
नई दिल्ली/अनीशा चौहान/- आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पितृ विसर्जन का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष पितृ विसर्जन 2 अक्टूबर को पड़ रहा है। यह तिथि समस्त पितरों का विसर्जन करने के लिए मानी जाती है। जिन पितरों की पुण्यतिथि उनके परिजनों को ज्ञात नहीं होती या जिनका श्राद्ध तर्पण पितृ पक्ष के 15 दिनों में किसी कारणवश नहीं हो पाता, उनके लिए इस अमावस्या को श्राद्ध तर्पण और दान किया जाता है।
तर्पण का महत्व
तर्पण करने से समस्त ब्रह्मांड का कल्याण होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि बिना कुश धारण किए केवल हाथ से तर्पण नहीं करना चाहिए। तर्पण और श्राद्ध कर्म को हमेशा एक सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण की देखरेख में करना चाहिए।
श्राद्ध में दान का महत्व
श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों को दान देना अनिवार्य होता है, लेकिन इसके साथ ही यदि आप किसी गरीब, जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करते हैं, तो आपको अधिक पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा, श्राद्ध के दिन गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भोजन का एक अंश अवश्य निकालना चाहिए।
श्राद्ध करने का स्थान और विधि
अगर संभव हो, तो गंगा नदी के किनारे श्राद्ध कर्म करना चाहिए। यदि यह संभव न हो, तो घर पर भी विधिपूर्वक श्राद्ध किया जा सकता है। श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, और भोजन के बाद दान-दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट करना आवश्यक है। श्राद्ध पूजा सही समय पर प्रारंभ करनी चाहिए, और योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चार के साथ तर्पण और पूजा करनी चाहिए।
श्राद्ध पूजा की सामग्री
श्राद्ध पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री आवश्यक होती है:
- रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी, रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी
- देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता, पान का पत्ता, जौ
- हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी का दीया, रुई की बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल
- खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग और गन्ना
श्राद्ध पूजा का महत्व हमारे पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करना और उनके आशीर्वाद से सुख-शांति प्राप्त करना होता है। सही विधि और श्रद्धा से किया गया श्राद्ध कर्म पितरों को तृप्त करता है और परिवार की उन्नति के मार्ग खोलता है।
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