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
December 22, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

-धरती की प्राचीन विरासत, 200 करोड़ वर्ष पुराना पहाड़

-धरती की प्राचीन विरासत, 200 करोड़ वर्ष पुराना पहाड़
अरावली पर्वतमाला को दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में गिना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 200 करोड़ वर्ष पहले धरती की भू-गर्भीय गतिविधियों के दौरान अरावली का निर्माण हुआ था, जब मानव सभ्यता का कोई अस्तित्व नहीं था। यह पर्वतमाला केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिम भारत के पर्यावरण संतुलन की रीढ़ मानी जाती है।

रेगिस्तान के विस्तार पर सदियों से लगा रहा ब्रेक
इतिहास गवाह है कि समय के साथ राजे आए, साम्राज्य बने और मिट गए, लेकिन अरावली चट्टान बनकर खड़ी रही। राजस्थान और आसपास के इलाकों में रेगिस्तान के फैलाव को रोकने में अरावली की भूमिका अहम रही है। इस पर्वतमाला ने तेज हवाओं को थामने, बाढ़ को नियंत्रित करने और भूजल को संरक्षित रखने में प्राकृतिक कवच का काम किया।

पर्यावरण संरक्षण में अरावली की अहम भूमिका
विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली न होती तो आज उत्तर भारत के कई हिस्से मरुस्थल में तब्दील हो चुके होते। यह पर्वतमाला वर्षा जल को रोककर जमीन के भीतर पहुंचाने में मदद करती है, जिससे कुएं, तालाब और जलस्रोत जीवित रहते हैं। साथ ही यह प्रदूषण और धूल भरी हवाओं को भी काफी हद तक रोकती है।

कम ऊंचाई, लेकिन बड़ी जिम्मेदारी
हाल के वर्षों में यह तर्क सामने आया है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले पहाड़ों को काटा जा सकता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह सोच बेहद खतरनाक है, क्योंकि पहाड़ की उपयोगिता उसकी ऊंचाई से नहीं, बल्कि उसकी पारिस्थितिक भूमिका से तय होती है। अरावली भले ही ऊंची न हो, लेकिन इसका अस्तित्व लाखों लोगों की जीवनरेखा से जुड़ा है।

खनन और विकास के नाम पर बढ़ता खतरा
अरावली क्षेत्र में अवैध खनन, निर्माण गतिविधियां और औद्योगिक विस्तार तेजी से बढ़ रहा है। मशीनों और विस्फोटों से पहाड़ों को काटा जा रहा है, जिससे न केवल प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि भविष्य में जल संकट और पर्यावरणीय आपदाओं की आशंका भी बढ़ती जा रही है।

भविष्य की पीढ़ियों के लिए चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि आज अरावली को नहीं बचाया गया, तो आने वाली पीढ़ियां इसके दुष्परिणाम भुगतने को मजबूर होंगी। रेगिस्तान का विस्तार, पानी की भारी कमी और जहरीली हवाएं शहरों की पहचान बन सकती हैं। सवाल यही है कि जो पर्वतमाला करोड़ों वर्षों से मानव की रक्षा करती आई, क्या हम उसे बचाने में असफल रहेंगे?

संरक्षण की मांग तेज
अब जरूरत है कि अरावली को केवल भू-भाग नहीं, बल्कि जीवित धरोहर मानकर संरक्षित किया जाए। पर्यावरणविद, सामाजिक संगठन और स्थानीय लोग सरकार से सख्त कानून और प्रभावी अमल की मांग कर रहे हैं, ताकि यह प्राचीन पर्वतमाला आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवन की ढाल बनी रहे।

About Post Author

आपने शायद इसे नहीं पढ़ा

Subscribe to get news in your inbox