देश-दुनिया/शिव कुमार यादव/- यूरोप में बीते कुछ सालों में इस्लामोफोबिया तेजी से बढ़ा है। कहीं मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं तो कहीं मुस्लिम विरोधी बयान दिए जा रहे हैं। यूरोपीय देशों के नेता भी एंटी-मुस्लिम बयानबाजी कर रहे हैं। हैरान करने वाली बात है कि इन नेताओं को वहां की जनता द्वारा पसंद भी किया जा रहा है। जिससे कई यूरोपीय देशों में हाल फिलहाल में सत्ता बदली है। सत्ता बदलते ही वहां इस्लाम को लेकर नेताओं का मिजाज भी बदल गया है।
जॉर्जिया मेलोनी 22 अक्टूबर 2022 से इटली की प्रधानमंत्री हैं। वो कई बार इस्लाम विरोधी बयान दे चुकी हैं। अब उनका एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में मेलोनी कह रही हैं कि इस्लामी परंपराएं यूरोपीय संस्कृति के अनुरूप नहीं हैं।
मेलोनी कह रहीं हैं कि ’मेरा मानना है कि इस्लामिक संस्कृति और हमारी सभ्यता के मूल्यों और अधिकारों के बीच अनुकूलता की समस्या है. हमारी सभ्यता अलग है।’ उन्होंने ये भी कहा कि वो इटली में शरिया कानून लागू होने नहीं देंगी। वीडियो में मेलोनी आगे कहतीं हैं, ’ये मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रहा है कि इटली में ज्यादातर इस्लामिक कल्चर सेंटर को सऊदी अरब से फंडिंग मिलती है।’
इस्लाम के खिलाफ मुखर रहीं हैं मेलोनी
मेलोनी का रुख हमेशा से मुस्लिम विरोधी रहा है। साल 2015 में मेलोनी ने मुस्लिमों की राजनीतिक उम्मीदवारी पर रोक लगाने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं लगता कि लीडरशिप के लिए मुस्लिम व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना अच्छा आइडिया हो सकता है। साल 2016 में क्रिसमस के दिन बर्लिन में हुए हमले के बाद मेलोनी ने कहा था कि मुस्लिम अप्रवासियों को इटली में एंट्री नहीं दी जानी चाहिए।
अप्रैल 2019 में मेलोनी ने फेसबुक पर लिखा था, ’अगर मुस्लिमों को लगता है कि वो हमारे घर में जिहाद करेंगे, तो वक्त आ गया है कि इस्लामिक प्रवासियों को रोक दिया जाए।’ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2022 में सत्ता में आने के बाद मेलोनी की पार्टी ने गैराज और वेयरहाउस को मस्जिद के रूप में इस्तेमाल करने से रोकने के लिए एक बिल पेश किया था।
नीदरलैंड्स में भी इस्लाम-विरोधी लहर…!
यूरोप में काफी समय से इस्लाम विरोधी लहर चल रही है। वहां के कई देशों में दक्षिणपंथी नेता सरकार बना रहे हैं, जिनका रुख इस्लाम को लेकर सख्त रहा है। नीदरलैंड्स में धुर-दक्षिणपंथी नेता ग्रीट विल्डर्स नए प्रधानमंत्री बनने कीदौड़ में सबसे आगे हैं। विल्डर्स भी अक्सर इस्लाम विरोधी बयान देते रहे हैं। हाल ही में विल्डर्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ’मैं हमेशा उन हिंदुओं का समर्थन करूंगा जिन पर केवल हिंदू होने के कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान में हमला किया जाता है या मारने की धमकी दी जाती है या मुकदमा चलाया जाता है।’
विल्डर्स की पार्टी ने सत्ता में आने पर हिजाब पर रोक लगाने का वादा भी किया है। बीबीसी के मुताबिक, विल्डर्स ने एक समय मस्जिदों और इस्लामिक स्कूलों पर पाबंदी लगाने का वादा भी किया था।
यूरोप में इस्लामोफोबिया
यूरोपीय देशों में बीते कुछ सालों में ’इस्लामोफोबिया’ काफी तेजी से बढ़ा है। इस्लामोफोबिया असल में दो शब्द- इस्लाम और फोबिया से मिलकर बना है। इसका मतलब होता है- इस्लाम का डर।
