
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देहरादून/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/-उत्तराखंड में सुख, समृद्धि और खुशहाली का पर्व हरेला हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस बार हरियाली का प्रतीक हरेला पर्व 16 जुलाई को मनाया गया। हरेला पर्व के साथ ही सावन का महीना शुरू हो जाता है। हरेला पर्व से 9 दिन पहले घर के मंदिर में कई प्रकार का अनाज टोकरी में बोया जाता है और माना जाता है की टोकरी में अगर भरभरा कर अनाज उगा है तो इस बार की फसल अच्छी होगी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की बधाई देते हुए कहा कि यह पर्व प्रदेश की पहचान है और इसके आयोजन का उद्देष्य प्रदेश के युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ना है। हरेला पर्व पर उत्तराखंड सरकार ने 8 लाख 75 हजार वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा है वहीं पूरे साल में सरकार ने पूरे उत्तराखंड को हराभरा बनाने के लिए 2 करोड़ 58 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है जिसमें 51 लाख 55 हजार फलदार वृक्ष लगायें जायेंगे। हरेला पर्व के दिन मंदिर की टोकरी में बोया गया अनाज काटने से पहले कई पकवान बनाकर देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है। जिसके बाद पूजा की जाती है. घर-परिवार के सदस्यों को हरेला (अंकुरित अनाज) शिरोधारण कराया जाता है।
कुमाऊं में इस पर्व के दिन ’लाग बग्वाल, जी रयै, जागी रयै, यो दिन बार भेटन रयै जैसे शब्दों में आशीर्वाद दिया जाता है। उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र में हरेला पर्व को विशेष तौर पर मनाया जाता रहा है। कुमाऊं क्षेत्र में हरेला की समृद्ध एक परंपरा रही है। यहां लोग अपने परिजन और संबंधियों को, घर से दूर प्रदेश में नौकरी करने वालों को हरेले के तिनके डाक से भेजते थे। आज भी कई परिवार यह परंपरा निभा रहे हैं।
हरेला पर्व पर्यावरण संरक्षण का त्यौहार है। ऋग्वेद में भी हरियाली के प्रतीक हरेला का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद में लिखा गया है कि इस त्यौहार को मनाने से समाज कल्याण की भावना विकसित होती है। आज का युवा जिस तरह से पुराने त्योहारों को भूलता चला जा रहा है। उस बीच हरेला त्यौहार की प्रसिद्धि आज की युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम भी कर रही है। ऐसे त्यौहार अगर समय-समय पर मनाते जाएं तो युवा भी अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों के इन त्योहारों के साथ खेती की तरफ भी रुझान करेंगे। युवा पीढ़ी भविष्य में इसके महत्व को भी समझ सकेगी।
हरेला का अर्थ हरियाली से है इस दिन सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की कामना की जाती है। उत्तराखंड में आज कई जगह लोग पीपल, आम, आंवला आदि पौधों का रोपण भी कर रहे हैं और सभी से पर्यावरण संरक्षण की अपील भी कर रहे हैं।
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