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    लैंड फॉर जॉब घोटाला: लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत, ट्रायल जारी रहेगा

    अनीशा चौहान/-  18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को लैंड फॉर जॉब घोटाले के मामले में बड़ा झटका दिया। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की खंडपीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के 29 मई के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने की लालू की याचिका खारिज कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल ट्रायल पर रोक लगाने से मना किया, बल्कि दिल्ली हाई कोर्ट को लालू की याचिका पर जल्द सुनवाई करने का निर्देश भी दिया।

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला
    सुप्रीम कोर्ट ने लालू की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि ट्रायल को रोकने का कोई ठोस आधार नहीं है। कोर्ट ने लालू को सलाह दी कि वे अपनी मुख्य याचिका, जिसमें CBI की प्राथमिकी और चार्जशीट को रद्द करने की मांग की गई है। दिल्ली हाई कोर्ट में पेश करें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि लालू को निचली अदालत में व्यक्तिगत पेशी से छूट दी जाएगी। इसके साथ ही, दिल्ली हाई कोर्ट को इस मामले की सुनवाई जल्द करने का निर्देश दिया गया, जो वर्तमान में 12 अगस्त 2025 के लिए निर्धारित है।

    दिल्ली हाई कोर्ट का रुख
    मालूम हो कि इससे पहले 29मई को दिल्ली हाई कोर्ट ने लालू की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि ट्रायल पर रोक लगाने का कोई ठोस कारण नहीं है। हाई कोर्ट ने CBI को नोटिस जारी कर प्राथमिकी रद्द करने की याचिका पर जवाब मांगा था। कोर्ट ने यह भी कहा कि लालू को निचली अदालत में चार्ज फ्रेमिंग के चरण में अपनी सभी कानूनी दलीलें पेश करने का अवसर मिलेगा।

    क्या है पूरा मामला?
    बता दें, लैंड फॉर जॉब घोटाला साल 2004से 2009के बीच का है, जब लालू प्रसाद यादव केंद्रीय रेल मंत्री थे। CBI के अनुसार, इस दौरान पश्चिम मध्य रेलवे के जबलपुर जोन में ग्रुप डी की नियुक्तियां की गई थीं, जिनके बदले में लालू के परिवार या उनके करीबी सहयोगियों के नाम पर जमीन के टुकड़े हस्तांतरित किए गए। CBI ने मई 2022में इस मामले में लालू, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटियों मीसा भारती और हेमा यादव, बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।

    लालू ने अपनी याचिका में दावा किया कि CBI की प्राथमिकी और जांच प्रक्रिया गैरकानूनी है। क्योंकि यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसी एक्ट) की धारा 17ए के तहत आवश्यक पूर्व अनुमति के बिना शुरू की गई। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 2009-2014 के बीच CBI की प्रारंभिक जांच बंद हो चुकी थी और 14 साल बाद 2022 में दर्ज प्राथमिकी ‘राजनीतिक बदले की भावना” और “प्रक्रिया का दुरुपयोग’ है।

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