’यूरोपियन इस्लामोफोबिया रिपोर्ट 2022’ के मुताबिक, पूरे यूरोप में इस्लाम के खिलाफ भावना तेजी से बढ़ रही है। यूरोपीय सरकारें इस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ क्रैकडाउन चला रहीं हैं। मस्जिदें बंद की जा रहीं हैं। इस्लामिक संगठनों पर नकेल कसी जा रही है।
यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम की अध्यक्ष नदीन मेएंजा के मुताबिक, पूरे यूरोप की कुछ सरकारों ने मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव करने वाले कानून अपनाए हैं। फ्रांस और ऑस्ट्रिया की सरकारों ने कट्टरवाद के खिलाफ अभियान के बहाने मस्जिदें बंद करवा दीं। स्विट्जरलैंड में नई मीनारों के निर्माण पर रोक लगा दी गई। डेनमार्क में अप्रवासी मुस्लिमों को हर हफ्ते 35 घंटे सिर्फ देश की संस्कृति और परंपराएं सिखाई जातीं हैं। ऑस्ट्रिया और फ्रांस में इस्लामिक अलगाववाद और पॉलिटिकल इस्लाम को परिभाषित किए बिना ही इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता दिया गया है।
पिछले साल 13 अक्टूबर को यूरोपियन यूनियन की कोर्ट ऑफ जस्टिस ने फैसला दिया था कि यूरोपियन कंपनियां चाहें तो रिलिजियस सिम्बल पर बैन लगा सकतीं हैं, जिसमें हिजाब भी शामिल था हालांकि, कोर्ट ने ये भी आदेश दिया था कि बैन लगाते समय कंपनियों को बताना होगा कि इससे धार्मिक भेदभाव नहीं हो रहा है। बेल्जियम की एक कंपनी ने मुस्लिम महिला को हिजाब पहनकर आने से मना कर दिया था। इसके खिलाफ महिला कोर्ट पहुंच गई थी। तब कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर ये नियम सभी कर्मचारियों पर लागू है, तो इससे कोई भेदभाव पैदा नहीं होता।
राजनीति में इस्लामोफोबिया
बीते कुछ सालों में यूरोप की सियासत में भी इस्लामोफोबिया बढ़ा है। दक्षिणपंथी नेता अपने भाषणों में इस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ भाषण देते हैं। इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी अपने एंटी-इस्ल.रुख को लेकर जानी जाती हैं, उनकी पार्टी ने 2022 के चुनाव में 44 फीसदी वोट हासिल किए थे।
-ग्रीस की दक्षिणपंथी पार्टी के सांसद ने मुस्लिम सांसदों का फोन टैप किए जाने की मांग रखी थी। उनका कहना था कि मुस्लिम सांसद पड़ोसी देशों से अहम जानकारिया साझा करते हैं।
-डेनमार्क में पिछले साल दक्षिणपंथी पार्टी ने क्रिमिनल कोड में संशोधन करने की मांग की थी। पार्टी का कहना था कि क्रिमिनल कोड में संशोधन किया जाए और नफरत फैलाने वाले इस्लाम पर बैन लगाया जाए।
इसी तरह डेनमार्क के पूर्व मंत्री इंजर स्तोजबर्ग ने पिछले साल अपनी पार्टी लॉन्च की थी। स्तोजबर्ग इस्लामाफोबिक कमेंट के लिए जानी जातीं हैं। उनकी पार्टी ने नवंबर 2022 में हुए चुनाव में 14 सीटें जीत ली थीं।
ये सब दिखाता है कि यूरोपी में एंटी-इस्लाम और एंटी-मुस्लिम नेताओं और पार्टियों को जनता का समर्थन मिल रहा है।
यूरोप में इस्लामोफोबिया के आंकड़े
– बेल्जियमः साल 2021 में धार्मिक आधार पर भेदभाव के 243 मामले सामने आए थे। इनमें से 35 फीसदी मामले वर्कप्लेस से से जुड़े थे। इन मामलों में से 76 फीसदी से ज्यादा मुस्लिमों के खिलाफ थे।
– ऑस्ट्रियाः मुस्लिम-विरोधी भावना के खिलाफ काम करने वाले एक एनजीओ ने बताया था कि 2022 में मुस्लिमों के खिलाफ हेट क्राइम के 1,061 मामले सामने आए हैं।
