
अनीशा चौहान/- इस साल 6 और 7 जून को बकरीद (ईद-उल-अजहा) का पर्व मनाया जाएगा। यह इस्लाम धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें परंपरागत रूप से जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। लेकिन इस बार एक प्रमुख मुस्लिम देश मोरक्को ने इस धार्मिक परंपरा पर अस्थायी रोक लगाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। मोरक्को की 99% मुस्लिम आबादी वाले देश में यह फैसला देश के राजा मोहम्मद VI ने सूखे और पशुधन संकट को देखते हुए लिया है। यह निर्णय धार्मिक मान्यताओं और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाने का प्रयास है।

भयंकर सूखे ने बदली तस्वीर
मोरक्को इस समय पिछले सात वर्षों से लगातार सूखे की चपेट में है। इस साल बारिश सामान्य से 53% कम हुई, जो पिछले तीन दशकों में सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है। इसके कारण चारे की भारी कमी और पशुधन की संख्या में 38% की गिरावट दर्ज की गई है। इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता की जेब पर पड़ा है। मांस की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लिए कुर्बानी देना मुश्किल हो गया है।
राजा मोहम्मद VI का टेलीविज़न पर संदेश
राजा मोहम्मद VI ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर संबोधित करते हुए कहा, “देश जलवायु और आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में कुर्बानी की रस्म को इस बार स्थगित करना सभी के हित में है।” उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस बार बकरीद को इबादत, दुआ और ज़रूरतमंदों की मदद के ज़रिये मनाएं।
सरकार का सख़्त कदम और जनता की प्रतिक्रिया
सरकार ने इस फैसले को लागू करने के लिए कई सख्त कदम उठाए हैं। देशभर में जानवरों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके अलावा मांस की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण के लिए ऑस्ट्रेलिया से एक लाख भेड़ों का आयात किया गया है और उन पर आयात शुल्क तथा वैट को हटा दिया गया है।
हालांकि, यह फैसला देश में विरोध और बहस का कारण भी बन गया है। कुछ लोगों का मानना है कि धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप हुआ है, जबकि अन्य इसे एक ज़िम्मेदार और दूरदर्शी कदम मानते हैं। यह पहली बार नहीं है जब मोरक्को ने ऐसा निर्णय लिया है — 1966 में राजा हसन द्वितीय ने भी सूखे की वजह से कुर्बानी पर रोक की अपील की थी।
वैश्विक बहस का विषय
मोरक्को का यह फैसला अब अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बन चुका है। खासकर उन देशों में, जैसे भारत, जहां बकरीद पर कुर्बानी की परंपरा सदियों पुरानी है। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट को देखते हुए भविष्य में अन्य देश भी ऐसे कड़े लेकिन ज़िम्मेदार फैसले ले सकते हैं?
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