– बोस्नियाः रियासत कमिशन फॉ फ्रीडम ऑफ रिलिजियस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि 1 जनवरी से लेकर 31 दिसंबर 2022 के बीच देशभर में इस्लामोफोबिया के 9 मामले सामने आए थे।
– नीदरलैंड्सः पुलिस और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, नीदरलैंड्स में 67 फीसदी मुस्लिमों को धार्मिक आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
– इटलीः फंडामेंटल राइट्स के लिए बनी यूरोपियन यूनियन एजेंसी के मुताबिक, ऑनलाइन पोस्ट के जरिए 46 प्रतिशत और कमेंट के जरिए 21 प्रतिशत मुस्लिमों को टारगेट किया जाता है।
– स्पेनः गृह मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 की तुलना में 2021 में हेट क्राइम के 401 मामले बढ़ गए थे।
– यूकेः साल 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में हेट क्राइम के मामलों में 26 फीसदी का उछाल आया था। धार्मिक आधार पर हेट क्राइम के 8,730 मामले सामने आए थे, जिनमें 42 प्रतिशत पीड़ित मुस्लिम थे।
– जर्मनीः साल 2022 में देशभर में इस्लामाफोबिक क्राइम से जुड़े 364 मामले पुलिस ने दर्ज किए थे। इनमें से 26 मामले मस्जिदो.पर हमले से जुड़े थे।
– फ्रांसः नेशनल ऑब्जर्वेटरी ऑफ इस्लामोफोबिया के मुताबिक, 2020 में मुस्लिमों के खिलाफ हमलों के 235 मामले दर्ज किए गए थे जबकि, 2019 में 154 मामले दर्ज हुए थे।
– फिनलैंडः पुलिस यूनिवर्सिटी कॉलेज के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में हेट क्राइम के 1,026 मामले दर्ज किए गए थे। ज्यादातर मामलों में पीड़ित मुस्लिम थे।
– डेनमार्कः सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में सामने आए हेट क्राइम के 164 मामलों में 38 प्रतिशत पीड़ित मुस्लिम थे। 2017 से 2021 के बीच, मुस्लिमों के खिलाफ हेट क्राइम के 398 मामले सामने आ चुके हैं।
– बुल्गारियाः 2022 में मस्जिदों पर हमले के कई मामले सामने आए थे। अप्रैल 2022 में एस्की मस्जिद पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया था। जून 2022 में भी एक मस्जिद में आग लगा दी गई थी।
– रोमानियाः एक सर्वे के मुताबिक, 68 फीसदी लोग मुस्लिमों पर भरोसा नहीं करते। 28 फीसदी इन्हें अपना दोस्त भी नहीं मानते। 19 फीसदी इनके साथ काम करना पसंद नहीं करते।
15 मार्च को मनाया जाता है इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस
दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे इस्लामोफोबिया को देखते हुए पिछले साल संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लाया गया था। इसके बाद हर साल 15 मार्च को ’इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस’ मनाया जाता है। दावा है कि दुनिया में मुसलमानों के खिलाफ नफरत, भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए ये प्रस्ताव लाया गया था।
More Stories
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का निधन, जानिए उनके जीवन से जुड़ा एक अहम किस्सा
दिल्ली में पूर्वांचलियों के नाम काटने की बीजेपी की साजिश का आरोप, केजरीवाल ने उठाए सवाल
कुमाऊं विश्वविद्यालय में हाईटेक नकल, परीक्षा में ChatGPT से नकल करते पकड़ा गया छात्र
रामनगर पुलिस ने एंबुलेंस में नशे का कारोबार कर रहे दो तस्करों को 58 किलो गांजे के साथ किया गिरफ्तार
गुनीत मोंगा की फिल्म ‘अनुजा’ को ऑस्कर 2025 के लिए लाइव-एक्शन शॉर्ट फिल्म श्रेणी में शॉर्टलिस्ट किया गया
विश्व ध्यान दिवस पर आरजेएस ने प्रवासी माह में काकोरी के शहीदों को श्रद्धांजलि दी